मानना पड़ेगा काठमण्डू के मदन पुरस्कार पुस्तकालय को, जिन्होंने तीन तीन देवनागरी की मुद्रलिपियाँ तैयार की हैं। एक नमूना, काञ्जिरोबा मुद्रलिपि का।
इसके अलावा वे कालीमति व थ्याका रबिसन मुद्रलिपियाँ भी बना चुके हैं। जय नेपाल।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
सभी टिप्पणियाँ ९-२-११ की टिप्पणी नीति के अधीन होंगी। टिप्पणियों को अन्यत्र पुनः प्रकाशित करने के पहले मूल लेखकों की अनुमति लेनी आवश्यक है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
सभी टिप्पणियाँ ९-२-११ की टिप्पणी नीति के अधीन होंगी। टिप्पणियों को अन्यत्र पुनः प्रकाशित करने के पहले मूल लेखकों की अनुमति लेनी आवश्यक है।