19.1.04

एक और पैदाइश

नुक्ताचीनी नाम पसन्द आया। और चिट्ठे का जमाव भी। मुबारक हो।

18.1.04

कही अनकही

शुक्रवार १६ जनवरी, २००४ को यह चिट्ठा, हिन्दी का इकलौता चिट्ठा नहीं रहा। शोक में दो मिनट मौन रखा जाए और बाकी २३:५८ घण्टे जश्न मनाया जाए, क्योंकि मिल ही गया आख़िरकार, हिन्दी का एक और चिट्ठा। मुबारक हो, पद्मजा जी। बस, अब तो जङ्गल में आग पकड़ने की ही देर है।

17.1.04

चले थे हरि भजन को

लेकिन पता चला कि क्यू टी के लिए XFree86-devel ज़रूरी है। तो फ़िलहाल कपास ओटी जा रही है। और पिछले २ दिन में ४ घण्टे अन्तर्जाल पर बैठा रहा। ४ घण्टे यानी १०० रुपए। बहुत महँगा शौक है यह।

16.1.04

लाइव्जर्नल हिन्दी में

वैभव का चिट्ठा हाइजैक हो गया है! बुरा न मानो, होली आने वाली है।

क्यूटी 3.2.3 का आर पी ऍम

मिल गया! अब देखते हैं क्या होगा आगे। कॉङ्क्वरर आगे बढ़ेगा या नहीं? इस बीच इण्डिक कम्प्यूटिङ्ग हॅण्डबुक का बिल्ड भी बचा हुआ है, उसको भी निपटाना है।

क्यू टी का जुगाड़

हूँ, तो पता चला है कि क्यू टी स्तोत से निर्माण करने पर दिक्कत होती है। एक सज्जन ने क्यू टी ३.२.३ के स्रोत आर पी ऍम की ओर इङ्गित करने का वादा किया है, सम्भवतः उससे काम चल जाएगा। यदि आपको पता हो तो बताएँ।

15.1.04

गुम हो गए चक्रवात में

कल रात दो बजे सोया और आज उठा तो लगा कि और चार घण्टे आराम से सो सकते हैं। लेकिन यह न हो सका। तो अब क्या करें, अपनी क़िस्मत को कोसने के अलावा? ज़िन्दगी छोटी है, काम बहुत हैं। ऊपर से उसमें भी क्या करें और क्या नहीं, इसमें और समय ज़ाया होता है। उम्मीद पर दुनिया टिकती है लेकिन खुद से उम्मीद उसी चीज़ की करनी चाहिए जो हो सके। अक़्सर ऐसा लगता है कि दुनिया अचानक बहुत उलझ गई है, पहले काफ़ी सीधी सादी थी। ऐसा क्यों? दबाव, तनाव? बाहर निकलना पड़ेगा इस चक्रवात से, या फिर इस चक्रवात को ही नौ दो ग्यारह करना पड़ेगा। क्या दुनिया को एक मुख और खुद का दूसरा मुख रख कर जीना ज़िन्दगी है? पता नहीं। अब तो बस लिखते जा रहा हूँ, जो मन में आए। इसीलिए तो लिखना शुरू किया था मैंने चिट्ठा, हो सकता है इसे लिखते लिखते मुझे कुछ समझ आ जाए, अपने बारे में, दूसरों के बारे में। दोस्त लोग मिलने को कहते हैं, लेकिन नहीं मिल पाते। मजबूरी। फिर पता चलता है कि बहुत दूर पहुँच गए। जीवन में अग़र ही अग़र भरा हुआ है। यार फिर ज़िन्दगी शुरू कब होगी। कोई अनुशासन नहीं, अपनी मन मर्जी। लगभग रोज, वही होता है जो इसके पिछले दिन हुआ था। कोई बदलाव नहीं, कोई परिवर्तन नहीं। कुछ दिलचस्प? नहीं, कुछ नहीं। क्या ज़िन्दगी है। यही है ज़िन्दगी? लगता है मैं कुछ ग़लत चीज़ों को ज़्यादा तवज्जू दे रहा हूँ और सही चीज़ों को कम। अन्तर्जाल पर काम करना अब काफ़ी महँगा पड़ रहा है, देखता हूँ अगले कुछ दिनों में कोई और जुगाड़ हो जाए, ब्रोड्बैण्ड जैसा तो अच्छा है। इस लिनक्स ने परेशान कर रखा है। हर एक चीज़ के लिए कुछ न कुछ बैठ के डाउन्लोड करो। यार हद होती है। पर क्या करें। मज़ा भी आता है, पर कभी कभी कुछ ज़्यादा हो जाता है। जैसे कि आज। पूरा क्यू टी 3.3 बैठ के कम्पाइल किया, लेकिन rpm -q qt पुराना वाला उद्धरण ही दिखाता है। मतलब क्या? कि उसका आर पी ऍम ही चाहिए? ये बात तो हजम नहीं हुई। पुराने क्यूटी की लाइब्रेरियाँ भी उड़ा दीं, फिर भी वही दिक्कत है। उल्टे के पी पी पी चलना बन्द हो गया। वह तो शुक्र है वीवडायल था, तो काम चल रहा है। लेकिन इसका मतलब ये हुआ कि इसके बारे में अपने को जानकारी बहुत, बहुत कम है, और किसी को पूछो ते कहेगा कि मैन पेज देखो, या गूगल में गुगलाओ। भइया गूगल क्या देगा। बस बहुत हो गया अब होते हैं नौ दो ग्यारह।

14.1.04

क्यूटी 3.3

सुना है कि इस बाम को लगाने से सारी पीड़ा दूर हो जाती है। देखते हैं इसके बाद कॉङ्क्वरर हिन्दी कैसी दिखाता है।

11.1.04

लाइव्जर्नल

लाइव्जर्नल का हिन्दी अनुवाद करने के लिए आपका स्वागत है। यदि आपको दिलचस्पी है तो यहाँ टिप्पणी लिखें। वैसे १० प्रतिशत अनुवाद हो चुका है।