28.9.08

कुछ राजनीति हो जाए

आमतौर पर तो मैं राजनीति फाजनीति में दिलचस्पी नहीं लेता लेकिन यहाँ मामला थोड़ा संजीदा है, क्योंकि जब १९९८ में हमारे नाभिकीय विस्फोट की खबर अखबार में दिखी थी - हाँ उन दिनों जिस गाँव में मैं था वहाँ अगले दिन के अखबार से ही खबरें पता चलती थीं - तो मुझे अच्छी तरह याद है कि अखबार को कम से कम आधे घंटे तक एकटक देखता रहा था। एक एक शब्द पढ़ा था। ऐसा लगा था कि हाँ, हम भी किसी से कम नहीं है। शायद उसी विश्वास और गर्व की अनुभूति की वजह से लगी लगाई नौकरी छोड़के कंप्यूटरों की पढ़ाई शुरू की। शायद उसी वजह से मैं आज यहाँ पर यह लिख पा रहा हूँ, वरना मेरी दुनिया दूसरी वाली ही होती।

लेकिन इस लेख में दिए दो लोगों के विचार - एक आणविक ऊर्जा समिति के पूर्वाध्यक्ष और एक संसद सदस्य - और तथ्यों का खुलासा - यह बताता है कि आणविक समझौता हमें वहाँ ठेल रहा है जहाँ हम १९६० से न जाने की कोशिश कर रहे हैं।

यह समझौता पारित होने के बाद अमरीकी संसद ने कुछ सवाल पूछे, उनके जवाब में अमरीकी प्रशासन ने जो कहा, उससे साफ़ है कि भारत अपने रिऍक्टरों को अमरीका के निरीक्षण में ला रहा है, और अगर हम एक भी नाभिकीय परीक्षण - एक भी अणु बम - फिर से परीक्षित करते हैं, तो यह सहयोग तो बन्द होगा ही, और किसी देश से सहयोग न मिले, इसकी भी अमरीकी पुरज़ोर कोशिश करेंगे। इतना ही नहीं अगर यह समझौता किसी वजह से रद्द होता है - तो अमरीकी एक एक ग्राम यूरेनियम वापस माँगेगे। यह सब जानते हुए भी हमारी सरकार इसे मान गई है।

यानी, परमाणु परीक्षण करने के बाद, सशक्त की तरह बातचीत करके कुछ पाने के बजाय घुटने टेकू काम।

अफ़सोस! शायद यह अशिक्षितों को मतदान का अधिकार देने का खामियाजा है। और शिक्षितों के रोजी रोटी में "बिज़ी" रहने का।

6 टिप्‍पणियां:

  1. बढ़िया लिखा है आपने। सक्रियता बनाए रखें। शुभकामनाएं।
    www.gustakhimaaph.blogspot.com
    पर ताकझांक के लिए आपका स्वागत है।

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  2. थोड़ा सुधार करना चाहूंगा आलोक भाई- यह अधिकांश मतदाताओं को अशिक्षित बनाए रखने का खामियाजा है। और शिक्षितों के रोजी रोटी में "बिज़ी" रहने का।

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  3. बेनामी5:10 pm

    बढीया लेख लीखले बाड। औरी नाया नाया चीज लगईले बाड अब्लाग में

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  4. भाई, बहुत मस्त ब्लॉग है। समय निकालकर मेरे ब्लॉग पर भी आएं श्रीमान। एक चटका लगाकर तो देखें- http://hindivani.blogspot.com

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  5. शायद उसी विश्वास और गर्व की अनुभूति की वजह से लगी लगाई नौकरी छोड़के कंप्यूटरों की पढ़ाई शुरू की। शायद उसी वजह से मैं आज यहाँ पर यह लिख पा रहा हूँ,
    और शायद हम भी उसी वजह से लिख पा रहे हैं, अगर आप शुरुआत नहीं करते तो शायद हिन्दी में ब्लॉग अब तक शुरु हो गया होता..?
    मुझे संशय है।

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  6. बेनामी4:43 pm

    आज काल राजनीती के नाम से ही डार लगता है भैया, राज जी की राजनीती देख लो समझ में आ जायेगा

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