5.6.08

ये http और www क्या है? क्या http माने जालस्थल और www माने चिट्ठा?

पिछले कुछ दिनों में कुछ लेख पढ़ने को मिले जिनसे ऐसा लगा कि इस www और http के बारे में खुलासा देना ज़रूरी है। आखिरकार आप स्वादिष्ट भोजन खाते हैं, तो यह उत्सुकता तो होती ही है न कि उसमें डाला क्या गया है? पकाया कैसे गया है? उसी तरह भले ही आप केवल जालस्थलों के पाठक हों, या केवल चिट्ठा चलाते हों तो भी यह पता होना अच्छा ही है कि किसी भी जालस्थल के पते के मायने क्या हैं। दरअसल जब तक मैं भी केवल खाता ही था, पकाता नहीं था, इन सब शब्दों के बारे में मुझे भी कई भ्रान्तियाँ थीं, और इन भ्रान्तियों के चलते मैंने कई लोगों को अनजाने में ही सही, पर गुमराह भी किया है।

इसलिए यह वाजिब ही है कि इस विषय में अब तक जो सीखा है उसे आपके सामने रखूँ और इस सिलसिले में और ज्ञान भी पाऊँ।

पहले समझते हैं कि यूआरऍल - यूनिफ़ार्म रिसोर्स लोकेटर - "संसाधनों के समरूपी पते" के क्या अंश होते हैं, एक उदाहरण के साथ।

http://translate.google.com/translate_t/?langpair=hi|en
  1. पहला हिस्सा - http:// - है प्रोटोकॉल। यह बताता है कि इस पते तक पहुँचने के लिए आपके ब्राउज़र को किस कंप्यूटरी भाषा का प्रयोग करना होगा। एक तरह से, यह वास्तव में पता नहीं है, श्री, सुश्री की तरह सम्बोधन जैसा है।
  2. दूसरा हिस्सा - पहली बिन्दु तक - translate - यह उपडोमेन है। इसके बारे में थोड़ी देर में, पहले तीसरे हिस्से को समझ लें।
  3. तीसरा हिस्सा - पहले / तक - google.com - यह डोमेन है। डोमेन वास्तव में एक (अधिकतम १२ अंकों की) संख्या होता है, पर इंसानों को नंबर से ज़्यादा नाम याद रहते हैं, इसलिए डोमेन नामों का प्रचलन है। इस १२ अंक की संख्या को आईपी कहते हैं। और आईपी से डोमेन नाम तथा डोमेन नाम से आईपी पता लगाने की निर्देशिका का काम डोमेन नाम सर्वर करते हैं। इसे डीएनएस प्रबन्धन भी कहा जाता है।
  4. चौथा हिस्सा - ? तक - translate_t/ - यह पथ है। जालस्थल जिस सर्वर पर है, वहाँ अलग अलग फ़ाइलें अलग अलग निर्देशिकाओं में होती हैं। उनका पथ डोमेन नाम के ठीक बाद रहता है।
  5. पाँचवाँ हिस्सा - ? के बाद - langpair=hi|en - परिमाण हैं। किसी पथ पर मौजूद फ़ाइल को कोई और परिमाण प्रदान करने हों तो इसका इस्तेमाल होता है।

आइए अब समझते हैं कि http क्या है और www क्या है। http तो वास्तव में संबोधन ही है, पता नहीं है। http के अलावा ftp, news, file, https आदि संबोधन भी होते हैं। किसी भी जालस्थल के लिए http या https का संबोधन ही लगेगा। आपने देखा होगा कि यदि आप अपने ब्राउज़र में अगर http:// नहीं लिखते हैं तो भी वह स्वतः ही आगे श्री या सुश्री की तरह http:// चेंप देता है।

www - ऊपर दिए गए उदाहरण में दूसरा अंश - उपडोमेन का है। जिस प्रकार ऊपर translate एक उपडोमेन है, उसी तरह www भी एक उपडोमेन का नाम हो सकता है। उपडोमेन का यह लाभ है कि एक ही डोमेन नाम लेने के बावजूद आप पाँच छः अलग अलग सर्वरों पर अलग अलग उपडोमेन रख सकते हैं। अगर आप चाहें तो एक का दूसरे से वास्ता भी नहीं हो। उदाहरणार्थ, blogspot.com वालों ने एक ही डोमेन का पैसा दे के अलग अलग प्रयोक्ताओं को अलग अलग उपडोमेन में चिट्ठे बनाने की सुविधा दी है। उपडोमेन होना अनिवार्य नहीं है, अगर आप अपने डोमेन पर एक ही स्थल चाहते हैं तो कोई आवश्यक नहीं है कि उपडोमेन रहे।

तो फिर यह www है क्या?

एक परंपरा सी बन गई है कि अगर किसी स्थल का उपडोमेन न हो तो उसका उपडोमेन www मान लिया जाता है। इसीलिए, अधिकतर डीएनएस प्रबन्धक आजकल www.example.com और example.com दोनो को एक दूसरे का पर्यायवाची बनाने का विकल्प देते हैं। यह अनिवार्य नहीं है, लेकिन पाठकगण यह उम्मीद करते हैं कि www.example.com और example.com एक ही चीज़ होगी इसलिए यह परंपरा चल पड़ी है।

क्या http: का मतलब चिट्ठा, और www का मतलब जालस्थल?

जी नहीं। चिट्ठा वास्तव में है क्या? एक खास प्रारूप में जानकारी प्रदान करने वाला जालस्थल ही तो। और कुछ नहीं।

http का इस्तेमाल तो हर जालस्थल को पुकारने के लिए होगा - चाहे वह चिट्ठा हो या नहीं। यह मात्र संबोधन है। www एक उपडोमेन है, पारंपरिक उपडोमेन, जो किसी भी डोमेन के आगे लगाया जा सकता है। चाहें वह डोमेन चिट्ठे का हो या किसी और स्थल का।

एक उदाहरण के साथ समझते हैं।

अगर आप

तो एक ही पन्ना खुलता है - क्योंकि www और बिना उपडोमेन वाल स्थल हैं तो अलग अलग, लेकिन एक ही जगह अग्रेषित किए गए हैं।

लेकिन ऍडसेंस निर्माता गोकुल राजाराम के स्थल, पर देखिए -

उन्होंने यह अग्रेषण लागू नहीं किया है! यह अग्रेषण करना ज़रूरी नहीं है, बस पाठकों के लिए सुविधाजनक है इसलिए इसकी परंपरा बन गई है।

आशा है अब चश्मे के बाहर लगी धूल साफ़ हो गई होगी।

या उँगलियों के निशान रह गए हैं?

पुनश्च - पिछले सन्देश के बारे में बाल किशन जी ने पूछा है कि क्या मैं उनकी डोमेन, डाक पते आदि संबधी मदद करूँगा क्या। जवाब यही है कि जी हाँ बिल्कुल। और केवल बाल किशन जी ही नहीं, यदि आप में से किसी और को भी कोई प्रश्न हों तो बेधड़क पूछें।

6 टिप्‍पणियां:

  1. वाह-वाह! अन्तर्जाल तकनीक पर आप ऐसे ही आलोक डालते रहें और हमें होमवर्क देते रहें। कतरा कतरा सीख कर के हम अपनी अफसर बिरादरी में कम्प्यूटर एक्सपर्टत्व छांटने लायक जरूर हो जायेंगे!:)

    जवाब देंहटाएं
  2. एक्स्पर्टत्व - वाह क्या ईजाद है!

    जवाब देंहटाएं
  3. जानकारी के लिये आभार,

    जवाब देंहटाएं
  4. धन्यवाद अलोक जी.
    मैं जल्द ही आपको परेशान करने के लिए हाजिर होऊंगा.
    इस लेख मी प्रस्तुत जानकारियों के लिए आभार.
    वास्तव मे कुछ धुल तो साफ हुई है पर चूँकि धुल की मात्रा ज्यादा है इसलिए पुरी साफ होने मे समय लगेगा.
    मैं कोशिश जारी रखूँगा.

    जवाब देंहटाएं
  5. www एक उपडोमेन है, पारंपरिक उपडोमेन, जो किसी भी डोमेन के आगे लगाया जा सकता है। चाहें वह डोमेन चिट्ठे का हो या किसी और स्थल का।
    आलोक जी, ये कथन सर्वदा-सत्य नही है।
    जैसे rcmishra.in पर और www.rcmishra.in पर यदि मेरा हॉस्ट सीमित संख्या मे उपडोमेन देता है तो www हमेशा उपडोमेन नही है।
    कृपया,गोकुल राजाराम जी की वेबसाइट का पता सही कर लीजिये और साइड बार मे मेरे नाम का लिन्क भी :)।

    एक सुझाव, इसी लेख मे टॉप लेवेल डोमेन (TLD e.g. .com, .net, .in) के बारे मे भी लिख दीजिये।

    जवाब देंहटाएं
  6. धन्यवाद rc mishra जी! ठीक कर दिया है। और आप सही कह रहे हैं, www उपडोमेन पूर्णतः वैकल्पिक है। नाम के बारे में आपको डाक लिखी है!

    जवाब देंहटाएं

सभी टिप्पणियाँ ९-२-११ की टिप्पणी नीति के अधीन होंगी। टिप्पणियों को अन्यत्र पुनः प्रकाशित करने के पहले मूल लेखकों की अनुमति लेनी आवश्यक है।