एक नए सेब पर काम कर रहा हूँ, और इसमें सी कंपाइलर डालने के लिए एक्सकोड लगता है जो कि खुद अपने आप में डेढ़ जीबी का दैत्य है।
देर सबेर एक लिनक्स लगाना ही पड़ेगा। तब तक के लिए होता हूँ नौ दो ग्यारह।
अब सवाल यह है कि गूगल आयो में जायो कि नहीं।
पंजीकरण का खर्चा है २०,००० रुपए, और हो रहा है यह हो रहा है सैन फ़्रांसिस्को में, यानी आने जाने और रहने का खर्चा अलग।
सोचना पड़ेगा। वह भी १६ अप्रैल के पहले। इसलिए अब होते हैं नौ दो ग्यारह।
पिछले ७ दिनों से मैं ऑन्लाइन गरीबी रेखा के नीचे लोट रहा था।
हुआ क्या था?
शक तो यह है कि किसी महानुभाव ने मेरे खाते का कूटशब्द बदल दिया था - पर यह सिर्फ़ शक ही है। खैर सब कुछ कर करा के काम शुरू तो हो गया लेकिन बेतार वाला काम फिर भी चालू नहीं हो रहा था। आज जा के सब कुछ ठीक हुआ है तो यह है कुछ जानकारी, शायद किसी और के काम भी आए, निश्चित रूप से मेरे काम तो आएगी ही।
यह सब बीएसएनएल के ब्रॉडबैंड और WA3002G4
मॉडॅम के निर्देश हैं।
Advanced Setup | WAN
में जा के पहली कतार के Edit
पर चटका लगाएँ।AUTO
रखें।pppoe_0_35_1
- या कुछ भी और चाहें तो रख सकते हैं।
बस हो गया! अब, जब आपका मॉडम फिर से चालू होगा तो उसमें चार बत्तियाँ जलेंगी - एक लाल - बाईं तरफ़ - पॉवर की, फिर नारंगी-पीली - एडीएसएल सिग्नल की, फिर तीसरी हरी - इंटर्नेट की (यह आपका कूटशब्द इस्तेमाल करके जुड़ेगा और फिर हरा होगा) और आखिरी लैन की। और आप किसी भी कंप्यूटर के जरिए बेतार से इससे जुड़ सकते हैं। मॉडम चालू होने के ३-४ सेकिंड बाद वह खुद ही जाल से जुड़ जाएगा और अन्य कंप्यूटरों को अपने आप ही 192.168.1.*
के तहत आईपी भी पकड़ा देगा।
उम्मीद है दाल चावल अगल कर लेंगे। कोई दिक्कत हो तो टिपियाएँ।
हम होते हैं नौ दो ग्यारह।
पहले कुछ इतिहास। सेब का इस्तेमाल करने वालों को अमूमन बंगाली, मलयालम, कन्नड़ अक्षरों के बजाय डब्बे ही दिखते हैं - कम से कम सेब १०.४ तक तो। आइए देखते हैं मुद्रलिपियों का कुछ इतिहास -
अब अगर आपकी न सेब में दिलचस्पी हो और न ही मलयालम में फिर भी यह जानकारी काम की है।
काम की इसलिए कि मॅकमलयालम वालों ने विंडोज़ व लिनक्स पर चलने वाली ओपनटाइप मुद्रलिपियों को सेब पर चलाने के लिए परिवर्तित करने में सफलता पाई है।
इसीलिए तो लिनक्स और विंडोज़ वाली मलयालम मुद्रलिपियों में से एक, रचना मलयालम, अब सेब की आत्सुई (एटीएसयूई) - ऍप्प्ल टाइपोग्राफ़ी सर्विसेज़ फॉर यूनिकोड इमेजिंग में भी उपलब्ध है।
अर्थात् सरल शब्दों में - देवनागरी की यूनिकोडित मुद्रलिपियों को सेब में इस्तेमाल करने के लिए रास्ता साफ़ है। अब हम होते हैं नौ दो ग्यारह।
अगर आपके पास सेब है और मलयालम में भी दिलचस्पी है तो मॅकमलयालम का आनंद उठाएँ। अगर आप अपने विचरक की मलयालम जाँचना चाहें तो विकिपीडिया या ट्विटर के मलयालम हिस्सों को देख कर जाँचें।
कुछ भविष्य के बारे में।
सेब वाले भी अब धीरे धीरे ओपनटाइप को अपना रहे हैं। सेब १०.५ में अरबी प्रदर्शन के लिए ओपन टाइप मुद्रलिपियों का इस्तेमाल किया जा सकता है। संभव है कि सेब वाले कुछ मामलों में सीधे ओपन टाइप का ही इस्तेमाल करना पसंद करें - क्योंकि यह अब पका पकाया माल है, और इतनी सारी मुद्रलिपियाँ ओपन टाइप की पहले ही हैं।
दूसरी बात यह - जो वर्तमान के संदर्भ में कही - ओपन टाइप मुद्रलिपियों को एएटी में परिवर्तित करने का मार्ग प्रशस्त है - जैसे कि इस मलयालम मुद्रलिपि में। इसका भी लाभ सेब के प्रयोक्ता उठा पाएँगे।
सीख यह - उन्नत तकनीक पैदा करो, और फिर सही समय तक कमाई करने के बाद - दुह लेने के बाद उसे मानक बनने के लिए खुला छोड़ दो। नहीं छोड़ोगे तो कोई और बाजी मार ले सकता है। हमारी भारत सरकार ने इस्की के जरिए एक-बाइटीय उन्नत मुद्रलिपियाँ तो पैदा कीं, लेकिन उसे मुक्त मानक न बनाया - इससे भारतीय भाषाओं का संगणन आराम से १०-१५ साल पीछे हो गया - जब तक यूनिकोड न आया तब तक हमें अपने बिल में छिपा ही रहना पड़ा - पर चुगे हुए खेत का रोना न रोते हुए हम नौ दो ग्यारह होते हैं।
विकिपीडिया वालों का ही प्रकल्प है विकिस्रोत - जहाँ पर आप किसी भी किताब का स्रोत - यानी मसाला - डाल सकते हैं और फिर उसे पीडीएफ़ या ओपनऑफ़िस प्रारूप में उतार सकते हैं।
उनके पीडीएफ़ बनाने वाले तंत्रांश में देवनागरी संयुक्ताक्षर ठीक से नहीं बनते हैं। इसका ब्यौरा दिया था, अब शायद ठीक करने का काम शुरू हो गया है।
पंगा mwlib नाम की लाइब्रेरी में है।
बढ़िया है। आशा है यह त्रुटि शीघ्र ही नौ दो ग्यारह होगी।
अपने अन्नदाता ने कुछ रोज़ पहले एक ब्लैकबेरी प्रदान किया है। काफ़ी दिलचस्प चीज़ है, जिसे दफ़्तर में काम नहीं करना सिर्फ़ चौधराहट ही दिखानी है उसके लिए दफ़्तर से कम नहीं है। लेकिन इसमें एक ही दिक्कत है - फ़ोन में हिन्दी प्रदर्शन के एवज में सिर्फ़ काले डब्बे दिखते हैं! इस लिहाज़ से देखा जाए तो आपने लिए यह काला बेर काले पत्थर के बराबर ही है।
चुनांचे मैं अपना नोकिया २६२६ भी रखा हुआ है ताकि चलते फ़िरते कतारों में खड़े शौक फ़रमाया जा सके। क्या करें, कुछ नवाबों को लौंडो का शौक होता है, और मेरे जैसे कुछ नाचीज़ किस्म के लोगों को कारखानों में बने सामान पर खड़खड़ाने का। देखा कि करुण वासुदेव कुछ खोजबीन कर रहे हैं इस बारे में। उम्मीद है नतीज़ा जल्द आएगा।
ताज़ी खबर है कि गूगल का यूट्यूब अब हिन्दी में भी है।
उदाहरण के लिए, चंडीगढ़ से संबंधित वीडियो पाने के लिए आप जब यूट्यूब पर चंडीगढ़ की खोज करेंगे, तो आपको परिणाम हिन्दी में दिखेंगे -
अगर आपको यूट्यूब हिन्दी में न दिख रहा हो तो यूट्यूब के पते के आगे "?hl=hi" लगा दें, ऐसे:
http://youtube.com?hl=hi
तो देखिए मस्त गाना यूट्यूब पर, हम होते हैं नौ दो ग्यारह!
जियोसिटीज़ वालों से संदेसा आया कि बंद होने वाला है। जो इसके बारे में नहीं जानते हैं बस इतना ही समझ लें कि यह अपने ज़माने का ब्लॉग्स्पॉट था। अंतर्जाल पर मेरा सबसे पहला स्थल जियोसिटीज़ पर ही था।
बंद तो होने वाला है, साथ ही कुछ दिन पहले रवि रतलामी जी ने अपनी लिनक्स की किताब के संबंध में लिनक्स परिचय के बारे में पूछा तो ध्यान आया कि यह भी तो जियोसिटीज़ पर ही है। इसे भी सितंबर २००९ के पहले कहीं और सरकाना होगा।
वैसे लिनक्स परिचय एक स्वयंसेवी अनुवाद कार्यक्रम है, आप भी इसमें शामिल हो सकते हैं। आज के दिन यह पन्ना पूर्ण किया, काफ़ी समय से आधा अनुवादित था। अनुवाद संबंधी त्रुटियाँ अवश्य जानकारी में लाएँ, अग्रिम आभाऱ।
वैसे सोचता हूँ कि जियोसिटीज़ ऑर ब्लॉग्स्पॉट में एक वाक्य में फ़र्क बताना हो तो कैसे बताएँ? शायद ऐसे, कि जियोसिटीज़ में आदान प्रदान की इकाई एक फ़ाइल थी, जबकि ब्लॉगर में यह इकाई एक लेख है।
अब हम होते हैं नौ दे ग्यारह, आज की असली दुनिया में घुसने से पहले तलवारें पैनी करनी हैं।
बिल्लू भाई तमिळ सीख चुके हैं! यह जालनाद अंग्रेज़ी और तमिळ दोनो में है। ज़्यादा नहीं आती है और इस पर काम भी नहीं करता हूँ पर कोशिश रहेगी कि इसे देख/सुन सकूँ। २२ जून २००९ को चार बजे शाम को।
अपने तमिळ भाइयों और उनकी भाभियों को बताना न भूलिएगा
धत्तेरेकी! साले ब्लॉगर.कॉम का हरकारा ऐन वक़्त पर नौ दो ग्यारह हो गया, इसे सही समय पर छापा ही नहीं। भाइयों और भाभियों को माफ़ी। अब खुद छाप रहा हूँ, पर उम्मीद है कि ऐसे मौके और भी आते रहेंगे।
सिल्पा यानी संतोष तोट्टिङ्गल की स्वतंत्र इंडियन लैंग्वेज प्रोसेसिंग ऍप्लिकेशंस। बड़ा सोच समझ के सिल्पा नाम रखा है!
सारा माल पाइथन में हैं - साँप नहीं प्रोग्रामिंग भाषा पाइथन में। कोई नहीं, अपने को भी नहीं आती, पर आप और मैं यहाँ पर इसका परीक्षण कर सकते हैं जैसे कि क्रमांकन, लिप्यंतरण, भाषा अनुमानक और न जाने क्या क्या।
और अगर कुछ सही न चलता दिखे तो नौ दो ग्यारह होने से पहले संतोष को डाक भेज दें। यही तो मकसद था बताने का! http://smc.org.in/silpa
वैसे तो इन हाई-फ़ाइव वालों से मैं बहुत परेशान ही हूँ क्योंकि जान न पहचान वाले हिसाब से खाता खोलने के संदेसे आते रहते हैं, लेकिन आज तो गज़ब हो गया, जब हिंदी में संदेसा आया -
तो पता चला कि इन्होंने वाकई सब कुछ हिंदी में कर रखा है। मज़ा आ गया।
अपने गाँव ढकोली वाले घर में लग गया ब्रॉडबैंड आज के दिन। मज़ा आ गया। अब इस बहुमूल्य बैंडविड्थ रूपी पेट्रोल को मैं भी यूट्यूब, ट्विटर, चिट्ठाचर्चा, चिट्ठाजगत यानी ऑन्लाइन मटरगश्ती में बरबाद कर सकता हूँ।
अहो भाग्य हमारे कि भारत के उन पचास लाख सौभाग्यशालियों में शामिल हुए।
अगर आप यह पन्ना देखेंगे, तो शायद आपको ठीक दिख रहा हो, पर मुझे ऐसे दिख रहा है। बाईं तरफ़ सफ़ारी में और दाईं तरफ़ फ़ायर्फ़ाक्स में।
इसे ठीक करवाने के लिए फ़ायर्फ़ाक्स को ब्यौरा दे दिया है। आपसे अनुरोध है कि इस दिक्कत को जल्दी ठीक करवाने के लिए मतदान करें।
मतदान करने के लिए
आपको कोई और दिक्कत आई फ़ायर्फ़ाक्स पर?
हैं भई हैं, ये क्या है जी?
फ़ायर्फ़ाक्स तो चढ़ा लिया, लेकिन ये छोटे बच्चे की तरह क्या बिलबिला रहा है?
आपने फ़ॉयरफ़ॉक्स के नवीनतम संस्करण से अद्यतन किया गया गया है?ये क्या बात हुई। शायद कहना चाहते थे कि
आपने फ़ायर्फ़ाक्स का अद्यतन कर नवीनतम संस्करण पा लिया है।
उसके बाद कहते हैं कि
आपके समय के लिए शुक्रिया!हाँ, यह ठीक है, पर आमतौर पर लोग यह कहते हैं,
अपना समय देने के लिए शुक्रिया!
और तो और, यह लूमड़ यह भी कह रहा है,
इस बंद बटन पर इस टैब पर अपने होम पेज जाने के लिए क्लिक करेंशायद कहना चाहता था,
अपने मुखपृष्ठ पर जाने के लिए इस खाँचे को बंद करने वाली कुंजी पर चटका लगाएँ।
और यह कहते हैं,
हजारों विशेषज्ञों की दुनिया भर के समुदाय हर दिन आपकी ऑनलाइन सुरक्षा के बारे में नवीनतम खतरों से लड़ने के लिए काम कर रहे हैं.शायद यह कहना चाह रहे थे,
दुनिया भर के विशेषज्ञों के हज़ारों समुदाय हर दिन आपकी ऑन्लाइन सुरक्षा पर होने वाले नायाब हमलों से लड़ने की दिशा में काम कर रहे हैं।
और,
हमारे आरंभ करें पृष्ठ का भ्रमण करें यह जानने के लिए कि आप अपने फॉ़यरफॉ़क्स का अधिक से अधिक कैसे लाभ पा सकेंगे.अंग्रेज़ी में यह अच्छा लगता पर हिंदी में यह बेहतर -
फ़ायर्फ़ाक्स का अधिक से अधिक लाभ पाने के बारे में जानने के लिए हमारे "आरंभ करें" वाले पन्ने पर जाएँ।
और रिलीज़ नोट्स यानी वितरण सूचना।
और सबसे बड़ी बात, फ़ायर के फ़ा का उच्चारण फ़ॉ नहीं होता है, इसलिए फ़ के ऊपर चंद्र नहीं होना चाहिए।
इस लोमड़ी के छोटे बच्चे के अभिभावक लूमड़ बाबा को सूचित कर दिया है। निश्चित रूप से वे और भी बेहतर बना सकेंगे अपने लूमड़ को, हम क्या चीज़ हैं।
आपकी राय?
अपनी पसंद की भाषा में फ़ायर्फ़ाक्स उतारिए, वह भी अपनी पसंद की भाषा के मुखपृष्ठ से!
जब वर्तनी जाँचक के बजाय नुक्तों की बात छिड़ गई है तो आइए देखते हैं वह कौन से कूटबिंदु हैं जो यूनिकोड वाले देवनागरी के नाम पर मुहैय्या कराते हैं पर संस्कृत में प्रयुक्त देवनागरी वर्णमाला में नहीं हैं। (वास्तव में वर्तनी जाँचक के नज़रिए से देखें तो नुक्ता तो बहुत छोटा, अच्छी तरह परिभाषित मसला है, नुक्ता सहित जाँचें या बगैर - आसानी से किया जा सकता है - पर यह नीचे के ११ मसलों में से केवल एक ही है और सबसे आसानी से सुलझने वाला भी। )
ज़ाहिर है कि संस्कृत(और हिंदी) इस यूनिकोड परिभाषित देवनागरी लिपि के एक अंश का ही प्रयोग करती हैं। वर्तनी जाँचकों और भाषा अनुमानकों को को भी इसका ध्यान रखना चाहिए।
और हमें होना चाहिए, नौ दो ग्यारह।
अपन लोगों को तो पता ही है कि देवनागरी लिखते समय हम वास्तव में अक्षर दर अक्षर लिखते नहीं है। जैसे कि अक्षर शब्द को ही लें, अगर एक पंक्ति के अंत में जगह कम हो तो इसे लपेटने के लिए हम करेंगे
पर बिचारे कंप्यूटर को यह कौन बताए कि अ, क, हलंत, ष और र से बना यह शब्द इन्हीं दो तरीकों से ही लपेटा जा सकता है - मतलब लपेटा तो और भी तरह से जा सकता है लेकिन सुविधाजनक यही दो हैं?
कंप्यूटर को यही सिखाने की कोशिश कर रहे हैं सन्तोष तोट्टिङ्गल। उन्होंने, एक शब्दभञ्जन कोष तैयार किया है, और उसके परीक्षण के लिए आमंत्रण दिया है।