3.12.04

ताना बाना

विजय ठाकुर, यह हाथ मुझे दे दो। जो इतनी कविताएँ लिख डालते हैं। अपुन तो कविता के नाम से ही नौ दो ग्यारह होने लगते हैं। ईश्वर प्रदत्त कला है, क्या कर सकते हैं। पर देख रहा हूँ जाल पर कविताओं का भरमार हो रहा है। इस बीच देखा कि हिन्दी के चिट्ठों की इतनी भरमार हो गई है कि आराम से पन्द्रह मिनट लगते हैं सबको दिन में एक बार देखने में। छः महीने पहले यह काम दो मिनट में हो जाता था। बढ़िया है। पता चला कि तोता चश्म का मतलब क्या होता है, फ़ुरसतिया जी की बदौलत। देखते हैं गूगल तोता चश्म को कब तक पकड़ता है। अभी तक तो खाली लौट रहा है।

4 टिप्‍पणियां:

  1. गुरू मेरा हाथ तो न मांगिये कम से कम, अब अमरीका में होने का मतलब ये तो नहीं मेरा हाथ ही मांग बैठे। भाभी को क्या मुँह दिखाओगे, मुँह काला करवाओगे? खैर ताने बाने की बात सही चलाई……वो वेब पर आने का मेरा पहला प्रयास था। मैं ज्यादा तकनीकी गुण तो जानता नहीं इसलिये उसकी अकाल-मृत्यु हो गयी। उस साईट पर तो मैं महीनों से नहीं गया। अब नयी साईट बना ली है, कुछ मित्र मेरी मदद कर रहे हैं।

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  2. बेनामी7:11 am

    लीजिए मुऐ गूगल को भी पता लग गया कि तोता चश्म क्या होता है।

    पंकज

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  3. आलोक की गिद्धदृष्टि की बात तो पढी थी पर 'गूगल'की खोजबीन क्षमता का अन्दाजा पहली बार लगा.मजा आ गया.हम यही देखकर खुश हो गये कि कुछ शब्दों के लिये हमारे चिट्ठे पर आने के अलावा गूगल के पास कोई चारा नहीं है.

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  4. हाँ सो तो है। एक खेल भी था न गूगल वाला - ऐसे सङ्केतशब्द डालें जिनका केवल एक ही परिणाम आए। शब्दकोष में होने चाहिए, और शायद दो ही शब्द होने चाहिए - ऐसा कुछ नियम था।

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