27.6.05

ओय चल गया

पङ्गा ये था कि जावा की जावा चाहिए थी, जो कि थी, लेकिन पथ में जीसीजे थी। अब इतना पता लगाने की नहीं हो रही है कि जीसीजे चल क्यों नहीं रहा है, इसलिए हम होते हें नौ दो ग्यारह।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

सभी टिप्पणियाँ ९-२-११ की टिप्पणी नीति के अधीन होंगी। टिप्पणियों को अन्यत्र पुनः प्रकाशित करने के पहले मूल लेखकों की अनुमति लेनी आवश्यक है।