21.6.08

इंस्क्रिप्ट के जरिए हिन्दी लिखने के लिए सात मिनट दस सेकिंड का वीडियो

बड़े दिनों से - बल्कि सालों से सोच रहा था कि इंस्क्रिप्ट सिखाने का कोई आसान तरीका हो। इंस्क्रिप्ट है तो आसान पर जब तक आमने सामने बैठे न हों समझाना मुश्किल होता है कि यह कितना आसान है। शुक्र है संस्तुति जी का जिन्होंने यह वीडियो - नहीं व्हीडियो - तैयार किया - जो सात मिनट दस सेकिंड का है, और इसके जरिए ७ साल के बच्चे से ले के ७७ साल के जवाब तक आसानी से इंस्क्रिप्ट सीख सकते हैं।

यह लेख भी मैं इंस्क्रिप्ट के जरिए ही लिख रहा हूँ। दरअसल इंस्क्रिप्ट मुश्किल इसलिए लगता है क्योंकि हमें समझ नहीं आता है कि क k की जगह क्यों है और त l की जगह क्यों हैं। पहले पाँच मिनट इस व्हीडियो में संस्तुति जी यही समझाती हैं कि इंस्क्रिप्ट का जमाव जैसा है, वैसा क्यों है। वह यह भी समझाती हैं कि भारत की अलग अलग भाषाओं में टाइपराइटर के जमाव अलग अलग क्यों हुए, और हर भारतीय भाषा के लिए इंस्क्रिप्ट जमाव एक जैसा क्यों हैं, और इसके फ़ायदे क्या हैं।

संस्तुति जी अपने व्हीडियो का परिचय देते हुए कहती हैं -

अधिकतर भारतीय लेखक सभी भारतीय भाषाओं में टंकण करने के लिए एक आसान जुगाड़ नहीं जालते हैं -- आधे घंटे से कम में सीखें। इंस्क्रिप्ट का तरीका सीखिए, एक ही बार में। यह कुञ्जीपटल जमाव बिल्कुल सरल है। टंकण की कक्षाओं में जाने की ज़रूरत ही नहीं है।
मुझे लगता है कि इंस्क्रिप्ट के अधिक लोकप्रिय न होने का एक कारण यह भी रहा हो कि टंकण कक्षाओं वालों को इसमें कुछ फ़ायदा नहीं होता। जो चीज़ दो दिन में सिखाई जा सकती है उसके लिए काहे का कोर्स और कितने पैसे का कोर्स?

एक बार यह समझ आ जाए कि इंस्क्रिप्ट का जमाव जैसा है, वैसा क्यों है, फिर इंस्क्रिप्ट सीखने के लिए कोई शिक्षक, कोई कितबिया, कुछ नहीं चाहिए। बस लिखते जाएँ, और धीरे धीरे अपनी गति बढ़ाते जाएँ।

मुझे व्हीडियो का पहला भाग ही मिला है, यदि आपको अन्य भाग मिलें तो मुझे ज़रूर बताएँ।

यह लीजिए व्हीडियो।

व्हीडियो पर टिप्पणी करें

18.6.08

नया फ़ायर्फाक्स ३ पिछले १२ घंटे में ४१ लाख लोग डाउनलोड कर चुके हैं - आप भी करें - इसमें हिन्दी प्रदर्शन की सारी समस्याएँ सुलझ गई हैं।

मोज़िला की गिनती बता रही है कि पिछले बारह घंटे में ४१ लाख बार फ़ायर्फ़ाक्स ३ उतारा जा चुका है। यह इंटर्नेट एक्स्पलोरर, ऑपेरा और सफ़ारी की तरह ही एक ब्राउज़र है जो कि बिल्कुल मुफ़्त, बहुत तेज़ और हिन्दी प्रदर्शन अच्छी तरह करने वाला है।

 

मोज़िला वाले, जो फ़ायर्फ़ाक्स बनाते हैं – आज रात यानी १८-जून-२००८ साढ़े दस बजे आपको फ़ायर्फ़ाक्स उतारने का न्यौता दे रहे हैं।

 

वैसे उतार तो आप बाद में भी सकते हैं पर कीर्तिमान स्थापित करना है न २४ घंटे में अधिकाधिक लोगों द्वारा उतारने का!

 

रचना जी ने तो उतार लिया है, और वह कह रही हैं कि हिन्दी प्रदर्शन में फ़ायर्फ़ाक्स में जो पहले समस्याएँ थीं, वह अब दूर हो चुकी हैं। आप भी जाइए फ़ायर्फ़ाक्स के स्थल पर, और आजमाइए इसे।

फ़ायर्फ़ाक्स ३ उतारने का दिन आज है - १८-जून-२००८ - उतारें और हिन्दी प्रदर्शन की समस्याएँ हल करें

फ़ायर्फ़ाक्स ब्राउज़र का नया उद्धरण कल रात भारतीय समयानुसार साढ़े दस बजे उद्घाटित हुआ।

इसका इस्तेमाल करने में हिन्दी के पाठकों और लेखकों को कई फ़ायदे हैं। एक तो यह ज़्यादा तेज़ है, दूसरा आपकी पुराने फ़ायर्फ़ाक्स की टूलबार आदि भी यथावत चलेंगी, और तीसरी सबसे बड़ी बात, हिन्दी के प्रदर्शन में जो समस्याएँ यदा कदा फ़ायर्फ़ाक्स पर आती थीं, वह फ़ायर्फ़ाक्स ३ में बिल्कुल ठीक कर दी गई हैं। तो आप भी उतारिए फ़ायर्फ़ाक्स ३ आज ही -

फ़ायर्फ़ाक्स के आधिकारिक स्थल से एक चटके में डाउनलोड करें

13.6.08

अतनु डे - हिन्दी में!

आप में से जो लोग अतनु डे से परिचित नहीं है, वे एक अर्थशास्त्री हैं और भारत के विकास से सम्बन्धित कई लेख उन्होंने अङ्ग्रेज़ी में लिखे हैं। उनसे अनुमति माँगी कि क्या उनके लेख हिन्दी में छापे जा सकते हैं, और मिल गई। लेख हैं http://deeshaahi.wordpress.com पर, और यह मानवीय अनुवाद हैं, मशीनी नहीं। अभी तक एक ही लेख अनूदित हुआ है। आप चाहें तो किसी और लेख का अनुवाद करने का भार भी उठा सकते हैं।

लेखों पर सर्वाधिकार अतनु डे का ही है।

तो पढ़िए उनके लेख, और विचार कीजिए, और टिप्पणी कीजिए

11.6.08

गूगल सुझाव, टेक्नोलॉजी, अश्लीलता, और प्रयोक्ता का अनुभव - सुधारना आपके हाथ में है

यह शीर्षक आपको कुछ दिन पहले विनीत खरे जी के लेख के शीर्षक जैसा लगेगा, और यह इसलिए क्योंकि यह लेख उसी पान की दुकान वाले लेख से संबंधित है। इस "समस्या" को देखने के लिए आपको

  1. हिन्दी वाला गूगल लागू करना होगा, पर
  2. खोज अंग्रेज़ी अक्षर s से करनी होगी - वैसे आप स से करें तो भी परिणाम वही होगा :
यानी वयस्कोन्मुख सामग्री को इंगित करने वाले शब्द सुझाए जा रहे हैं।

यही हाल कुछ और अक्षरों की खोज करने पर होता है।

क से ले कर,

फ से ले कर

ब तक।

मेरे द्वारा ली गई तस्वीरें करीब एक महीने पुरानी हैं इसलिए हो सकता है कि आपको इस वक़्त कुछ और परिणाम मिलें।

वास्तव में यह खोज मैंने दफ़्तर में की थी, s से कुछ खोज कर रहा था - स से नहीं - और परिणामों के सुझाव आने लगे, उत्सुकता हुई और तस्वीरें सँजो के रख लीं।

यह है तो समस्या ही, आखिरकार सुझाव तो ठीक है पर देश और काल के आधार पर नैतिकता बदलती है कि नहीं?

विनीत जी का लेख देखने के बाद, और उसपर लिखी टिप्पणियों से यही लगा कि हाँ वास्तव में इन शब्दों की खोज अधिक होती है इसलिए यह सुझाव में आए हैं। कुछ लोगों ने इसे सहज भाव से लिया और कुछ ने नहीं, जैसे कि स्वयं विनीत जी ने।

और सहज भाव से न लेना भी स्वाभाविक ही है, यह भाषा और संस्कृति से इतर है, आप किसी गंभीर विषय पर खोज कर रहे हों और सुझाव ऐसे आने लगें, जब कि आसपास लोग भी बैठे हों तो कैसा रहेगा?

अंग्रेज़ी वाले गूगल में तो सुझाव हमेशा नहीं आते पर हिन्दी वाले में तो हमेशा आते हैं!

बस एक बार अंग्रेज़ी वाले गूगल के जरिए आजमा के देखा - http://google.com/webhp?complete=1&hl=en से अंग्रेज़ी वाले गूगल में सुझाव आते हैं।

और यही पाया कि, अंग्रेज़ी में गूगल अश्लील सुझाव खा गया,

जी हाँ बिल्कुल खा गया,

दुबारा खा गया -

यहाँ भी वयस्कोन्मुख सुझाव नहीं दिखे,

न यहाँ,

बिल्कुल भी नहीं,

यहाँ थोड़े हैं।

वास्तव में हो क्या रहा है? मैंने एक बार विकल्प में जा के वयस्कोन्मुख सामग्री न हटाने का विकल्प भी चुनने की कोशिश की - वयस्कोन्मुख सामग्री हटाने का विकल्प लागू नहीं था।

यानी क्या? यानी यह, कि गूगल ने मामले की संजीदगी को समझते हुए वयस्कोन्मुख और संभवतः आपत्तिजनक सुझाव हटा दिए हैं - अंग्रेज़ी के लिए कम से कम।

पर फिर हिन्दी में क्यों नहीं? शायद इसलिए कि अभी गूगल हिन्दी सीख रहा है। वैसे, शायद कुछ सुझाव हिन्दी में भी हटाए गए हैं, क्योंकि मैं चकित हुआ था कि च के लिए वयस्कोन्मुख सुझाव नहीं थे - मतलब कि यह बाला अभी हिन्दी सीख रही है!

विनीत जी ने बात बहुत वाजिब उठाई है, और इस वक़्त हिन्दी के लिए जो सुझाव गूगल पर दिख रहे हैं वह वास्तव में अपरिमार्जित हैं और खोज की आवृत्ति के आधार पर हैं, स्वचालित। लेकिन शायद आपत्तिजनक सुझावों को हटाने की प्रक्रिया अभी उतनी सशक्त नहीं हुई है। लेकिन यह प्रक्रिया मौजूद तो है - यह ज़ाहिर होता है च वाले सुझावों से। इस बारे में गूगल को लिख रहा हूँ, शायद वे इसे और सशक्त करने पर गौर करें।

पर तीन बातें अवश्य सामने आती हैं -

  1. अभी भी बहुत कम लोग गूगल के स्थल के हिन्दी उद्धरण का इस्तेमाल करते हैं। तभी यह मुद्दा अभी तक उछला नहीं। इस्तेमाल करिए - इसके लिए आप वरीयता या प्रिफ़रेंसेज़ में जा सकते हैं। गूगल वाले नज़र रखते हैं कि कौन सी भाषा के पन्नों का इस्तेमाल अधिक हो रहा है। हिन्दी के इस्तेमाल की संख्या बढ़ाइए। हिन्दी के जालस्थलों को बेहतर बनाने की जिम्मेदारी आपकी है उनका इस्तेमाल करके, और उनपर प्रतिक्रिया दे के। इस काम में भारत सरकार या किसी देवी देवता का कोई जिम्मा नहीं है, यह उत्तरदायित्व आपका है।
  2. जिस व्यक्ति को हिन्दी टंकण आता है उसके लिए S अक्षर छापने पर देवनागरी के परिणाम दिखाना - मुझे तो नहीं जमता, अगर इसे वैकल्पिक बनाने की सुविधा हो तो अच्छा हो। वैसे सुझाव स से भी आते हैं। पर इस समय हिन्दी टंकण न जानने वालों की संख्या कम है अतः यह समस्या इस समय काफ़ी गौण है।
  3. गूगल वालों ने अपने मुख पृष्ठ पर वरीयताएँ को वरियताएँ लिखा है। इसे भी ठीक करवाने के लिए डाक लिख रहा हूँ!

अब हम होते हैं नौ दो ग्यारह!

गूगल सुझाव, टेक्नोलॉजी, अश्लीलता, और प्रयोक्ता का अनुभव - सुधारना आपके हाथ में है

यह शीर्षक आपको कुछ दिन पहले विनीत खरे जी के लेख के शीर्षक जैसा लगेगा, और यह इसलिए क्योंकि यह लेख उसी पान की दुकान वाले लेख से संबंधित है। इस "समस्या" को देखने के लिए आपको

  1. हिन्दी वाला गूगल लागू करना होगा, पर
  2. खोज अंग्रेज़ी अक्षर s से करनी होगी - वैसे आप स से करें तो भी परिणाम वही होगा :
यानी वयस्कोन्मुख सामग्री को इंगित करने वाले शब्द सुझाए जा रहे हैं।

यही हाल कुछ और अक्षरों की खोज करने पर होता है।

क से ले कर,

फ से ले कर

ब तक।

मेरे द्वारा ली गई तस्वीरें करीब एक महीने पुरानी हैं इसलिए हो सकता है कि आपको इस वक़्त कुछ और परिणाम मिलें।

वास्तव में यह खोज मैंने दफ़्तर में की थी, s से कुछ खोज कर रहा था - स से नहीं - और परिणामों के सुझाव आने लगे, उत्सुकता हुई और तस्वीरें सँजो के रख लीं।

यह है तो समस्या ही, आखिरकार सुझाव तो ठीक है पर देश और काल के आधार पर नैतिकता बदलती है कि नहीं?

विनीत जी का लेख देखने के बाद, और उसपर लिखी टिप्पणियों से यही लगा कि हाँ वास्तव में इन शब्दों की खोज अधिक होती है इसलिए यह सुझाव में आए हैं। कुछ लोगों ने इसे सहज भाव से लिया और कुछ ने नहीं, जैसे कि स्वयं विनीत जी ने।

और सहज भाव से न लेना भी स्वाभाविक ही है, यह भाषा और संस्कृति से इतर है, आप किसी गंभीर विषय पर खोज कर रहे हों और सुझाव ऐसे आने लगें, जब कि आसपास लोग भी बैठे हों तो कैसा रहेगा?

अंग्रेज़ी वाले गूगल में तो सुझाव हमेशा नहीं आते पर हिन्दी वाले में तो हमेशा आते हैं!

बस एक बार अंग्रेज़ी वाले गूगल के जरिए आजमा के देखा - http://google.com/webhp?complete=1&hl=en से अंग्रेज़ी वाले गूगल में सुझाव आते हैं।

और यही पाया कि, अंग्रेज़ी में गूगल अश्लील सुझाव खा गया,

जी हाँ बिल्कुल खा गया,

दुबारा खा गया -

यहाँ भी वयस्कोन्मुख सुझाव नहीं दिखे,

न यहाँ,

बिल्कुल भी नहीं,

यहाँ थोड़े हैं।

वास्तव में हो क्या रहा है? मैंने एक बार विकल्प में जा के वयस्कोन्मुख सामग्री न हटाने का विकल्प भी चुनने की कोशिश की - वयस्कोन्मुख सामग्री हटाने का विकल्प लागू नहीं था।

यानी क्या? यानी यह, कि गूगल ने मामले की संजीदगी को समझते हुए वयस्कोन्मुख और संभवतः आपत्तिजनक सुझाव हटा दिए हैं - अंग्रेज़ी के लिए कम से कम।

पर फिर हिन्दी में क्यों नहीं? शायद इसलिए कि अभी गूगल हिन्दी सीख रहा है। वैसे, शायद कुछ सुझाव हिन्दी में भी हटाए गए हैं, क्योंकि मैं चकित हुआ था कि च के लिए वयस्कोन्मुख सुझाव नहीं थे - मतलब कि यह बाला अभी हिन्दी सीख रही है!

विनीत जी ने बात बहुत वाजिब उठाई है, और इस वक़्त हिन्दी के लिए जो सुझाव गूगल पर दिख रहे हैं वह वास्तव में अपरिमार्जित हैं और खोज की आवृत्ति के आधार पर हैं, स्वचालित। लेकिन शायद आपत्तिजनक सुझावों को हटाने की प्रक्रिया अभी उतनी सशक्त नहीं हुई है। लेकिन यह प्रक्रिया मौजूद तो है - यह ज़ाहिर होता है च वाले सुझावों से। इस बारे में गूगल को लिख रहा हूँ, शायद वे इसे और सशक्त करने पर गौर करें।

पर तीन बातें अवश्य सामने आती हैं -

  1. अभी भी बहुत कम लोग गूगल के स्थल के हिन्दी उद्धरण का इस्तेमाल करते हैं। तभी यह मुद्दा अभी तक उछला नहीं। इस्तेमाल करिए - इसके लिए आप वरीयता या प्रिफ़रेंसेज़ में जा सकते हैं। गूगल वाले नज़र रखते हैं कि कौन सी भाषा के पन्नों का इस्तेमाल अधिक हो रहा है। हिन्दी के इस्तेमाल की संख्या बढ़ाइए। हिन्दी के जालस्थलों को बेहतर बनाने की जिम्मेदारी आपकी है उनका इस्तेमाल करके, और उनपर प्रतिक्रिया दे के। इस काम में भारत सरकार या किसी देवी देवता का कोई जिम्मा नहीं है, यह उत्तरदायित्व आपका है।
  2. जिस व्यक्ति को हिन्दी टंकण आता है उसके लिए S अक्षर छापने पर देवनागरी के परिणाम दिखाना - मुझे तो नहीं जमता, अगर इसे वैकल्पिक बनाने की सुविधा हो तो अच्छा हो। वैसे सुझाव स से भी आते हैं। पर इस समय हिन्दी टंकण न जानने वालों की संख्या कम है अतः यह समस्या इस समय काफ़ी गौण है।
  3. गूगल वालों ने अपने मुख पृष्ठ पर वरीयताएँ को वरियताएँ लिखा है। इसे भी ठीक करवाने के लिए डाक लिख रहा हूँ!

अब हम होते हैं नौ दो ग्यारह!

10.6.08

कॉफ़ी विद कुश - एक शानदार शुरुआत, पहली बॉल पर छक्का

जनाब, अगर आपने नहीं पढ़ा हो तो तुरन्त चटका लगाइए – कॉफ़ी विद कुश की ओर से एक साक्षात्कार, पल्लवी त्रिवेदी का। पल्लवी का संटी वाला लेख तो मैंने भी पढ़ा था, पर उस समय यह नहीं पता था कि वे भोपाल पुलिस में काम करती हैं! बढ़िया है, पहले बाड़मेर, फिर सीकर तो अब भोपाली क्यों नहीं!

 

वैसे पल्लवी के लेखन में पुलिसिया कुछ भी नहीं है, और लाख की बात एक – दिलचस्प है कुश और पल्लवी की गुफ़्तगू। आप भी पढ़िए इस ३५ टिप्पणी वाले साक्षात्कार को, हम होते हैं नौ दो ग्यारह।

 

वैसे बाड़मेरी और सीकरी चिट्ठी ही शायद दो ऐसे चिट्ठे होंगे जहाँ टिप्पणी सम्राट अपने मोती नहीं बिखेरते हैं!

5.6.08

ये http और www क्या है? क्या http माने जालस्थल और www माने चिट्ठा?

पिछले कुछ दिनों में कुछ लेख पढ़ने को मिले जिनसे ऐसा लगा कि इस www और http के बारे में खुलासा देना ज़रूरी है। आखिरकार आप स्वादिष्ट भोजन खाते हैं, तो यह उत्सुकता तो होती ही है न कि उसमें डाला क्या गया है? पकाया कैसे गया है? उसी तरह भले ही आप केवल जालस्थलों के पाठक हों, या केवल चिट्ठा चलाते हों तो भी यह पता होना अच्छा ही है कि किसी भी जालस्थल के पते के मायने क्या हैं। दरअसल जब तक मैं भी केवल खाता ही था, पकाता नहीं था, इन सब शब्दों के बारे में मुझे भी कई भ्रान्तियाँ थीं, और इन भ्रान्तियों के चलते मैंने कई लोगों को अनजाने में ही सही, पर गुमराह भी किया है।

इसलिए यह वाजिब ही है कि इस विषय में अब तक जो सीखा है उसे आपके सामने रखूँ और इस सिलसिले में और ज्ञान भी पाऊँ।

पहले समझते हैं कि यूआरऍल - यूनिफ़ार्म रिसोर्स लोकेटर - "संसाधनों के समरूपी पते" के क्या अंश होते हैं, एक उदाहरण के साथ।

http://translate.google.com/translate_t/?langpair=hi|en
  1. पहला हिस्सा - http:// - है प्रोटोकॉल। यह बताता है कि इस पते तक पहुँचने के लिए आपके ब्राउज़र को किस कंप्यूटरी भाषा का प्रयोग करना होगा। एक तरह से, यह वास्तव में पता नहीं है, श्री, सुश्री की तरह सम्बोधन जैसा है।
  2. दूसरा हिस्सा - पहली बिन्दु तक - translate - यह उपडोमेन है। इसके बारे में थोड़ी देर में, पहले तीसरे हिस्से को समझ लें।
  3. तीसरा हिस्सा - पहले / तक - google.com - यह डोमेन है। डोमेन वास्तव में एक (अधिकतम १२ अंकों की) संख्या होता है, पर इंसानों को नंबर से ज़्यादा नाम याद रहते हैं, इसलिए डोमेन नामों का प्रचलन है। इस १२ अंक की संख्या को आईपी कहते हैं। और आईपी से डोमेन नाम तथा डोमेन नाम से आईपी पता लगाने की निर्देशिका का काम डोमेन नाम सर्वर करते हैं। इसे डीएनएस प्रबन्धन भी कहा जाता है।
  4. चौथा हिस्सा - ? तक - translate_t/ - यह पथ है। जालस्थल जिस सर्वर पर है, वहाँ अलग अलग फ़ाइलें अलग अलग निर्देशिकाओं में होती हैं। उनका पथ डोमेन नाम के ठीक बाद रहता है।
  5. पाँचवाँ हिस्सा - ? के बाद - langpair=hi|en - परिमाण हैं। किसी पथ पर मौजूद फ़ाइल को कोई और परिमाण प्रदान करने हों तो इसका इस्तेमाल होता है।

आइए अब समझते हैं कि http क्या है और www क्या है। http तो वास्तव में संबोधन ही है, पता नहीं है। http के अलावा ftp, news, file, https आदि संबोधन भी होते हैं। किसी भी जालस्थल के लिए http या https का संबोधन ही लगेगा। आपने देखा होगा कि यदि आप अपने ब्राउज़र में अगर http:// नहीं लिखते हैं तो भी वह स्वतः ही आगे श्री या सुश्री की तरह http:// चेंप देता है।

www - ऊपर दिए गए उदाहरण में दूसरा अंश - उपडोमेन का है। जिस प्रकार ऊपर translate एक उपडोमेन है, उसी तरह www भी एक उपडोमेन का नाम हो सकता है। उपडोमेन का यह लाभ है कि एक ही डोमेन नाम लेने के बावजूद आप पाँच छः अलग अलग सर्वरों पर अलग अलग उपडोमेन रख सकते हैं। अगर आप चाहें तो एक का दूसरे से वास्ता भी नहीं हो। उदाहरणार्थ, blogspot.com वालों ने एक ही डोमेन का पैसा दे के अलग अलग प्रयोक्ताओं को अलग अलग उपडोमेन में चिट्ठे बनाने की सुविधा दी है। उपडोमेन होना अनिवार्य नहीं है, अगर आप अपने डोमेन पर एक ही स्थल चाहते हैं तो कोई आवश्यक नहीं है कि उपडोमेन रहे।

तो फिर यह www है क्या?

एक परंपरा सी बन गई है कि अगर किसी स्थल का उपडोमेन न हो तो उसका उपडोमेन www मान लिया जाता है। इसीलिए, अधिकतर डीएनएस प्रबन्धक आजकल www.example.com और example.com दोनो को एक दूसरे का पर्यायवाची बनाने का विकल्प देते हैं। यह अनिवार्य नहीं है, लेकिन पाठकगण यह उम्मीद करते हैं कि www.example.com और example.com एक ही चीज़ होगी इसलिए यह परंपरा चल पड़ी है।

क्या http: का मतलब चिट्ठा, और www का मतलब जालस्थल?

जी नहीं। चिट्ठा वास्तव में है क्या? एक खास प्रारूप में जानकारी प्रदान करने वाला जालस्थल ही तो। और कुछ नहीं।

http का इस्तेमाल तो हर जालस्थल को पुकारने के लिए होगा - चाहे वह चिट्ठा हो या नहीं। यह मात्र संबोधन है। www एक उपडोमेन है, पारंपरिक उपडोमेन, जो किसी भी डोमेन के आगे लगाया जा सकता है। चाहें वह डोमेन चिट्ठे का हो या किसी और स्थल का।

एक उदाहरण के साथ समझते हैं।

अगर आप

तो एक ही पन्ना खुलता है - क्योंकि www और बिना उपडोमेन वाल स्थल हैं तो अलग अलग, लेकिन एक ही जगह अग्रेषित किए गए हैं।

लेकिन ऍडसेंस निर्माता गोकुल राजाराम के स्थल, पर देखिए -

उन्होंने यह अग्रेषण लागू नहीं किया है! यह अग्रेषण करना ज़रूरी नहीं है, बस पाठकों के लिए सुविधाजनक है इसलिए इसकी परंपरा बन गई है।

आशा है अब चश्मे के बाहर लगी धूल साफ़ हो गई होगी।

या उँगलियों के निशान रह गए हैं?

पुनश्च - पिछले सन्देश के बारे में बाल किशन जी ने पूछा है कि क्या मैं उनकी डोमेन, डाक पते आदि संबधी मदद करूँगा क्या। जवाब यही है कि जी हाँ बिल्कुल। और केवल बाल किशन जी ही नहीं, यदि आप में से किसी और को भी कोई प्रश्न हों तो बेधड़क पूछें।

3.6.08

सिर्फ़ पाँच मिनट और चार कदमों में अपने पते को meraanaam@gmail.com के बजाय mera@meraanaam.in करें, और पुराना पता भी जारी रखें

आइए आज देखते हैं कि आप अपने फ़ोकटी जीमेल के पते के बजाय अपने डोमेन वाले पते का इस्तेमाल कैसे कर सकते हैं। और वह भी पुराना पता गँवाए बगैर।

  1. आपको एक डोमेन खरीदना होगा। .इन डोमेन ८०० रुपए सालाना में मिलते हैं।
  2. इसके बाद अपने डोमेन के डीऍनऍस प्रबन्धन में जा के मेल फ़ॉर्वर्ड का विकल्प चुन लें। मैंने ज़ोनएडिट का इस्तेमाल किया है।
  3. इसके बाद इस प्रकार जानकारी प्रदान करें। - * @ meraanaam . in is forwarded to meraanaam @ gmail . com और जोड़ दें।
  4. आपको चेतावनी दी जाएगी, Are you sure you want to do this? This will delete your MX records. यहाँ पर हाँ चुनें और आगे बढ़ें।

हो गया काम। ऊपर * देने का अर्थ है कि इस डोमेन की सारी डाक एक ही पते पर अग्रेषित की जाए। अगर आप कोई खास नाम चाहते हैं तो * के बजाय कुछ और दें जैसे कि अपना नाम। ऐसा करने से केवल meraanaam@meraanaam.in को भेजी डाक आपतक पहुँचेगी पर kuchhbhi@meraanaam.in वाली डाक आप तक नहीं पहुँचेगी। एक से अधिक प्रविष्टियाँ भी डाल सकते हैं।

अब, आप अपनी जीमेल की डाक पेटी में, अपनी जीमेल वाली डाक के साथ साथ, meraanaam . इन वाली डाक भी पा सकेंगे।

यह तो हुई डाक प्राप्त करने की बात। लेकिन उसी पते से डाक भेजेंगे कैसे? चार कदम और –

  1. अपने जीमेल खाते में सेटिंग्स पर जा के “खाते” वाले खाँचे में जाएँ – अंग्रेज़ी में यह ऍकाउण्ट्स के नाम से मिलेगा।
  2. यहाँ पर अपना नया डाक पता भी प्रविष्ट कर दें। आपसे पुष्टि करने को कहा जाएगा, कुछ समय बाद पुष्टि डाक आएगी, पुष्टि कर दें कि यह पता आपका ही है।
  3. पत्रोत्तर/उत्तरापेक्षी – में आप विकल्प चुन सकते हैं कि जिस खाते से डाक आई है, उसी नाम से जवाब भी दिया जाए। इस प्रकार, @gmail वाली डाक का जवाब @gmail से ही, और @meraanaam वाली डाक का जवाब @meraanaam से ही दिया जा सकता है।
  4. नई चिट्ठी लिखने का प्रयास करें। अब आपको प्रेषक वाले कोष्ठक में भी विकल्प मिलेगा, कि किस नाम से डाक भेजनी है। आप खाते के जमाव में यह भी तय कर सकते हैं कि किस पते को वरीयता दी जाए, ताकि आप फ़टाफ़ट अपनी इच्छानुसार, जीमेल या अपने नाम वाली डाक भेज सकें।

बस, हो गया काम। अब हम होते हैं नौ दो ग्यारह। कूटशब्द एक ही याद रखना है, डाक जाँचने के लिए बस एक ही जगह देखना है, लेकिन आएगी दोनो जगहों से!

कुछ और नुस्खे, वैकल्पिक –

  1. आप चाहें तो एक नज़र में पता लगा सकते हैं कि डाक कौन से खाते से आई है। इसके लिए छननी बना लें – यदि प्राप्तकर्ता @ meraanaam . in है तो उसपर चिप्पी लगा दें, और चिप्पी को अलग रंग दे दें।
  2. अगर आप चाहते हैं कि लोग आपकी जीमेल के बजाय @meranaam .in का इस्तेमाल करना शुरू कर दें, तो बस हर डाक का जवाब @meraanaam .in वाले पते से देना शुरू कर दें। धीरे धीरे वही अधिक प्रचलित हो जाएगी, और जीमेल वाली डाक तो आपके पास आएगी ही।
  3. abuse@ meraanaam .in , postmaster@ meraanaam .in पर खास नज़र रखें, इनके लिए जीमेल में अलग छननी बना के रख सकते हैं।
  4. अपने जालस्थलों और चिट्ठों और हस्ताक्षर में नया पता लिखना न भूलें!

है न पाँच मिनट का काम?

सिर्फ़ पाँच मिनट और चार कदमों में अपने पते को meraanaam@gmail.com के बजाय mera@meraanaam.in करें, और पुराना पता भी जारी रखें

मुआफ़ कीजिए, गड्ड मड्ड हो के लेख यहाँ पहुँच गया है:

http://devanaagarii.net/hi/alok/blog/2008/06/meraanaamgmailcom-merameraanaamin_2430.html
आपसे एक और चटका लगवाने के लिए मुआफ़ी!