30.5.08

डोमेन तो ठीक है, पर ये सीनेम क्या है? अपने डोमेन पर ब्लॉगर.कॉम वाला चिट्ठा चढ़ाने के बारे में थोड़ा और विस्तार से

पिछले लेख में अपने डोमेन पर ब्लॉग्स्पॉट.कॉम वाले चिट्ठे को चढ़ाने के बारे में जो टिप्पणियाँ आई हैं उससे लगता है कि अब बहुत लोग इस सुविधा का इस्तेमाल करने में दिलचस्पी रखते हैं।

पिछले लेख में कुछ लोगों को यह नहीं समझ आया था कि पहला कदम - डोमेन खरीदना - और तीसरा कदम - ब्लॉग्स्पॉट को डोमेन के बारे में बताना - के बीच में क्या करना है। मुझे भी पहली बार नहीं समझ आया था। अमित और विपुल ने इस मामले में शुरुआत में मेरी काफ़ी मदद की थी, तो अब वही जानकारी विस्तार से आप लोगों के लिए।

जब आप डोमेन खरीदेंगे तो आपको एक कड़ी दी जाएगी जिसमें अपने डोमेन से संबंधित कुछ बदलाव - जैसे नाम, पता, डाक पता आदि - करने की सुविधा होती है। उसी में एक विकल्प है नेमसर्वर बदलने का।

अगर आप आतिथ्य - होस्टिंग - भी खरीदते हैं तो आपको अपने होस्ट का नेमसर्वर यहाँ लगाना होगा, लेकिन हमें इस काम के लिए होस्टिंग नहीं चाहिए, होस्टिंग तो ब्लॉगर.कॉम वाले ही कर रहे हैं, वह भी मुफ़्त में, हमारा तो सिर्फ़ नाम है - इसलिए हमें अपने नाम के लिए एक एलियास बनाना होगा - यानी meranaam.in बनाम गूगल।

इसी बनाम करने की प्रक्रिया को CNAME बनाना कहते हैं।

CNAME जोड़ने का एक तरीका यह है -

  1. http://zoneedit.com में एक खाता खोलें। खाते में वही डाक पता दें जो आपने डोमेन पंजीकरण के समय दिया था। इससे ज़ोनएडिट को पुष्टि होगी की आपका ही स्थल है।
  2. यहाँ पर अपने खरीदे हुए डोमेन को एक ज़ोन बना दें। यह बनाने के बाद ज़ोनएडिट बताएगा कि आपको अपने डोमेन के नेमसर्वर में किन दो नेमसर्वरों के नाम डालने हैं।
  3. अपने डोमेन प्रदाता की कड़ी पर जा के ज़ोनएडिट वाले नेमसर्वर वहाँ प्रदान कर दें।
  4. इसके बाद, एलियास जोड़ दें, जैसे मैंने एक स्थल के लिए जोड़े हैं - काले वाले हिस्से में meranaam होगा - आपके डोमेन का नाम। अगर आपके कई चिट्ठे हैं तो आप कई CNAME जोड़ सकते हैं, अगर एक ही है और उसका नाम meranaam.in ही रखना चाहते हैं तो meranaam के पहले कुछ लगाने की ज़रूरत नहीं है। यह करके इसे सँजो लें। ज़ोनएडिट

बस हो गया काम।

अब, जब भी कोई आपके स्थल पर जाने की कोशिश करेगा, तो पहले आपके डोमेन के नेमसर्वर पढ़े जाएँगे। पता लगेगा कि यह तो ज़ोनएडिट के हैं, ज़ोनएडिट फिर एलियास की बदौलत पाठक को सही जगह भेज देगा, लेकिन आपके स्थल पर यूआरएल में डोमेन आपका ही दिखेगा। ज़ोनएडिट की सेवा बिल्कुल मुफ़्त है।

वैसे तो कुछ डोमेन प्रदाता भी इस प्रबन्धन की सुविधा देते हैं - ताकि ज़ोनएडिट पर जाना न पड़े। डोमेन प्रदाता द्वारा दी कड़ी पर सत्रारंभ करके एक बार देख लें कि ऐसी सुविधा वही दे रहा है क्या - तो काम और आसान हो जाएगा।

अगर आपको ज़्यादा कुछ समझ न आया हो तो कृपया पहले पिछला लेख पढ़े लें।

उम्मीद है आप लोग दाल चावल अलग कर पाएँगे अब। अगर नहीं तो लिखें! अब हमें है दफ़्तर जाना, हम होते हैं नौ दो ग्यारह।

29.5.08

3 कदमों और 800 रुपए सालाने में अपने डोमेन पर अपना चिट्ठा चढ़ाएँ - बाकी सब कुछ वैसा ही जैसा ब्लॉग्स्पॉट पर। है न आसान? बन गई पहचान!

  1. रीडिफ़ पर जा के एक डोमेन खरीदें।* जैसे कि meranaam.in, कीमत करीब 800 रुपए सालाना।
  2. डोमेन में CNAME प्रविष्टि डालें - ताकि example.in पहुँचे ghs.google.com पर। आधिकारिक जानकारी
  3. ब्लॉगर.कॉम के खाते में सेटिंग्स -> प्रकाशन पर जा के, "कस्टम डोमेन" को चुनें। देखें - उसके बाद, "उन्नत सेटिंग्स पर जाएँ" और अपना डोमेन नाम दे के सँजो लें। देखें -

बस! आपका चिट्ठा puraanaanaam.blogspot.com के साथ साथ अब meranaam.in पर भी दिखेगा!

* कुछ अपेक्षित शकों और सवालों के जवाब -

  • ज़रूरी नहीं की आप रीडिफ़ से ही डोमेन खरीदें, आप कहीं और से भी ले सकते हैं। .इन डोमेनों के रजिस्ट्रारों की सूची मेरा रीडिफ़ से कोई व्यावसायिक नाता नहीं है, उदाहरण के रूप में लिखा।
  • आप चाहें तो .इन के बजाय .कॉम भी ले सकते हैं पर .इन ज़्यादा मज़ेदार है!
  • पुराने ब्लॉग्स्पॉट वाले डोमेन का क्या होगा? वहाँ की सारी कड़ियाँ यहाँ की जैसी दिखेंगी पुराने पाठक वैसे के वैसे बँधे रहेंगे
  • फ़ीड की कड़ी बदलनी होगी क्या? नहीं, वह जस की तस रहेगी।
  • ghs है गूगल होस्टिंग सर्विस। दरअसल सीनेम के जरिए होता बस इतना है कि जब भी कोई example.in पर जाएगा, तो उसे सीधे ghs.google.com पर भेज दिया जाता है। पाठक को ऊपर दिखता है example.in, लेकिन वास्तव में सब काम ghs.google.com पर हो रहा है!
  • अगर आप प्रोग्रामर नहीं है, और वर्ड्प्रेस के टंटे, होस्टिंग के खर्चे से बचते हुए भी अपनी पहचान बनाना चाहते हैं, या अपनी पहचान को और सशक्त बनाना चाहते हैं, तो यह तरीका अत्युत्तम है। आपके लेखन, संपादन, टिप्पणी सूत्रधारी वैसे ही चलती रहेगी जैसी ब्लॉग्स्पॉट पर।
  • इतना ध्यान रखें कि इसके बाद आपको पैसे हर साल जमा कराने होंगे - नहीं कराएँगे तो वही हाल होगा जो भाड़ा न देने वाले किरायेदार का होता है।
  • संकलकों और खोजी स्थलों पर नया नाम आने से कोई फ़र्क पड़ेगा? पड़ सकता है, संकलक पर निर्भर करता है। पर आपकी पुरानी कड़ियाँ भी चालू रहेंगी इसलिए दिक्कत नहीं आनी चाहिए। अगर डोमेन नाम याद रखने में सरल हो और लिखने में छोटा, तो अधिक पाठक सीधे आएँगे। इसलिए नाम सोच समझ के चुनें।

आप चाहें तो पहले अपने डोमेन का उपडोमेन बना सकते हैं और फिर उस उपडोमेन के लिए सीनेम दे सकते हैं, जैसे कि bakbak.meranaam.in - ताकि यदि चाहें तो अपने डोमेन के बाकी हिस्से पर बाद में कुछ और डाल सकें।

जीता जागता उदाहरण - चिट्ठाजगत का आधिकारिक चिट्ठा - http://chittha.chitthajagat.in - इसी विधि से ही प्रकाशित होता है!

कोई और शक या सवाल?

पुनश्च - रामचन्द्र मिश्र जी का http://hindi.rcmishra.net/ भी इसी सेवा के तहत चलता है।

पुनश्च २ - कुछ जानकारी अगले लेख में भी है।

27.5.08

टाटा इंडिकॉम: महीने के तीन हज़ार रुपए, और इस बस में सबके लिए जगह है।

टाटा इंडिकॉम का प्लग टु सर्फ़ ले तो लिया – लेना ही पड़ा, मजबूरी जो थी। लेकिन बिल बड़ा ज़बर्दस्त आया।

बीस दिन के अन्दर १९०० रुपए(जी हाँ, उन्नीस सौ रुपए) का ठुच्चा लग गया। यह पता भी तब चला जब उन्होंने फ़ोन किया कि आपका फ़ोन बंद कर दिया गया है, पहले पैसे जमा कराओ।

 

चुनाँचे, मरता क्या न करता, कल उनके दफ़्तर में पैसे जमा कराने गया। ऑफ़िस तो चकाचक, एसी वाला था। वहाँ पर मौजूद महोदय ने सोलह सौ रुपए भरवाए(चार सौ पिछत्तर रुपए की रियायत है हर महीने, छः महीने तक), और फिर कहा कि आपका काम फिर चालू है। मैंने पूछा कि भइया हर महीने तीन हज़ार की चपत लगाओगे क्या? उसने कहा कि आप पीछे वाली देवी जी से बात करके दूसरी स्कीम ले लें, वह मैंने ले ली।

 

इस स्कीम में ९०० रुपए में डेढ़ जीबी का इस्तेमाल किया जा सकता है, महीने के अन्दर। उम्मीद है कि अब तो नौ सौ से ज़्यादा का बिल नहीं आएगा, और आ गया तो मुझे शक होगा कि कहीं घपला तो नहीं है। क्योंकि डेढ़ जीबी महीने भर में निपटाना बहुत मुश्किल है। पर अगले महीने बलि का बकरा बन के ही जाँचा जा सकता है, और कोई तरीका तो है नहीं।

 

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बाकी की खबर में यही है कि काठ की हाँडी बार बार नहीं चढ़ती है। इस बार कतई नहीं चढ़ी। बहुत खुशी हुई। पुराने दोस्त कहते हैं कि हम तो पक गए, अब लिखने का मन ही नहीं करता। मैं यही कहता हूँ कि उँगली को काटने के बजाय बड़ी उँगली आगे लाओ, दूसरी अपने आप छोटी हो जाएगी – बीरबल शैली में, लेकिन कभी हुआ ही नहीं ऐसा। उम्मीद है कि लोगबाग नींद से जागेंगे, और उँगली को बड़ा करेंगे, और हाहाहीहीहोहो को उतनी ही तवज्जो देंगे जितनी देनी चाहिए, इसमें समय नष्ट करने के बजाय हम लोग लाइव्जर्नल का हिन्दी अनुवाद करेंगे, वर्ड्प्रेस के नए उद्धरण को हिन्दी में ले के आएँगे, नए दक्ष लोगों को हिन्दी में लिखने के लिए प्रेरित करेंगे, नए औज़ार बनाने के लिए प्रेरित करेंगे, गूगल के अनुवाद की त्रुटियाँ ठीक कराएँगे और ऐडसेंस के विज्ञापनों से कमाई और अपने चिट्ठों की हिट्स की चिन्ता करना बन्द करेंगे। हममें से कई ने इतिहास बनाया है, उम्मीद है कि वह हड़प्पा और मोहनजोदड़ो बन कर न रह जाएगा, तक्षशिला और नालन्दा के गीत बनकर न रह जाएगा। उम्मीद है कि हम यह एहसास करेंगे कि चिट्ठों के बाहर भी अन्तर्जाल की बहुत बड़ी दुनिया है, जो कि साढ़े सत्ताईस चिट्ठों से बड़ी है। इतनी बड़ी है कि हमारी सङ्ख्या बढ़ने से यह अपने आप वायु की तरह और फैलती जाएगी, बिना अपना घनत्व और गांभीर्य खोए हुए।

 

मर्फ़ी का नियम – अन्तर्जाल प्रयोक्ताओं के अनुपात में बढ़ता रहता है।

 

इस बस में सबके लिए जगह है। अब हम होते हैं नौ दो ग्यारह। इंडिकॉम का बिल जो बढ़ रहा है।

19.5.08

उर्दू(नस्तलीक़) से हिन्दी(देवनागरी) के बारे में कुछ, और कुछ विकीपीडिया के बारे में भी, और जयपुर विस्फोट पर भी।

पिछले कुछ दिनों से चर्चा हो रही है, उर्दू से हिन्दी लिप्यन्तरण के बारे में। सोचिए अगर आप उर्दू के लेख देवनागरी में पढ़ सकें, तो कितना बढ़िया रहे? उसी तरह शाहमुखी(यानी वही नस्तलीक़) और गुरमुखी में लिखी पञ्जाबी को देवनागरी में पढ़ पाएँ तो कैसा रहे? मुझे तो लगता है कि बहुत बढ़िया रहेगा। उसी तरह सिन्धी के लेख भी।

अब मुझे नस्तलीक़ आती नहीं है, हालाँकि घर में एक किताब तो है उसे सीखने के लिए। उसके बाद भी, केवल वर्णमाला जानना काफ़ी नहीं है, क्योंकि संयुक्ताक्षर भी हैं।

 

पर यही सोच रहा हूँ, कि देवनागरी में पढ़ने लिखने वाले, अगर उर्दू के लेख भी पढ़ पाएँ, और देवनागरी में उन पर टिप्पणी भी कर पाएँ – जो कि छपें नस्तलीक़ में, तो कैसा रहे?

 

इस चर्चा की बदौलत, रमण कौल जी का यह लेख दुबारा पढ़ने का अवसर मिला। पहले भी पढ़ा था पर ज़्यादा ध्यान नहीं दिया था। इस बार पढ़ा तो दूसरे नज़रिये से पढ़ा। पर रमण जी अन्ततः यही कहते हैं कि अगर उर्दू वास्तव में ढंग से पढ़नी हो तो नस्लीक़ सीखें, वही सबसे अच्छा तरीका है। बात है भी सही, क्योंकि हिन्दी पढ़ने के लिए भी तो हम यही कहते हैं न कि देवनागरी सीखो!

 

पर अगर हम हिन्दी और उर्दू को मूलतः एक ही भाषा मानें, जो कि है भी, तो लिपि का अलग होना बेमानी हो जाता है, अर्थात् अगर अपनी सुविधानुसार लोग अपनी मर्ज़ी की लिपि में उर्दू और हिन्दी दोनों को पढ़ सकें तो चीज़ बढ़िया रहेगी। जिसे नस्तलीक़ में लिखना हो नस्तलीक़ में लिखे, जिसे देवनागरी में लिखना हो देवनागरी में। और पढ़ना वाला भी अपनी मर्ज़ी की लिपि चुन सके।

 

हाँ संस्कृतनिष्ठ और फ़ारसी-अरबी निष्ठ शैली की वजह से दिक्कतें होंगी पर अन्ततः इससे दोनो "भाषाओं"  की शब्दावली अधिक समृद्ध होगी।

 

आपको याद होगा पाकिस्तान में हुए क्रिकेट वर्ल्ड कप के पहले रन बढ़ाने के लिए कमेण्टेटर कभी "एक रन का इज़ाफ़ा" नहीं कहते थे, लेकिन अब यह भारत में भी रेडियो और टीवी पर आम हो गया है।

 

यही हाल "उर्दूभाषियों" का भी है। विनय ने इस पाकिस्तानी परम्परा के बारे में विस्तार से पहले लिखा है जो कि मुझे काफ़ी रोचक लगा।

 

पिछले कुछ दिनों उर्दू और पञ्जाबी के बारे में मोहल्ला पर लेख भी आए, वह भी दिलचस्प थे।

 

आश्चर्य की बात है कि जिस लिपि को मेरे चारों पितामह-मातामह पढ़ते लिखते थे, वह उसकी ठीक अगली पीढ़ी वाले कतई नहीं जानते। पता चलता है इससे कि कुछ भी उड़न छू हो सकता है, डेढ़ पीढ़ी के फ़ासले में।

 

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जयपुर विस्फोटों के ऊपर कई लेख लिखे गए, शायद किसी आतङ्की हमले पर हिन्दी में पहली बार इतने ज़्यादा लेख लिखे गए हैं। अब यह न कहिए कि लेख लिखने के अलावा कुछ किया क्या? वह सवाल अलग है। शायद, अगर विभाजन के दस्तावेज़ होते, लोग अपने पर बीती को कलमबद्ध करते, तो हमें यह अहसास तो होता कि वास्तव में क्या हुआ, क्यों हुआ, उसकी पुनरावृत्ति से कैसे बचें?  आने वाली पीढ़ियों को यह जानना ज़रूरी होगा कि इस पीढ़ी ने जयपुर में हुए विस्फोटों पर क्या प्रतिक्रिया की थी। पर उसके लिए अपन को आपसी गाली गलौज में से थोड़ा समय निकालना पड़ेगा – मुश्किल ही लगता है!

 

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ऊपर दिए लेखों में से कुछ में विकिपीडिया की कुछ कड़िया हैं। पर हिन्दी वाले की नहीं, अङ्ग्रेज़ी वाले की। कारण शायद यही है कि वह लेख हिन्दी में मौजूद नहीं हैं, केवल अङ्ग्रेज़ी में हैं, लेकिन यह अपने हाथ में हैं, यह समझना ज़रूरी है।

पर जब तक इस पर काम न किया जाए तब तक यह सब राजीव गाँधी के हमें देखना है, हम देखेंगे, वाले भाषण जैसा ही है।

 

अब मैं होता हूँ नौ दो ग्यारह, नस्तलीक़ सीखने। और विकिपीडिया पर खाता खोल लिया है

9.5.08

विस्फोट के विस्फोट का विश्लेषण अभी बाकी है, तब तक सेब पर काजोल वाला टाटा इण्डिकॉम लगाएँ

विस्फोट के विस्फोटित होने के बाद का लावा अभी ठण्डा नहीं हुआ है, गुत्थी सुलझती नहीं लग रही है, शायद कुछ और सामने आए।

तब तक देखते हैं कि सेब पर बेतार टाटा इण्डिकॉम (वही काजोल वाला) कैसे लागू किया जा सकता है। अगर आप सेब का इस्तेमाल नहीं करते, या आपके पास ब्रोडबैंड है, तो आपको इस लेख को पढ़ के कुछ खास मिलेगा नहीं। यह लेख ऑन्लाइन गरीबी रेखा से नीचे वालों के लिए है। हाँ सेब की लुभावनी तस्वीरें आप फिर भी देख सकते हैं।

सबसे पहले तो आपको टाटा इण्डिकॉम का प्लग टु सर्फ़ खरीदना होगा। उस खरीद फ़रोख्त के पचड़े में नहीं पड़ रहा हूँ, मान के चलते हैं कि वह आपके पास पहले है। न हो तो बताएँ। यह प्लग टु सर्फ़ सिर्फ़ एक बेतार यूऍसबी मॉडेम है, जो कि कुछ कुछ तम्बाखू और चूना रखने की डिब्बी के आकार का होता है, काले रंग की प्लास्टिक का। इसका ढक्कन खोल के यूऍसबी का सिरा चालू सेब में घुसेड़ें।

आपको यह सन्देश दिखना चाहिए। अगर नहीं दिख रहा तो इसका मतलब है कि आपकी डिब्बी में कुछ गड़बड़ी है, किसी विण्डोज़ मशीन में (जिसमें सीडी स्थापित हो) लगा के जाँच लें।

इसके बाद आप सिस्टम प्रिफ़रेंसे़ के अन्तर्गत नेट्वर्क में जाएँ।

यहाँ पर लोकेशन के बगल वाले बक्से पर चटकाने पर आपको क्वाल्कॉम का विकल्प भी दिखेगा। उसे चुन लें।

आपसे नाम पूछा जाएगा, अपनी पसन्द का नाम दें।

इसके बाद, प्रयोक्ता नाम, internet, कूटशब्द भी internet और फ़ोन नंबर #777 दें। हर डिबिया के लिए यही नाम,नम्बर हैं, कुछ अलग नहीं है।

शो मॉडम स्टेटस इन मीनू बार पर सही का निशान लगाएँ।

बस काम हो गया। अब, जब भी काम चालू करना हो, ऊपर लगे फोन पर चटका लगा के चालू करें और इच्छानुसार बन्द करें।

यह है भी काफ़ी तेज़, ब्रोड्बैण्ड से कुछ ही कम धीमा है। सेवा काफ़ी पसन्द आई। आप भी आजमा के देखें, मतलब अगर मेरी तरह मजबूर हों तो। विण्डोज़ और लिनक्स के निर्देश और सीडी तो इसके साथ ही आते हैं, लिनक्स पर मैंने अभी आजमाया नहीं है।

उपरोक्त जानकारी मुझे विष्णु से मिली, उन्हें धन्यवाद।

अन्ततः विस्फोट के विस्फोट के बारे में फिर से - आप में से जिन्होंने भी विस्फोट वाले मसले पर अपनी राय दी है उन सबको धन्यवाद। यह निश्चित है कि "विरोधी संकलक" का संचालक होने के नाते मेरी हर बात उसी चश्मे से देखी जाएगी, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि जो मैं सही समझता हूँ, वह न कहूँ। पुनः धन्यवाद। उसके बारे में फिर।

7.5.08

विस्फोट विस्फोटित हुआ - ज़िम्मेदार कौन? संकलक या चिट्ठा लेखक या पाठक? - आप जवाबदेह हैं

ताज़ी खबर है कि विस्फोट नामका चिट्ठा जो कि सञ्जय तिवारी जी चलाते हैं, अब ध्वस्त हो चुका है, विस्फोटित हो चुका है।

 

स्थल पर कोई कारण नहीं लिखा है कि ऐसा वास्तव में क्यों हुआ। स्थल पर मात्र इतनी जानकारी है, कि विस्फोट का चिट्ठा अब स्थायी रूप से बन्द हो चुका है (जी हाँ, स्थायी, अस्थायी नहीं)।

 

इतना ही नहीं विस्फोट पर लिखे सभी लेख मिटा दिए गए हैं।

 

क्यों हुआ यह सब? जानने की कोशिश करते हैं।

 

विस्फोट प्रारम्भ में सञ्जय तिवारी जी का निजी चिट्ठा था। सामयिक विषयों पर, और खासतौर पर पूर्वी उत्तर प्रदेश के जन जीवन के बारे में यहाँ लिखे लेख कई लोग चाव से पढ़ते आए हैं।

 

कुछ दिनो पूर्व सञ्जय जी ने विस्फोट को साथिया चिट्ठे की शक्ल देने का फैसला लिया।

 

लिखने वाले दर्जनों तैयार हो गए। यह सञ्जय जी की मेहनत और स्वभाव का ही फल है कि इतने लोग अपने आपको विस्फोट से जोड़ना चाहते थे।

 

कई लोगों ने विस्फोट पर लिखना शुरू किया। लेखों की सामग्री में कुछ खास बदलाव नहीं था, न अश्लीलता, न गाली गलौज। प्रासंगिक विषयों पर लेख, पहले की ही तरह। संजय जी ने बहुत सोच समझ के ही साथिया चिट्ठे की सदस्यता के लिए आमन्त्रण भेजे। इतना ही नहीं, आमन्त्रण खुला रखा। साथ ही, विस्फोट के स्थल से सभी विज्ञापन भी हटा दिए, यह भी लिखा कि वे विज्ञापन महान बनने के लिए नहीं हटा रहे हैं, बल्कि इसलिए हटा रहे हैं कि सामूहिक चिट्ठे में आय का बँटवारा कैसे हो, यह फैसला करना संभव नहीं है। उनके इस कदम की भी सबने दाद दी।

 

एक दिन अचानक – एक निजी सङ्कलक पर - हिन्दी चिट्ठों के चार से अधिक संकलकों में से एक - पर विस्फोट दिखना बंद हो गया।

 

अब ब्लॉगवाणी के चरित्र के बारे में कुछ गम्भीर बातें तो मैं पहले ही कर चुका हूँ, लेकिन यह लेख किसी निजी संकलक की सम्पादकीय नीति के बारे में नहीं है। देखते हैं कि इस मसले में आगे क्या हुआ।

 

बतङ्गड़ पर एक लेख छपा। लेख में आह्वान था, कि ये एग्रिगेटर इस तरह के शर्मनाक धंधे कब बंद करेंगे? सही बात है, कि अकेली मछली पूरा तालाब गंदा करती है, गलती की एक एग्रिगेटर ने, गाली मिली सभी को।

उसपर निजी संकलक के सञ्चालक महोदय का खुलासा आया कि फलाँ कारणों से यह चिट्ठा हटा दिया गया है। ठीक है, उनकी मर्ज़ी, वह तो हैं ही स्वान्तः सुखाय। सुखी रहें।

 

पर उसके कुछ ही मिनट बाद यह लेख भी बतङ्गड़ से गायब हो गया।

इतना ही नहीं,  निजी संकलक से भी गायब हो गया।

निश्चित रूप से बतङ्गड़ से बतङ्गड़ महोदय ने हटाया होगा - सञ्चालक तो वही हैं,  कोई और तो है नहीं। और निजी संकलक से, निजी संकलक के सञ्चालक ने।

 

जब उड़ाना ही था, तो लेख लिखने की आवश्यकता क्या थी, लेकिन वह तो बतङ्गड़ जी ही जानें।

 

अगले दिन सञ्जय तिवारी जी ने क्षुब्ध हो कर विस्फोट की सारी प्रविष्टियाँ उड़ा दीं।

 

कुल मिला के बात यह हुई -

 

एक निजी संकलक के सञ्चालक को अज्ञात कारणों से एक चिट्ठे के लेख पसंद नहीं आए, या शायद लेख पसंद नहीं आए। या कारण शायद कुछ और हो। या शायद कोई कारण न हो। निजी है भई। पर कारण है अज्ञात। इस वजह से निजी संकलक ने चिट्ठा अपने यहा से हटा दिया।

 

इस घटना पर एक और लेखक ने टीका टिप्पणी की। कुछ समय बाद इसी लेखक ने भी अपना लेख उड़ा दिया। पहले लिखा, और फिर उड़ा दिया। बिना कारण बताए।

 

इस सब से त्रस्त चिट्ठा सञ्चालक ने अपना चिट्ठा उड़ा दिया।

 

समझ नहीं आता है कि जब निजी संकलक वालों ने कह ही दिया है कि उनका सङ्कलक निजी, स्वान्तः सुखाय है, सर्वव्यापी नहीं है, वसुधैव कुटुम्बकम् नहीं है,  तो उनसे कोई उम्मीद क्यों? इतना निश्चित है कि अगर निजी संकलक के सञ्चालक की पसन्द के लेख, उनकी पसन्द के लेखक वापस विस्फोट पर आ जाएँ तो विस्फोट वहाँ दुबारा आ जाएगा।

 

लेकिन यह हाल तब है जब तीन और संकलकों पर विस्फोट लगातार छप रहा था। चार में से तीन संकलकों पर विस्फोट छप रहा था, और मुझे विश्वास है कि यदि सञ्जय जी अपने चिट्ठे के आँकड़े देखते तो वह पाते कि कई लोग विस्फोट पर सीधे आते हैं, संकलकों के जरिए नहीं।

 

सोचिए यह हाल है हमारे अग्रणी लेखकों का तो शुरुआती दौर से गुज़र रहे लेखकों का क्या हाल होता होगा? वह लोग कितने चिट्ठे बनाते होंगे और प्रोत्साहन न मिलने पर छोड़ देते होंगे, मिटा देते होंगे?

 

सञ्जय जी ने एक भी बार नहीं सोचा कि और संकलक - नारद, हिन्दी ब्लॉग्स और मेरे द्वारा सञ्चालित चिट्ठाजगत – मरे नहीं हैं। निष्पक्ष हैं। व्यक्तिगत खुन्न्स के लिए प्रविष्टियों में बदलाव नहीं करते। प्रविष्टियों के क्रमाङ्कन में हेर फेर नहीं करते। कड़वी दवा पिलाने वाले चिट्ठों को गायब नहीं करते। निजी नहीं हैं, अपनी सार्वजनिक ज़िम्मेदारी मानते हैं और समझते हैं।

 

आप संकलकों के ग्राहक हैं, संकलक कुछ गलत करते हैं तो आप उसके बारे में आवाज़ उठाने से डरते क्यों हैं? उनके विकल्पों को चुनने से क्यों डरते हैं? पूर्णतः संकलक मुक्त क्यों नहीं हो जाते?  उनके सामने घुटने क्यों टेकते हैं? निजी संकलकों के विकल्पों को प्रचारित क्यों नहीं करते?

 

आप सोच रहे होंगे कि यह देखो निजी संकलक का प्रतिद्वन्द्वी लोहा गरम देख के वार कर रहा है।  प्रतिद्वन्द्विता है भई, बिल्कुल है, पर उसका फ़ायदा तो पाठक और लेखक को होना चाहिए ? वह क्यों नहीं हो रहा?  और इसके लिए जिम्मेदार कौन है?

आप लोग क्यों एक ही निजी संकलक को भगवान बनाए बैठे हैं? क्यों उसे चने की झाड़ पर चढ़ाए बैठे हैं? रवि रतलामी जी कहते हैं कि अच्छा लिखने वाले को किसी संकलक की ज़रूरत ही नहीं है।

 

उससे एक कदम आगे जा के मैं यह कहता हूँ कि इस प्रकार की करतूतों को सामने लाना ज़रूरी है, बिना इस बात से डरे कि मैं सङ्कलक की बुराई करूँगा तो मेरे चिट्ठे का क्या होगा। अगर मेरे इस लेख की वजह से नौ-दो-ग्यारह, किसी निजी संकलक से नौ दो ग्यारह हो जाता है, तो हो जाए। मैंने चिट्ठा लिखना जब शुरू किया था तो संकलक का कहीं नामोनिशान नहीं था। मुझे नहीं लगता कि एक निजी संकलक से मेरा लेख हट जाएगा तो मेरा चिट्ठा लिखना बेकार हो जाएगा।

 

फ़ुरसतिया जी कह चुके हैं, चिट्ठा ही नहीं रहेगा तो संकलक क्या करेगा?

 

ज्ञान जी कह चुके हैं, मैं संकलकों में प्रतिद्वन्द्विता का अनुमोदन करता हूँ, क्योंकि इससे गुणवत्ता बढ़ेगी।

 

पर ऐसा लगता तो नहीं। इसका ज़िम्मेदार कौन है? क्या संकलक वाले हैं? या उनके पाठक? या लेखक?

 

 आपको क्यों लगता है कि किसी के निजी संकलक पर आपका लेख नहीं छपेगा तो आपका लेख लिखना बेकार है? यही सवाल है आपका जिसका जवाब मैं आपसे टिप्पणियों में चाहता हूँ।

 

ध्यान दें, मैं किसी टिप्पणी को मिटाता नहीं हूँ, और न ही बेनामी टिप्पणियाँ खुद करता हूँ। जो लिख रहे हैं, सोच समझ के लिखें, वह मिटेगा नहीं।

 

हाँ इस बहाने बतङ्गड़ जी की प्रतापगढ़ वाले धारावाहिक वृत्तान्त पढ़े, बहुत बढ़िया लगे, आप भी पढ़िएगा

 

 

सवाल दोबारा –

 

1.       क्या आपको लगता है कि आपका लेख किसी के निजी संकलक पर नहीं छपेगा तो आपका लिखना बेकार है?

2.       क्या दूसरे सङ्कलक, यानी नारद, हिन्दी ब्लॉग्स, और चिट्ठाजगत इतने गए गुज़रे हैं कि उन्हें बन्द हो जाना चाहिए?

3.       आप विस्फोट के सञ्चालक होते तो इस स्थिति में क्या करते? या दूसरे शब्दों में, यदि आपके साथिया या निजी चिट्ठे के साथ ऐसा होता तो आप क्या करते?

 

जवाब दीजिए, आप जवाबदेह हैं। कृपया निजी संकलकों की सम्पादकीय नीति की चर्चा अन्यत्र करें, स्वान्तः सुखाय नीति की चर्चा के लिए यह लेख नहीं है, केवल उपरोक्त तीन सवालों का जवाब माँगने के लिए है।

2.5.08

गूगल के मशीनी हिन्दी-अङ्ग्रेज़ी अनुवाद के साथ मौज

कुछ घण्टे पहले विनय के जरिए पता चला कि गूगल अनुवाद हिन्दी से अङ्ग्रेज़ी भी शुरू हो गया है। इसके पहले आईआईटी कानपुर का एक स्थल देखा था जहाँ ऐसे ही अनुवाद करने की सुविधा थी, पर गूगल के साथ मौज लेने की बात की कुछ और है न, लीजिए कुछ मौज -
  1. मेरा नाम आलोक है -
    My name is Alok
  2. गाय के चार पैर, चार थन, दो सींग और एक पूँछ होती है। -
    The cow has four legs, dug four, two horns and a tail.
  3. मेरे कुत्ते का नाम पिण्टू है -
    My dog's name is पिण्टू
  4. चारु चन्द्र की चञ्चल किरणें महक रही थीं जल थल में -
    Charu Chandra aroma rays were perk of the land in the water
  5. जानना चाहते हो मेरे पास क्या है? मेरे पास माँ है। -
    I do want to know? I have a mother.
  6. अकेले हम, अकेले तुम -
    We alone, you alone
  7. मेरा जूता है जापानी, ये पतलून है इङ्ग्लिस्तानी, सिर पे लाल टोपी रूसी, फिर भी दिल है हिन्दुस्तानी -
    My shoe is Japanese, these pants is इङ्ग्लिस्तानी, head of the Russian pay-red cap, the heart is Hindustani
  8. दिल तो है दिल, दिल का ऐतबार क्या कीजे। आ गया जो किसी पे प्यार, क्या कीजे। -
    Is the heart of the heart, the heart of what कीजे Aitbaar. The pay has been a love, what कीजे.
  9. आज कल पाँव ज़मीं पे टिकते नहीं -
    Today, not tomorrow feet ज़मीं pay टिकते
  10. मेरे सपनों की रानी कब आएगी तू। -
    When you are the queen of my dreams would come.
  11. हम हैं राही प्यार के, हम से कुछ न बोलिए। -
    We are Rahi love, we बोलिए nothing.
  12. चलते चलते, मेरे ये गीत याद रखना, कभी अलविदा ना कहना। -
    Due to run, I remember these songs, not ever say goodbye.
  13. मेरा दिल भी, कितना पागल है, ये प्यार जो तुमसे करता है। पर सामने जब तुम आते हो, कुछ भी कहने से डरता है। -
    My heart also, how crazy, they love what exactly does. When you come on the front, afraid to say anything.
  14. बसन्ती, इन कुत्तों के सामने मत नाचना। -
    बसन्ती, these dogs do not dance in front.
  15. वह दो थे, और तुम तीन? फिर भी बच गए? -
    He had two, and three of you? Yet escape?
  16. क्या आपको हिन्दी दिख रही है? -
    What you see is Hindi?
  17. मैं साँस लेता हूँ, तेरी खुश्बू आती है। -
    I'm taking breath, your खुश्बू amount.
  18. मैं और मेरी तन्हाई, अक्सर ये बाते करते हैं -
    I and my तन्हाई, they often do बाते
  19. जल गया -
    Water was
कोई शक? पाँचवी पास से तेज़ है। और अङ्ग्रेज़ी सिखाने के लिए भी अनुवाद स्थल पर एक कड़ी है जहाँ आप अधिक उचित अनुवाद सुझा सकते हैं। आप भी आजमाइए