24.12.08

सेब वाली गड़बड़ी नए वाले फ़ायर्फ़ाक्स में ठीक हुई

पिछले लेख में सेब पर फ़ायर्फ़ाक्स की जिस त्रुटि की बात कर रहा था उसका ब्यौरा फ़ायर्फ़ाक्स वालों को दिया, वहाँ से एक छींटाकसी यह आई कि यह समस्या फ़ायर्फ़ाक्स ३.०५ में तो है, पर फ़ायर्फ़ाक्स ३.१ के दूसरे बेटे में नहीं है। लिहाज़ा मैंने पड़ताल की और इस बात को सही पाया।

यह लेख सभी को यह इत्तला देने के लिए है कि अगर आपको फ़ायर्फ़ाक्स में गड़बड़ी दिख रही है, सेब पर, तो उसके बेटों पर एक बार नज़र डाल लें, कभी कभी बाप से गोरे होते हैं।

23.12.08

फ़ायर्फ़ाक्स में एक गड़बड़, पर सिर्फ़ सेब पर, मतदान करें

अगर आप यह पन्ना देखेंगे, तो शायद आपको ठीक दिख रहा हो, पर मुझे ऐसे दिख रहा है। बाईं तरफ़ सफ़ारी में और दाईं तरफ़ फ़ायर्फ़ाक्स में।

इसे ठीक करवाने के लिए फ़ायर्फ़ाक्स को ब्यौरा दे दिया है। आपसे अनुरोध है कि इस दिक्कत को जल्दी ठीक करवाने के लिए मतदान करें

मतदान करने के लिए

  1. https://bugzilla.mozilla.org/show_bug.cgi?id=470593 पर जाएँ
  2. वहाँ लिखे (vote) पर चटका लगाएँ
  3. अपना मत दर्ज करें
धन्यवाद!

आपको कोई और दिक्कत आई फ़ायर्फ़ाक्स पर?

22.12.08

सफ़ारी मुझे नेपाली समझे बैठे था, और क्यों

न न, नेपाली होने में कोई बुराई नहीं पर जब कोई दुनिया को बताना चाहे कि हमें हिंदी की सामग्री परोसी जाए, तो थोड़ी दिक्कत होती है। यकायक सोचा कि पता लगाएँ, नया हिंदी वाला फ़ायर्फ़ाक्स दुनिया को मेरी भाषा के बारे में क्या बताता है - पता लगाने एक सरल तरीका है इस पन्ने पर मौजूद जानकारी। इसने कहा,

Mozilla/5.0 (Macintosh; U; Intel Mac OS X 10.4; hi-IN; rv:1.9.0.5) Gecko/2008120121 Firefox/3.0.5 200

यानी फ़ायर्फ़ाक्स ३.०.५ चल रहा है, सेब १०.४ पर, और भाषा हिंदी है।

ठीक है। अब देखा कि सफ़ारी पर क्या दिखाता है, और अचरज हुआ।

Mozilla/5.0 (Macintosh; U; Intel Mac OS X 10_4_11; ne-np) AppleWebKit/525.18 (KHTML, like Gecko) Version/3.1.2 Safari/525.22 200

बता रहा है कि सफ़ारी ३.१.२ चल रहा है, सेब १०.४.११ पर, और भाषा है नेपाली! आँय, यह कैसे हुआ, तो अपन गए अपने सेब की सिस्टम प्रिफ़रेंसेज़ में, इंटर्नेशनल के अंदर, और पाया यह।

सेब भाषा

ये भाषाएँ जोड़ी तो मैंने ही थीं, पर अकारादिक्रम में, और यह नहीं पता था कि एक के बाद एक आकलन कर के भाषा भेजी जाती है, इसी क्रम में। चुनाँचे इसे बदल के कर दिया ऐसे -

सेब भाषा क्रम

अब सफ़ारी मियाँ क्या कहते हैं?

Mozilla/5.0 (Macintosh; U; Intel Mac OS X 10_4_11; hi-in) AppleWebKit/525.18 (KHTML, like Gecko) Version/3.1.2 Safari/525.22 200

यानी कि नेपाली नौ दो ग्यारह और हिंदी हाज़िर।

लेकिन सवाल तो पैदा हो ही गया न एक और। कि फ़ायर्फ़ाक्स हिन्दी कैसे दिखा रहा था, उसने भी नेपाली क्यों नहीं दिखाई? उसका कारण यह है कि फ़ायर्फ़ाक्स सेब, बिल्लू और लिनक्स तीनों पर चलने वाला, वह सेब की जमावट का लिहाज़ नहीं करता, उसे सही कपड़े पहनाने के लिए "वरीयता..." में जा के भाषाओं का क्रमांकन चुनना होता है।

इसमें एक समस्या है, "ऊपर जाएँ" और "नीचे जाएँ" के बजाय "ऊपर ले जाएँ" और "नीचे ले जाएँ" होना चाहिए। लोमड़ी के अभिभावक को बता दिया गया है।

अब आप बताएँ, कि आपने अपने ब्राउज़र को कौन सी भाषा के कपड़े पहनाएँ हैं? जाँचें यहाँ और बताएँ।

इस जानकारी को सेब वाले पन्ने पर भी डाल दिया है।

21.12.08

आपने फॉ़यरफॉ़क्स के नवीनतम संस्करण से अद्यतन किया गया है.

हैं भई हैं, ये क्या है जी?

फ़ायर्फ़ाक्स तो चढ़ा लिया, लेकिन ये छोटे बच्चे की तरह क्या बिलबिला रहा है?

आपने फ़ॉयरफ़ॉक्स के नवीनतम संस्करण से अद्यतन किया गया गया है?
ये क्या बात हुई। शायद कहना चाहते थे कि
आपने फ़ायर्फ़ाक्स का अद्यतन कर नवीनतम संस्करण पा लिया है।

उसके बाद कहते हैं कि

आपके समय के लिए शुक्रिया!
हाँ, यह ठीक है, पर आमतौर पर लोग यह कहते हैं,
अपना समय देने के लिए शुक्रिया!

और तो और, यह लूमड़ यह भी कह रहा है,

इस बंद बटन पर इस टैब पर अपने होम पेज जाने के लिए क्लिक करें
शायद कहना चाहता था,
अपने मुखपृष्ठ पर जाने के लिए इस खाँचे को बंद करने वाली कुंजी पर चटका लगाएँ।

और यह कहते हैं,

हजारों विशेषज्ञों की दुनिया भर के समुदाय हर दिन आपकी ऑनलाइन सुरक्षा के बारे में नवीनतम खतरों से लड़ने के लिए काम कर रहे हैं.
शायद यह कहना चाह रहे थे,
दुनिया भर के विशेषज्ञों के हज़ारों समुदाय हर दिन आपकी ऑन्लाइन सुरक्षा पर होने वाले नायाब हमलों से लड़ने की दिशा में काम कर रहे हैं।

और,

हमारे आरंभ करें पृष्ठ का भ्रमण करें यह जानने के लिए कि आप अपने फॉ़यरफॉ़क्स का अधिक से अधिक कैसे लाभ पा सकेंगे.
अंग्रेज़ी में यह अच्छा लगता पर हिंदी में यह बेहतर -
फ़ायर्फ़ाक्स का अधिक से अधिक लाभ पाने के बारे में जानने के लिए हमारे "आरंभ करें" वाले पन्ने पर जाएँ।

और रिलीज़ नोट्स यानी वितरण सूचना।

और सबसे बड़ी बात, फ़ायर के फ़ा का उच्चारण फ़ॉ नहीं होता है, इसलिए फ़ के ऊपर चंद्र नहीं होना चाहिए।

इस लोमड़ी के छोटे बच्चे के अभिभावक लूमड़ बाबा को सूचित कर दिया है। निश्चित रूप से वे और भी बेहतर बना सकेंगे अपने लूमड़ को, हम क्या चीज़ हैं।

आपकी राय?

20.12.08

फ़ायर्फ़ाक्स तो हिंदी में है ही, उसका मुखपृष्ठ भी।

अपनी पसंद की भाषा में फ़ायर्फ़ाक्स उतारिए, वह भी अपनी पसंद की भाषा के मुखपृष्ठ से!

  1. हिंदी, http://hi-in.www.mozilla.com/hi-IN/
  2. बंगाली, http://bn-in.www.mozilla.com/bn-IN/
  3. गुजराती, http://gu-in.www.mozilla.com/gu-IN/
  4. पंजाबी, http://pa-in.www.mozilla.com/pa-IN/
  5. सिंहली, http://si.www.mozilla.com/si/
है न मज़ेदार? इतना ही नहीं, हिंदी वाले क्रोम से http://firefox.com पर जाएँगे तो वह अपने आप हिंदी वाले स्थल की ओर ले जाएगा!

19.12.08

चालान कटा, और हम धन्य हुए

चालान कटा। कटा, चंडीगढ़ में शायद ही कोई वाहन चालक हो जिसका न कटा हो, बहुत मुस्तैद कोतवाल हैं यहाँ, इसलिए क्यों - कैसे में नहीं पड़ रहा। नतीजा यह कि गाड़ी के दस्तावेज़ जब्त हो गए हैं, उसके बदले चालान का पर्चा हाथ में थमा दिया गया।

चालान की पर्ची में नीचे ऑन्लाइन जुर्माना देने की सुविधा के बारे में लिखा था, तो सोचा आजमाई जाए।

आगे चर्चित सभी स्थल अंग्रेज़ी में ही हैं - फ़िलहाल।

अव्वल तो तीन चटके लगे - यहाँ से यहाँ[१], और फिर यहाँ[२]। मज़े की बात यह, कि यह आखिरी पन्ना सत्रारंभ के बक्से तक भेजता है, और इसके परिमाण में है -

?user=''&pwd='%20'

जियो बेटा - यूआरऍल में कूटशब्द! वैसे %20 तो खाली स्थान ही होता है, चुनाँचे पर्चा कुछ ऐसे दिखा - चंडीगढ़ ट्रैफ़िक पुलिस खाता तो अपना है नहीं, इसलिए लगा तीसरा चटका और पहुँचे यहाँ - पर्चे में शहर का नाम चंडीगढ़ के अलावा कुछ और नहीं हो सकता है, मतलब अगर कोई ढकोली वाला चालान देना चाहे तो दिक्कत। खैर अपने गाँव का नाम पते में घुसेड़ दिया पिन कोड समेत। और फिर पर्चा जमा करने पर क्या हुआ?

खाता खोलें

यानी पर्चा नौ दो ग्यारह! हम धन्य हुए यह जान के कि पुलिस वाले आजकल ऑरेकल हटटप सर्वर अपाची १.३.२२ चलाते हैं और वह भी पोर्ट ८० पर।

कई मामलों में बाड़मेर और सीकर वाले अभी चंडीगढ़ से आगे हैं।

अपने पंचांग में १७ जनवरी २००८ १० बजे का समय लिख लिया है, कचहरी में हाज़िर होने और जुर्माना जमा करने के लिए। हाँ निकलने से पहले एक बार फिर पर्चा जमा करके ज़रूर देख लूँगा।

18.12.08

आन, बान और शान

वीर भोग्या वसुन्धरा का यह जालस्थल इतना खुफ़िया है कि सदस्यों के चिट्ठे पढ़ने के लिए भी खाताधारी बनना ज़रूरी है। आज के चोर उचक्कों वाली दुनिया में शायद यह ज़रूरी है।

17.12.08

वर्तनी जाँचक और देवनागरी : स्वर / व्यंजन जो यूनिकोड में हैं पर संस्कृत में नहीं हैं

जब वर्तनी जाँचक के बजाय नुक्तों की बात छिड़ गई है तो आइए देखते हैं वह कौन से कूटबिंदु हैं जो यूनिकोड वाले देवनागरी के नाम पर मुहैय्या कराते हैं पर संस्कृत में प्रयुक्त देवनागरी वर्णमाला में नहीं हैं। (वास्तव में वर्तनी जाँचक के नज़रिए से देखें तो नुक्ता तो बहुत छोटा, अच्छी तरह परिभाषित मसला है, नुक्ता सहित जाँचें या बगैर - आसानी से किया जा सकता है - पर यह नीचे के ११ मसलों में से केवल एक ही है और सबसे आसानी से सुलझने वाला भी। )

  1. चंद्रबिंदु - जैसे कि चाँद में
  2. - यह स्वर मलयालम में बड़ा "ए" की तरह उच्चारित होता है। ध्यान दें यह ऐ (अ+इ सा उच्चारण), नहीं है। देवनागरी में केवल मलयालम आदि से लिप्यांतरण की सुविधा के लिए इसे शामिल किया गया है।
  3. - यह स्वर यूरोपियन भाषाओं के कुछ शब्दों को लिप्यंतरित करने के काम आता है जैसे, ऍक्लेयर, या ऍप्पल। ए का ए लंबा खींचने के बजाय ए और ऐ के बीच का स्वर।
  4. - जो ए के लिए ऍ है, वह आ के लिए ऑ है। जैसे कि ऑन, ऑफ़ आदि अंग्रेज़ी शब्दों के लिए।
  5. - यह भी मलयालम के बड़े ओ की तरह है, उच्चारण लंबे ओ की तरह होता है न कि औ(अ+उ) की तरह।
  6. ऩ य़ - यह न और य नहीं है, बल्कि तमिळ, मलयालम में एक और "न" और "य" होता है। इसका ठीक ठीक उच्चारण मुझे नहीं पता है लेकिन क्रमशः न और य जैसा ही होता है, मगर उनसे भिन्न।
  7. ऱ - यह मराठी में काम आता है जैसे कि दऱ्या जैसे शब्दों में।
  8. ऴ - यह ल, ळ की शृंखला में अगली कड़ी है। तमिळ, मलयालम में इसका प्रयोग होता है। मेरी जानकारी में, संस्कृत में इसका कोई समानोच्चारक नहीं है।
  9. क़ ख़ ग़ ज़ फ़ - नुक्तायुक्त शब्द। अरबी-फ़ारसी शब्दों के लिए।
  10. ड़ ढ़ - गाड़ी, बढ़ई
  11. ॻ ॼ ॽ ॾ ॿ - यह पाँच व्यंजन कश्मीरी और सिंधी में काम आते हैं। अगर आपको ये अपने पर्दे पर दिख नहीं रहे तो इसलिए कि ये यूनिकोड में नए जोड़े गए हैं। ये क्रमशः ग, ज, के नीचे लेटी लकीर के साथ, उल्टा ट, ड, ब के नीचे लेटी हुई लकीर के साथ लिखे जाते हैं। शायद रमण जी इनके बारे में बता पाएँ।

ज़ाहिर है कि संस्कृत(और हिंदी) इस यूनिकोड परिभाषित देवनागरी लिपि के एक अंश का ही प्रयोग करती हैं। वर्तनी जाँचकों और भाषा अनुमानकों को को भी इसका ध्यान रखना चाहिए।

और हमें होना चाहिए, नौ दो ग्यारह।

16.12.08

देवनागरी में शब्द लपेटना

अपन लोगों को तो पता ही है कि देवनागरी लिखते समय हम वास्तव में अक्षर दर अक्षर लिखते नहीं है। जैसे कि अक्षर शब्द को ही लें, अगर एक पंक्ति के अंत में जगह कम हो तो इसे लपेटने के लिए हम करेंगे

  1. अ-
    क्षर, या
  2. अक्ष-

पर बिचारे कंप्यूटर को यह कौन बताए कि अ, क, हलंत, ष और र से बना यह शब्द इन्हीं दो तरीकों से ही लपेटा जा सकता है - मतलब लपेटा तो और भी तरह से जा सकता है लेकिन सुविधाजनक यही दो हैं?

कंप्यूटर को यही सिखाने की कोशिश कर रहे हैं सन्तोष तोट्टिङ्गल। उन्होंने, एक शब्दभञ्जन कोष तैयार किया है, और उसके परीक्षण के लिए आमंत्रण दिया है।

15.12.08

अमरूद खाते खाते वापस

लौट रहा हूँ, गाड़ी चार घंटे लेट है, शायद ज़्यादा भी। आज का दफ़्तर तो ठप्प ही समझो। इलाहाबाद में प्रमेंद्र जी से मुलाकात हुई, उन्होंने कुल्हड़ वाली चाय पिलाते हुए चंडीगढ़ आने का मेरा आमंत्रण स्वीकारा। पता चला कि मेरे ससुराल वाले और प्रमेंद्र जी का इलाका एक ही है।

दस साल बाद इलाहाबाद जा के मज़ा आया। आशा है अगला सफ़र जल्द हो। लेकिन इस लेट लतीफ़ ऊँचाहार एक्स्प्रेस से नहीं। लेट लतीफ़ शब्द की उत्पत्ति के बारे में सोच रहा था, कि लेट शब्द का जन्म होने/उसके स्वीकार्य होने से पहले लेट लतीफ़ों को क्या कहा जाता था? पर शायद कुछ नहीं, समय से आना एक पाश्चात्य, पूँजीवादी गुण है। क्या विचार है आपका इस बारे में?

इस बार इलाहाबाद में अपने रिश्तेदारों में ग्राम निवासी, शहर निवासी व महानगर निवासी, तीनो प्रकार के रिश्तेदारों से मिला, उन्हें आमने सामने देखा। स्पष्ट था कि आर्थिक समृद्धि महानगर वालों तक ही केंद्रित थी। अफ़सोस हुआ, कि एक जीवनशैली का अंत हो रहा है, धीरे धीरे।

अमरूद अच्छे हैं।

14.12.08

क्रोम ब्राउज़र का वर्तनी जाँचक - और नुक्तों की कहानी

गूगल के नए क्रोम ब्राउज़र के वर्तनी जाँचक के बारे में लिखने की सोच ही रहा था कि यह लेख दिखा जो नुक्तों को परे करने की हिमायत करता है।

पर पहले क्रोम के बारे में। मुझे इसमें यह बात बहुत बढ़िया लगी कि अगर मैं इसका इस्तेमाल करते हुए ज़ायज़ लिखता हूँ तो उसके नीचे लाल लकीर आ जाती है, और बदल के जायज़ कर देता हूँ तो लकीर गायब हो जाती है! नुक्ते सही जगह लगाने की इच्छा न रखते हुए भी इस सुहूलियत ने मुझे सही लिखने को बाध्य किया। पसंद आया। उल्टे कई संस्कृत के शब्द क्रोम को नहीं पता थे, उन पर लाल लकीर थी - पर शब्दकोश शायद धीरे धीरे बढ़े। आप लोगों के क्रोम या किसी अन्य वर्तनी जाँचक के कैसे अनुभव हैं जानना चाहूँगा।

बाकी रही नुक्तों की कहानी, तो जो चीज़ समझ नहीं आती उससे परे हो लो, ठीक है, पर मुझे लगता है कि यह सिर्फ़ एक छोटी सी बिंदी है इसलिए नज़रंदाज़ कर दें यह ठीक नहीं है। इस हिसाब से तो हम हर समय ठ के बजाय ट ही क्यों न लिखें, समझने वाले समझ ही जाएँगे, और लिखने वाले की स्याही भी बचेगी। आखिर तमिल में ट, ठ, तो क्या ड और ढ भी ट की तरह ही लिखे जाते हैं, लोग अपने हिसाब से समझ जाते हैं। इसके बारे में भी आपके विचार जानना चाहूँगा।

13.12.08

प्रतिलिपि

एक तो वैसे ही अगर कोई .इन डोमेन पर अपना माल चढ़ाता है तो दिल खुश हो जाता है, ऊपर से इतनी मेहनत से द्विभाषीय पत्रिका निकाली है प्रतिलिपि.इन वालों ने तो क्या कहने।

भइया आखिर द्विमासिक, द्विभाषी पत्रिका है कोई मज़ाक थोड़ी है। और प्रिंट ऑन डिमांड पर। अप्रैल, जून, अगस्त, अक्तूबर के बाद अब यह दिसंबर २००८ का अंक है। सबसे अच्छा तो इसका साज सज्जा लगा - वर्डप्रेस वाकई बढ़िया है। हाँ नाम थोड़ा फ़ैबिंडियाई है पर पढ़िए

12.12.08

आ रहा हूँ अमरूद खाने

कहाँ? वहीं, जहाँ के मशहूर हैं! हो सकती है मुलाकात, तो बढ़िया हो। वैसे जाना मुझे उसी -पुर में है जिस -बाद में वह है। इस शनिवार और इतवार। तेरह दिसंबर की दोपहर से १४ दिसंबर की दोपहर के बीच।


इससे बड़ा नक्शा देखें

अफ़सोस कि पहले बता न पाया, ध्यान ही नहीं रहा! मुलाकात न हो पाए तो कोई बात नहीं, गलती मेरी ही है।

11.12.08

इंस्क्रिप्ट सीखें - का भाग २

लीना मेहंडले द्वारा निर्मित इंस्क्रिप्ट प्रशिक्षक वीडियो का पहला भाग तो मिला था पर दूसरा नहीं।

यह था पहला भाग।

और यह है दूसरा भाग।

अगर आप अभ्यास करना चाहते हैं तो ये वीडियो काम के हैं।

10.12.08

मुबारक हो मुबारक

अपने घर पर बीऍसऍनऍल का फ़ोन लग गया! उम्मीद है कि जल्द ही ब्रोडबैंड भी लग जाएगा। उम्मीद है भारत सरकार के इस कदम से ऊलजुलूल उन्नत तकनीकों से जल्दी छुटकारा मिलेगा। लेकिन बहुत कुछ सीखने को भी मिला। पर अब जल्द ही २७ लाख ७० हज़ार एक होने जा रहे हैं हम!

रमण जी की बदौलत संख्या एक लाख कम हुई। २६ लाख ७० हज़ार एक।

9.12.08

मतदान करें!

आप सबसे अनुरोध है कि चिट्ठाजगत सुझाव मंच को पूर्णतः हिंदी में प्रदर्शित करने के लिए इस सुझाव पर मतदान करें वैसे आप १, २ या ३ मत दे सकते हैं। अधिक से अधिक मत दे के इस कार्यक्रम को जल्द से जल्द सफल बनाएँ।

 

मतदान कड़ी

8.12.08

सुधर्मा

जी हाँ, संस्कृत का अखबार, मैसूर से छपता है, और पीडीऍफ़ प्रारूप में हैं। पिछले कई सालों से हैं, पता नहीं जाल पर कब से है। बढ़िया है।

6.12.08

चिट्ठाजगत.इन के लिए सुझाव देने का एक नायाब तरीका - चिट्ठाजगत मंच

तरीका नायाब है और शानदार भी है।

 

सीधे पहुँचे http://chitthajagat.uservoice.com/ पर, और दे दें अपनी दर्ख्वास्त, इतना ही नहीं, देखें कि और लोग क्या सुझा रहे हैं, और दूसरों के सुझावों पर भी अपनी राय दें।

 

इस्तेमाल करने में आसान, न ही आपका बहुत समय खाएगा।

 

तो इन्तज़ार किस बात का है, आजमाइए चिट्ठाजगत मंच को।

5.12.08

कुछ खेलमखेल

4.12.08

ईरानी रेडियो

ईरानी रेडियो एऍम - शॉर्ट्वेव पर आता है यह पता चला पर यह नहीं पता चला कि इनकी हिन्दी सेवा है या केवल फ़ारसी।

वैसे सपनों के देश ईरान का यह स्थल उच्चारण जानने के लिए बहुत अच्छा है - उदाहरण के लिए ग़ज़्ज़ा - यह उच्चारण तो अपने आकाशवाणी वाले भी नहीं करते लेकिन यहाँ ऐसा लिखा देख के लगता है कि शायद यही सही हो।

3.12.08

आपका संदेश alt.language.hindi में क्षण भर के लिए दिखेगा.

भाई यह तो गड़बड़ है!

मैंने एक समाचार समूह समूह में लेख लिखा, और छापने के बाद गूगल भइया ने कहा,

 

आपका संदेश alt.language.hindi में क्षण भर के लिए दिखेगा.

 

क्यों भाई, कई क्षण बीत चुके हैं अब तक दिख रहा है! शायद गूगल भइया कहना चाहते थे,

 

आपका संदेश alt.language.hindi में क्षण भर में दिखेगा.

 

 

लगता है हिन्दी सीख रहे हैं, शायद कुछ दिनों में ठीक हो जाए।

 

1.12.08

पाकिस्तान के समुद्री तट का अधिग्रहण

एक शान्तिप्रिय देश होने के नाते भारत का फ़र्ज़ है कि पाकिस्तान के १०५० किमी लम्बे समुद्री तट से लगे भूभाग का अधिग्रहण कर ले। दो सौ किलोमीटर गहराई तक। कुल क्षेत्रफल दो लाख वर्ग किलोमीटर। बहुत अधिक नहीं है। इससे दोनो देशों को फ़ायदा होगा।

कुछ जानें जाएँगी, पर कुल मिला के पचास साल की अवधि में जान माल का नुकसान कम ही होगा।

 

यह रहा नक्शा।

 

क्या विचार है आपका?

 

 

27.11.08

जस्टिन.टीवी के जरिए वीडियो देखें

जस्टिन.टीवी वालों ने वीडियो देखने और चढ़ाने की सुहूलियत दी हुई है। अपने पास तो ब्रोडबैंड है नहीं, आपको पास हो तो लुत्फ़ उठाएँ।

26.11.08

कनेडा वालों का स्वच्छ ऊर्जा परियोजना विश्लेषण साफ्टवेयर

यह तो पता नहीं कि इससे होता क्या है, लेकिन इन्होंने मुफ़्त में उतारने की सुविधा दी हुई है, यदि चाहें तो आजमा सकते हैं। मूलतः स्वस्थ ऊर्जा का इस्तेमाल करने में अधिक सुहूलियत हो इसके लिए बनाया गया है।

25.11.08

फ़ोकट में इश्तिहार दें क्लिक.इन पर

क्लिक.इन के जरिए आप फ़ोकट में विज्ञापन छाप सकते हैं। अभी एक विज्ञापन खुद छाप के देखता हूँ, अरे नहीं, डाक पता देना पड़ेगा। इत्ता समय नहीं है अभी, सोना भी है आखिर।

पर अगर किसी ने आजमाई हो तो बताएँ कैसी है यह सुविधा।

24.11.08

कचरे में टिप्पणियाँ डालने का नया कीर्तिमान

वह भी एक दिन में पचास।

कचरा टिप्पणी

और उन्हें नौ दो ग्यारह करने का भी। चलो इस बहाने मैंने कुछ लिखा। अफ़सोस भी हुआ, कि इतने सालों से बे-छींटाकसी वाले लेखों पर १ की संख्या दिखने लगी, पर उसे फिर से सिफ़र पे लाना पड़ा!

4.11.08

विकीपीडिया के लिए मेरा पहला लेख

वह भी कुद का पतीसा खा के। दरअसल ज़्यादा कुछ है नहीं इसमें और हो सकता है कोई संपादक-वंपादक अब तक इस पर कैंची चला चुका हो पर लिख तो डाला ही। ये बात सही है कि अनुवाद के बजाय ताज़ा माल लिखना उतना ही बढ़िया लगता है जितना कुद का पतीसा खाना।

 

कई साल(यानी अन्तर्जाल के साल, वास्तव में हफ़्ते) पहले यह सोचा था कि हिन्दी के लेखों में जित्ते भी अहिन्दी विकीपीडिया संदर्भ हैं उनकी फ़ेरहिस्त तैयार की जाए। पर चौदहवीं का चाँद देखने से फुरसत मिले तब न। वैसे फ़िल्म अच्छी थी।

3.11.08

डॉक्सीजॅन

आजकल डॉक्सीजॅन को आजमा रहा हूँ। बढ़िया चीज़ है। अपना काम अधिकतर सी प्लस प्लस में है लेकिन इसके जरिए जावा और सी प्लस प्लस दोनो के लिए एक ही तरह के दस्तावेज़ बनाए जा सकते हैं, और वह भी कूट के अन्दर ही अन्दर। बस देखना यह है कि दोनो पहिए एक साथ कब तक और कैसे चलते हैं।

28.9.08

कुछ राजनीति हो जाए

आमतौर पर तो मैं राजनीति फाजनीति में दिलचस्पी नहीं लेता लेकिन यहाँ मामला थोड़ा संजीदा है, क्योंकि जब १९९८ में हमारे नाभिकीय विस्फोट की खबर अखबार में दिखी थी - हाँ उन दिनों जिस गाँव में मैं था वहाँ अगले दिन के अखबार से ही खबरें पता चलती थीं - तो मुझे अच्छी तरह याद है कि अखबार को कम से कम आधे घंटे तक एकटक देखता रहा था। एक एक शब्द पढ़ा था। ऐसा लगा था कि हाँ, हम भी किसी से कम नहीं है। शायद उसी विश्वास और गर्व की अनुभूति की वजह से लगी लगाई नौकरी छोड़के कंप्यूटरों की पढ़ाई शुरू की। शायद उसी वजह से मैं आज यहाँ पर यह लिख पा रहा हूँ, वरना मेरी दुनिया दूसरी वाली ही होती।

लेकिन इस लेख में दिए दो लोगों के विचार - एक आणविक ऊर्जा समिति के पूर्वाध्यक्ष और एक संसद सदस्य - और तथ्यों का खुलासा - यह बताता है कि आणविक समझौता हमें वहाँ ठेल रहा है जहाँ हम १९६० से न जाने की कोशिश कर रहे हैं।

यह समझौता पारित होने के बाद अमरीकी संसद ने कुछ सवाल पूछे, उनके जवाब में अमरीकी प्रशासन ने जो कहा, उससे साफ़ है कि भारत अपने रिऍक्टरों को अमरीका के निरीक्षण में ला रहा है, और अगर हम एक भी नाभिकीय परीक्षण - एक भी अणु बम - फिर से परीक्षित करते हैं, तो यह सहयोग तो बन्द होगा ही, और किसी देश से सहयोग न मिले, इसकी भी अमरीकी पुरज़ोर कोशिश करेंगे। इतना ही नहीं अगर यह समझौता किसी वजह से रद्द होता है - तो अमरीकी एक एक ग्राम यूरेनियम वापस माँगेगे। यह सब जानते हुए भी हमारी सरकार इसे मान गई है।

यानी, परमाणु परीक्षण करने के बाद, सशक्त की तरह बातचीत करके कुछ पाने के बजाय घुटने टेकू काम।

अफ़सोस! शायद यह अशिक्षितों को मतदान का अधिकार देने का खामियाजा है। और शिक्षितों के रोजी रोटी में "बिज़ी" रहने का।

27.9.08

गूगल के विज्ञापन - हिन्दी वाले - थरथराहट

सुधर जाओ, सालों

थरमसो के विशव निरमा विक्रेता,निरयात? ऍड्वर्ड्स वालों को अपनी छन्नी सुधारनी होगी। अंग्रेज़ी हिन्दी की खिचड़ी और अव्याकरणोपयुक्त माल। अंग्रेज़ी में नहीं चलता है पर हिन्दी में पेल रहे हैं। लगता है देखने वाला कोई नहीं है।

जय हिन्द। लूमीलाग्रो थर? थरथराहट।

14.9.08

आज की कारस्तानियाँ

आज के दिन मैं नौ दो ग्यारह होने से पहले यह सब करते हुए धरा गया -
  • 19:29 ठण्डा पानी पी रहा हूँ। #
यह सेवा पेश की है लाउडट्विटर ने, उनको धन्यवाद।

कभी कभी अदिति

देख रहा हूँ, दूसरी बार। कैमरा प्रिण्ट। बाहर गर्मी बहुत है। लखनऊ के मौसम की कलई खुल गई। हिन्दी के कितने सारे शब्दों में बीच में स्वर आते हैं पर संस्कृत में नहीं। सही या गलत?

लखनऊ

पहुँच गया, मौसम अच्छा है आज।

रात

रात हो जाती है, आप सो जाते हैं पर आपकी दुनिया जागती ही रहती है। भला हो टाइमज़ोनों का।

रात

रात हो जाती है, आप सो जाते हैं पर आपकी दुनिया जागती ही रहती है। भला हो टाइमज़ोनों का।

13.9.08

यह लेख ओपेरा मिनी के जरिए नोकिया 2626 से ब्लागर डाट काम का इस्तेमाल कर रहा हूँ। यह फ़ोन 2075 का पड़ा, मज़ेदार है।

नोकिया 2626 से छापा

यह लेख ओपेरा मिनी के जरिए नोकिया 2626 से ब्लागर डाट काम का इस्तेमाल कर रहा हूँ। यह फ़ोन 2075 का पड़ा, मज़ेदार है।

19.8.08

गूगल पर बीजिंग २००८

तो गूगल वालों ने आज आपने शुभंकर पर चटका लगाने पर बीजिंग २००८ की खोज पर ले जाने का फ़ैसला किया है। बीजिंग २००८ ५०,४०० परिणाम मिलते हैं, "बीजिंग २००८" की खोज के, और २,५९,००० परिणाम मिलते हैं, "बीजिंग 2008" के, पदक तालिका समेत। हाँ, वरियताएं और शामील को ठीक करना अभी बाकी है।

अंतरंग

वास्तव में लिखने और सोचने में फ़र्क है, यानी, आप जो सोचते हैं उसे लिख कर व्यक्त कर तो सकते हैं पर दिमाग़ में क्या चल रहा है, ठीक उसे तो नहीं लिख सकते, ऐसा कहीं पढ़ा था। जैसे कि आप कोई भी शब्द लें, मसलन आज़ादी। कई मतलब हैं इस शब्द के, लेकिन शब्द एक ही है। उसी तरह, विशेषण, जैसे कि अच्छा, बड़ा, लाल, तेज़, कड़वा - एक ही शब्द लेकिन वह वास्तव में भाव को व्यक्त करने में असमर्थ हैं, यानी समर्थ तो हैं पर यह है तो मात्र अन्दाजन ही। जैसे, हरी मिर्च और काली मिर्च दोनो ही कड़वी होती हैं और करेला भी पर कड़वाहट में फ़र्क फिर भी है।

वही फ़र्क भाषा दर भाषा भी आ जाता है, और लेखन पद्धति की वजह से भी। रूसी में ह का परिचायक कोई अक्षर नहीं है। केवल X जिसका उच्चारण ह और ख के बीच का होता है - कुछ कुछ ख़ की तरह। मिखाइल गोर्बाचेव में भी इसी का इस्तेमाल होता है और महेश में भी, और हैङ्कॉक में भी।

वास्तव में भारत की सभी भाषाओं के लिए एक ही लिपि रखने का विचार है तो अच्छा पर ऐसा होने से भी हम कुछ खो देंगे।

15.8.08

आज की कारस्तानियाँ

आज के दिन मैं नौ दो ग्यारह होने से पहले यह सब करते हुए धरा गया -
  • 18:11 आज़ादी #
यह सेवा पेश की है लाउडट्विटर ने, उनको धन्यवाद।

मॉस्को

हम : यह लो चॉकलेट और केक।
रूसी : वाह। आपका जन्मदिन है?
हम : नहीं। हमारा स्वतन्त्रता दिवस है।
रूसी : स्वतन्त्रता दिवस! {???} अच्छा बधाई हो।
रूसी : किस चीज़ से स्वतन्त्रता?
हम : बरतानिया से।
रूसी : हाँ हाँ हम भी वही सोच रहे थे!

मॉस्को

मॉस्को की और तस्वीरें

25.7.08

गूगल टॉक में लिप्यन्तरण और अनुवाद

गूगल टॉक के जरिए लिप्यन्तरण करने की सुविधा - इस डाक पते को जोड़ें - en2hi.translit@bot.talk.google.com

गूगल टॉक लिप्यन्तरण

और फिर आजमाएँ -

गूगल टॉक लिप्यन्तरण उदाहरण

इसी तरह अनुवाद के लिए - en2hi@bot.talk.google.com

गूगल टॉक अनुवादक

और फिर आजमाएँ -

गूगल टॉक अनुवादक उदाहरण

इसी तरह कन्नड़, मलयालम, तमिल, तेलुगु के लिए भी हैं।

6.7.08

फ़ेसबुक

हर रोज़ ५०,००० नए सदस्य शामिल हो रहे हैं। ऑर्कुट से कुछ हटकर, मेरी राय में उससे बेहतर। ज़्यादा तेज़। गोपनीयता के लिहाज़ से बेहतर।

शामिल होने के लिए कड़ी

21.6.08

इंस्क्रिप्ट के जरिए हिन्दी लिखने के लिए सात मिनट दस सेकिंड का वीडियो

बड़े दिनों से - बल्कि सालों से सोच रहा था कि इंस्क्रिप्ट सिखाने का कोई आसान तरीका हो। इंस्क्रिप्ट है तो आसान पर जब तक आमने सामने बैठे न हों समझाना मुश्किल होता है कि यह कितना आसान है। शुक्र है संस्तुति जी का जिन्होंने यह वीडियो - नहीं व्हीडियो - तैयार किया - जो सात मिनट दस सेकिंड का है, और इसके जरिए ७ साल के बच्चे से ले के ७७ साल के जवाब तक आसानी से इंस्क्रिप्ट सीख सकते हैं।

यह लेख भी मैं इंस्क्रिप्ट के जरिए ही लिख रहा हूँ। दरअसल इंस्क्रिप्ट मुश्किल इसलिए लगता है क्योंकि हमें समझ नहीं आता है कि क k की जगह क्यों है और त l की जगह क्यों हैं। पहले पाँच मिनट इस व्हीडियो में संस्तुति जी यही समझाती हैं कि इंस्क्रिप्ट का जमाव जैसा है, वैसा क्यों है। वह यह भी समझाती हैं कि भारत की अलग अलग भाषाओं में टाइपराइटर के जमाव अलग अलग क्यों हुए, और हर भारतीय भाषा के लिए इंस्क्रिप्ट जमाव एक जैसा क्यों हैं, और इसके फ़ायदे क्या हैं।

संस्तुति जी अपने व्हीडियो का परिचय देते हुए कहती हैं -

अधिकतर भारतीय लेखक सभी भारतीय भाषाओं में टंकण करने के लिए एक आसान जुगाड़ नहीं जालते हैं -- आधे घंटे से कम में सीखें। इंस्क्रिप्ट का तरीका सीखिए, एक ही बार में। यह कुञ्जीपटल जमाव बिल्कुल सरल है। टंकण की कक्षाओं में जाने की ज़रूरत ही नहीं है।
मुझे लगता है कि इंस्क्रिप्ट के अधिक लोकप्रिय न होने का एक कारण यह भी रहा हो कि टंकण कक्षाओं वालों को इसमें कुछ फ़ायदा नहीं होता। जो चीज़ दो दिन में सिखाई जा सकती है उसके लिए काहे का कोर्स और कितने पैसे का कोर्स?

एक बार यह समझ आ जाए कि इंस्क्रिप्ट का जमाव जैसा है, वैसा क्यों है, फिर इंस्क्रिप्ट सीखने के लिए कोई शिक्षक, कोई कितबिया, कुछ नहीं चाहिए। बस लिखते जाएँ, और धीरे धीरे अपनी गति बढ़ाते जाएँ।

मुझे व्हीडियो का पहला भाग ही मिला है, यदि आपको अन्य भाग मिलें तो मुझे ज़रूर बताएँ।

यह लीजिए व्हीडियो।

व्हीडियो पर टिप्पणी करें

18.6.08

नया फ़ायर्फाक्स ३ पिछले १२ घंटे में ४१ लाख लोग डाउनलोड कर चुके हैं - आप भी करें - इसमें हिन्दी प्रदर्शन की सारी समस्याएँ सुलझ गई हैं।

मोज़िला की गिनती बता रही है कि पिछले बारह घंटे में ४१ लाख बार फ़ायर्फ़ाक्स ३ उतारा जा चुका है। यह इंटर्नेट एक्स्पलोरर, ऑपेरा और सफ़ारी की तरह ही एक ब्राउज़र है जो कि बिल्कुल मुफ़्त, बहुत तेज़ और हिन्दी प्रदर्शन अच्छी तरह करने वाला है।

 

मोज़िला वाले, जो फ़ायर्फ़ाक्स बनाते हैं – आज रात यानी १८-जून-२००८ साढ़े दस बजे आपको फ़ायर्फ़ाक्स उतारने का न्यौता दे रहे हैं।

 

वैसे उतार तो आप बाद में भी सकते हैं पर कीर्तिमान स्थापित करना है न २४ घंटे में अधिकाधिक लोगों द्वारा उतारने का!

 

रचना जी ने तो उतार लिया है, और वह कह रही हैं कि हिन्दी प्रदर्शन में फ़ायर्फ़ाक्स में जो पहले समस्याएँ थीं, वह अब दूर हो चुकी हैं। आप भी जाइए फ़ायर्फ़ाक्स के स्थल पर, और आजमाइए इसे।

फ़ायर्फ़ाक्स ३ उतारने का दिन आज है - १८-जून-२००८ - उतारें और हिन्दी प्रदर्शन की समस्याएँ हल करें

फ़ायर्फ़ाक्स ब्राउज़र का नया उद्धरण कल रात भारतीय समयानुसार साढ़े दस बजे उद्घाटित हुआ।

इसका इस्तेमाल करने में हिन्दी के पाठकों और लेखकों को कई फ़ायदे हैं। एक तो यह ज़्यादा तेज़ है, दूसरा आपकी पुराने फ़ायर्फ़ाक्स की टूलबार आदि भी यथावत चलेंगी, और तीसरी सबसे बड़ी बात, हिन्दी के प्रदर्शन में जो समस्याएँ यदा कदा फ़ायर्फ़ाक्स पर आती थीं, वह फ़ायर्फ़ाक्स ३ में बिल्कुल ठीक कर दी गई हैं। तो आप भी उतारिए फ़ायर्फ़ाक्स ३ आज ही -

फ़ायर्फ़ाक्स के आधिकारिक स्थल से एक चटके में डाउनलोड करें

13.6.08

अतनु डे - हिन्दी में!

आप में से जो लोग अतनु डे से परिचित नहीं है, वे एक अर्थशास्त्री हैं और भारत के विकास से सम्बन्धित कई लेख उन्होंने अङ्ग्रेज़ी में लिखे हैं। उनसे अनुमति माँगी कि क्या उनके लेख हिन्दी में छापे जा सकते हैं, और मिल गई। लेख हैं http://deeshaahi.wordpress.com पर, और यह मानवीय अनुवाद हैं, मशीनी नहीं। अभी तक एक ही लेख अनूदित हुआ है। आप चाहें तो किसी और लेख का अनुवाद करने का भार भी उठा सकते हैं।

लेखों पर सर्वाधिकार अतनु डे का ही है।

तो पढ़िए उनके लेख, और विचार कीजिए, और टिप्पणी कीजिए

11.6.08

गूगल सुझाव, टेक्नोलॉजी, अश्लीलता, और प्रयोक्ता का अनुभव - सुधारना आपके हाथ में है

यह शीर्षक आपको कुछ दिन पहले विनीत खरे जी के लेख के शीर्षक जैसा लगेगा, और यह इसलिए क्योंकि यह लेख उसी पान की दुकान वाले लेख से संबंधित है। इस "समस्या" को देखने के लिए आपको

  1. हिन्दी वाला गूगल लागू करना होगा, पर
  2. खोज अंग्रेज़ी अक्षर s से करनी होगी - वैसे आप स से करें तो भी परिणाम वही होगा :
यानी वयस्कोन्मुख सामग्री को इंगित करने वाले शब्द सुझाए जा रहे हैं।

यही हाल कुछ और अक्षरों की खोज करने पर होता है।

क से ले कर,

फ से ले कर

ब तक।

मेरे द्वारा ली गई तस्वीरें करीब एक महीने पुरानी हैं इसलिए हो सकता है कि आपको इस वक़्त कुछ और परिणाम मिलें।

वास्तव में यह खोज मैंने दफ़्तर में की थी, s से कुछ खोज कर रहा था - स से नहीं - और परिणामों के सुझाव आने लगे, उत्सुकता हुई और तस्वीरें सँजो के रख लीं।

यह है तो समस्या ही, आखिरकार सुझाव तो ठीक है पर देश और काल के आधार पर नैतिकता बदलती है कि नहीं?

विनीत जी का लेख देखने के बाद, और उसपर लिखी टिप्पणियों से यही लगा कि हाँ वास्तव में इन शब्दों की खोज अधिक होती है इसलिए यह सुझाव में आए हैं। कुछ लोगों ने इसे सहज भाव से लिया और कुछ ने नहीं, जैसे कि स्वयं विनीत जी ने।

और सहज भाव से न लेना भी स्वाभाविक ही है, यह भाषा और संस्कृति से इतर है, आप किसी गंभीर विषय पर खोज कर रहे हों और सुझाव ऐसे आने लगें, जब कि आसपास लोग भी बैठे हों तो कैसा रहेगा?

अंग्रेज़ी वाले गूगल में तो सुझाव हमेशा नहीं आते पर हिन्दी वाले में तो हमेशा आते हैं!

बस एक बार अंग्रेज़ी वाले गूगल के जरिए आजमा के देखा - http://google.com/webhp?complete=1&hl=en से अंग्रेज़ी वाले गूगल में सुझाव आते हैं।

और यही पाया कि, अंग्रेज़ी में गूगल अश्लील सुझाव खा गया,

जी हाँ बिल्कुल खा गया,

दुबारा खा गया -

यहाँ भी वयस्कोन्मुख सुझाव नहीं दिखे,

न यहाँ,

बिल्कुल भी नहीं,

यहाँ थोड़े हैं।

वास्तव में हो क्या रहा है? मैंने एक बार विकल्प में जा के वयस्कोन्मुख सामग्री न हटाने का विकल्प भी चुनने की कोशिश की - वयस्कोन्मुख सामग्री हटाने का विकल्प लागू नहीं था।

यानी क्या? यानी यह, कि गूगल ने मामले की संजीदगी को समझते हुए वयस्कोन्मुख और संभवतः आपत्तिजनक सुझाव हटा दिए हैं - अंग्रेज़ी के लिए कम से कम।

पर फिर हिन्दी में क्यों नहीं? शायद इसलिए कि अभी गूगल हिन्दी सीख रहा है। वैसे, शायद कुछ सुझाव हिन्दी में भी हटाए गए हैं, क्योंकि मैं चकित हुआ था कि च के लिए वयस्कोन्मुख सुझाव नहीं थे - मतलब कि यह बाला अभी हिन्दी सीख रही है!

विनीत जी ने बात बहुत वाजिब उठाई है, और इस वक़्त हिन्दी के लिए जो सुझाव गूगल पर दिख रहे हैं वह वास्तव में अपरिमार्जित हैं और खोज की आवृत्ति के आधार पर हैं, स्वचालित। लेकिन शायद आपत्तिजनक सुझावों को हटाने की प्रक्रिया अभी उतनी सशक्त नहीं हुई है। लेकिन यह प्रक्रिया मौजूद तो है - यह ज़ाहिर होता है च वाले सुझावों से। इस बारे में गूगल को लिख रहा हूँ, शायद वे इसे और सशक्त करने पर गौर करें।

पर तीन बातें अवश्य सामने आती हैं -

  1. अभी भी बहुत कम लोग गूगल के स्थल के हिन्दी उद्धरण का इस्तेमाल करते हैं। तभी यह मुद्दा अभी तक उछला नहीं। इस्तेमाल करिए - इसके लिए आप वरीयता या प्रिफ़रेंसेज़ में जा सकते हैं। गूगल वाले नज़र रखते हैं कि कौन सी भाषा के पन्नों का इस्तेमाल अधिक हो रहा है। हिन्दी के इस्तेमाल की संख्या बढ़ाइए। हिन्दी के जालस्थलों को बेहतर बनाने की जिम्मेदारी आपकी है उनका इस्तेमाल करके, और उनपर प्रतिक्रिया दे के। इस काम में भारत सरकार या किसी देवी देवता का कोई जिम्मा नहीं है, यह उत्तरदायित्व आपका है।
  2. जिस व्यक्ति को हिन्दी टंकण आता है उसके लिए S अक्षर छापने पर देवनागरी के परिणाम दिखाना - मुझे तो नहीं जमता, अगर इसे वैकल्पिक बनाने की सुविधा हो तो अच्छा हो। वैसे सुझाव स से भी आते हैं। पर इस समय हिन्दी टंकण न जानने वालों की संख्या कम है अतः यह समस्या इस समय काफ़ी गौण है।
  3. गूगल वालों ने अपने मुख पृष्ठ पर वरीयताएँ को वरियताएँ लिखा है। इसे भी ठीक करवाने के लिए डाक लिख रहा हूँ!

अब हम होते हैं नौ दो ग्यारह!

गूगल सुझाव, टेक्नोलॉजी, अश्लीलता, और प्रयोक्ता का अनुभव - सुधारना आपके हाथ में है

यह शीर्षक आपको कुछ दिन पहले विनीत खरे जी के लेख के शीर्षक जैसा लगेगा, और यह इसलिए क्योंकि यह लेख उसी पान की दुकान वाले लेख से संबंधित है। इस "समस्या" को देखने के लिए आपको

  1. हिन्दी वाला गूगल लागू करना होगा, पर
  2. खोज अंग्रेज़ी अक्षर s से करनी होगी - वैसे आप स से करें तो भी परिणाम वही होगा :
यानी वयस्कोन्मुख सामग्री को इंगित करने वाले शब्द सुझाए जा रहे हैं।

यही हाल कुछ और अक्षरों की खोज करने पर होता है।

क से ले कर,

फ से ले कर

ब तक।

मेरे द्वारा ली गई तस्वीरें करीब एक महीने पुरानी हैं इसलिए हो सकता है कि आपको इस वक़्त कुछ और परिणाम मिलें।

वास्तव में यह खोज मैंने दफ़्तर में की थी, s से कुछ खोज कर रहा था - स से नहीं - और परिणामों के सुझाव आने लगे, उत्सुकता हुई और तस्वीरें सँजो के रख लीं।

यह है तो समस्या ही, आखिरकार सुझाव तो ठीक है पर देश और काल के आधार पर नैतिकता बदलती है कि नहीं?

विनीत जी का लेख देखने के बाद, और उसपर लिखी टिप्पणियों से यही लगा कि हाँ वास्तव में इन शब्दों की खोज अधिक होती है इसलिए यह सुझाव में आए हैं। कुछ लोगों ने इसे सहज भाव से लिया और कुछ ने नहीं, जैसे कि स्वयं विनीत जी ने।

और सहज भाव से न लेना भी स्वाभाविक ही है, यह भाषा और संस्कृति से इतर है, आप किसी गंभीर विषय पर खोज कर रहे हों और सुझाव ऐसे आने लगें, जब कि आसपास लोग भी बैठे हों तो कैसा रहेगा?

अंग्रेज़ी वाले गूगल में तो सुझाव हमेशा नहीं आते पर हिन्दी वाले में तो हमेशा आते हैं!

बस एक बार अंग्रेज़ी वाले गूगल के जरिए आजमा के देखा - http://google.com/webhp?complete=1&hl=en से अंग्रेज़ी वाले गूगल में सुझाव आते हैं।

और यही पाया कि, अंग्रेज़ी में गूगल अश्लील सुझाव खा गया,

जी हाँ बिल्कुल खा गया,

दुबारा खा गया -

यहाँ भी वयस्कोन्मुख सुझाव नहीं दिखे,

न यहाँ,

बिल्कुल भी नहीं,

यहाँ थोड़े हैं।

वास्तव में हो क्या रहा है? मैंने एक बार विकल्प में जा के वयस्कोन्मुख सामग्री न हटाने का विकल्प भी चुनने की कोशिश की - वयस्कोन्मुख सामग्री हटाने का विकल्प लागू नहीं था।

यानी क्या? यानी यह, कि गूगल ने मामले की संजीदगी को समझते हुए वयस्कोन्मुख और संभवतः आपत्तिजनक सुझाव हटा दिए हैं - अंग्रेज़ी के लिए कम से कम।

पर फिर हिन्दी में क्यों नहीं? शायद इसलिए कि अभी गूगल हिन्दी सीख रहा है। वैसे, शायद कुछ सुझाव हिन्दी में भी हटाए गए हैं, क्योंकि मैं चकित हुआ था कि च के लिए वयस्कोन्मुख सुझाव नहीं थे - मतलब कि यह बाला अभी हिन्दी सीख रही है!

विनीत जी ने बात बहुत वाजिब उठाई है, और इस वक़्त हिन्दी के लिए जो सुझाव गूगल पर दिख रहे हैं वह वास्तव में अपरिमार्जित हैं और खोज की आवृत्ति के आधार पर हैं, स्वचालित। लेकिन शायद आपत्तिजनक सुझावों को हटाने की प्रक्रिया अभी उतनी सशक्त नहीं हुई है। लेकिन यह प्रक्रिया मौजूद तो है - यह ज़ाहिर होता है च वाले सुझावों से। इस बारे में गूगल को लिख रहा हूँ, शायद वे इसे और सशक्त करने पर गौर करें।

पर तीन बातें अवश्य सामने आती हैं -

  1. अभी भी बहुत कम लोग गूगल के स्थल के हिन्दी उद्धरण का इस्तेमाल करते हैं। तभी यह मुद्दा अभी तक उछला नहीं। इस्तेमाल करिए - इसके लिए आप वरीयता या प्रिफ़रेंसेज़ में जा सकते हैं। गूगल वाले नज़र रखते हैं कि कौन सी भाषा के पन्नों का इस्तेमाल अधिक हो रहा है। हिन्दी के इस्तेमाल की संख्या बढ़ाइए। हिन्दी के जालस्थलों को बेहतर बनाने की जिम्मेदारी आपकी है उनका इस्तेमाल करके, और उनपर प्रतिक्रिया दे के। इस काम में भारत सरकार या किसी देवी देवता का कोई जिम्मा नहीं है, यह उत्तरदायित्व आपका है।
  2. जिस व्यक्ति को हिन्दी टंकण आता है उसके लिए S अक्षर छापने पर देवनागरी के परिणाम दिखाना - मुझे तो नहीं जमता, अगर इसे वैकल्पिक बनाने की सुविधा हो तो अच्छा हो। वैसे सुझाव स से भी आते हैं। पर इस समय हिन्दी टंकण न जानने वालों की संख्या कम है अतः यह समस्या इस समय काफ़ी गौण है।
  3. गूगल वालों ने अपने मुख पृष्ठ पर वरीयताएँ को वरियताएँ लिखा है। इसे भी ठीक करवाने के लिए डाक लिख रहा हूँ!

अब हम होते हैं नौ दो ग्यारह!

10.6.08

कॉफ़ी विद कुश - एक शानदार शुरुआत, पहली बॉल पर छक्का

जनाब, अगर आपने नहीं पढ़ा हो तो तुरन्त चटका लगाइए – कॉफ़ी विद कुश की ओर से एक साक्षात्कार, पल्लवी त्रिवेदी का। पल्लवी का संटी वाला लेख तो मैंने भी पढ़ा था, पर उस समय यह नहीं पता था कि वे भोपाल पुलिस में काम करती हैं! बढ़िया है, पहले बाड़मेर, फिर सीकर तो अब भोपाली क्यों नहीं!

 

वैसे पल्लवी के लेखन में पुलिसिया कुछ भी नहीं है, और लाख की बात एक – दिलचस्प है कुश और पल्लवी की गुफ़्तगू। आप भी पढ़िए इस ३५ टिप्पणी वाले साक्षात्कार को, हम होते हैं नौ दो ग्यारह।

 

वैसे बाड़मेरी और सीकरी चिट्ठी ही शायद दो ऐसे चिट्ठे होंगे जहाँ टिप्पणी सम्राट अपने मोती नहीं बिखेरते हैं!

5.6.08

ये http और www क्या है? क्या http माने जालस्थल और www माने चिट्ठा?

पिछले कुछ दिनों में कुछ लेख पढ़ने को मिले जिनसे ऐसा लगा कि इस www और http के बारे में खुलासा देना ज़रूरी है। आखिरकार आप स्वादिष्ट भोजन खाते हैं, तो यह उत्सुकता तो होती ही है न कि उसमें डाला क्या गया है? पकाया कैसे गया है? उसी तरह भले ही आप केवल जालस्थलों के पाठक हों, या केवल चिट्ठा चलाते हों तो भी यह पता होना अच्छा ही है कि किसी भी जालस्थल के पते के मायने क्या हैं। दरअसल जब तक मैं भी केवल खाता ही था, पकाता नहीं था, इन सब शब्दों के बारे में मुझे भी कई भ्रान्तियाँ थीं, और इन भ्रान्तियों के चलते मैंने कई लोगों को अनजाने में ही सही, पर गुमराह भी किया है।

इसलिए यह वाजिब ही है कि इस विषय में अब तक जो सीखा है उसे आपके सामने रखूँ और इस सिलसिले में और ज्ञान भी पाऊँ।

पहले समझते हैं कि यूआरऍल - यूनिफ़ार्म रिसोर्स लोकेटर - "संसाधनों के समरूपी पते" के क्या अंश होते हैं, एक उदाहरण के साथ।

http://translate.google.com/translate_t/?langpair=hi|en
  1. पहला हिस्सा - http:// - है प्रोटोकॉल। यह बताता है कि इस पते तक पहुँचने के लिए आपके ब्राउज़र को किस कंप्यूटरी भाषा का प्रयोग करना होगा। एक तरह से, यह वास्तव में पता नहीं है, श्री, सुश्री की तरह सम्बोधन जैसा है।
  2. दूसरा हिस्सा - पहली बिन्दु तक - translate - यह उपडोमेन है। इसके बारे में थोड़ी देर में, पहले तीसरे हिस्से को समझ लें।
  3. तीसरा हिस्सा - पहले / तक - google.com - यह डोमेन है। डोमेन वास्तव में एक (अधिकतम १२ अंकों की) संख्या होता है, पर इंसानों को नंबर से ज़्यादा नाम याद रहते हैं, इसलिए डोमेन नामों का प्रचलन है। इस १२ अंक की संख्या को आईपी कहते हैं। और आईपी से डोमेन नाम तथा डोमेन नाम से आईपी पता लगाने की निर्देशिका का काम डोमेन नाम सर्वर करते हैं। इसे डीएनएस प्रबन्धन भी कहा जाता है।
  4. चौथा हिस्सा - ? तक - translate_t/ - यह पथ है। जालस्थल जिस सर्वर पर है, वहाँ अलग अलग फ़ाइलें अलग अलग निर्देशिकाओं में होती हैं। उनका पथ डोमेन नाम के ठीक बाद रहता है।
  5. पाँचवाँ हिस्सा - ? के बाद - langpair=hi|en - परिमाण हैं। किसी पथ पर मौजूद फ़ाइल को कोई और परिमाण प्रदान करने हों तो इसका इस्तेमाल होता है।

आइए अब समझते हैं कि http क्या है और www क्या है। http तो वास्तव में संबोधन ही है, पता नहीं है। http के अलावा ftp, news, file, https आदि संबोधन भी होते हैं। किसी भी जालस्थल के लिए http या https का संबोधन ही लगेगा। आपने देखा होगा कि यदि आप अपने ब्राउज़र में अगर http:// नहीं लिखते हैं तो भी वह स्वतः ही आगे श्री या सुश्री की तरह http:// चेंप देता है।

www - ऊपर दिए गए उदाहरण में दूसरा अंश - उपडोमेन का है। जिस प्रकार ऊपर translate एक उपडोमेन है, उसी तरह www भी एक उपडोमेन का नाम हो सकता है। उपडोमेन का यह लाभ है कि एक ही डोमेन नाम लेने के बावजूद आप पाँच छः अलग अलग सर्वरों पर अलग अलग उपडोमेन रख सकते हैं। अगर आप चाहें तो एक का दूसरे से वास्ता भी नहीं हो। उदाहरणार्थ, blogspot.com वालों ने एक ही डोमेन का पैसा दे के अलग अलग प्रयोक्ताओं को अलग अलग उपडोमेन में चिट्ठे बनाने की सुविधा दी है। उपडोमेन होना अनिवार्य नहीं है, अगर आप अपने डोमेन पर एक ही स्थल चाहते हैं तो कोई आवश्यक नहीं है कि उपडोमेन रहे।

तो फिर यह www है क्या?

एक परंपरा सी बन गई है कि अगर किसी स्थल का उपडोमेन न हो तो उसका उपडोमेन www मान लिया जाता है। इसीलिए, अधिकतर डीएनएस प्रबन्धक आजकल www.example.com और example.com दोनो को एक दूसरे का पर्यायवाची बनाने का विकल्प देते हैं। यह अनिवार्य नहीं है, लेकिन पाठकगण यह उम्मीद करते हैं कि www.example.com और example.com एक ही चीज़ होगी इसलिए यह परंपरा चल पड़ी है।

क्या http: का मतलब चिट्ठा, और www का मतलब जालस्थल?

जी नहीं। चिट्ठा वास्तव में है क्या? एक खास प्रारूप में जानकारी प्रदान करने वाला जालस्थल ही तो। और कुछ नहीं।

http का इस्तेमाल तो हर जालस्थल को पुकारने के लिए होगा - चाहे वह चिट्ठा हो या नहीं। यह मात्र संबोधन है। www एक उपडोमेन है, पारंपरिक उपडोमेन, जो किसी भी डोमेन के आगे लगाया जा सकता है। चाहें वह डोमेन चिट्ठे का हो या किसी और स्थल का।

एक उदाहरण के साथ समझते हैं।

अगर आप

तो एक ही पन्ना खुलता है - क्योंकि www और बिना उपडोमेन वाल स्थल हैं तो अलग अलग, लेकिन एक ही जगह अग्रेषित किए गए हैं।

लेकिन ऍडसेंस निर्माता गोकुल राजाराम के स्थल, पर देखिए -

उन्होंने यह अग्रेषण लागू नहीं किया है! यह अग्रेषण करना ज़रूरी नहीं है, बस पाठकों के लिए सुविधाजनक है इसलिए इसकी परंपरा बन गई है।

आशा है अब चश्मे के बाहर लगी धूल साफ़ हो गई होगी।

या उँगलियों के निशान रह गए हैं?

पुनश्च - पिछले सन्देश के बारे में बाल किशन जी ने पूछा है कि क्या मैं उनकी डोमेन, डाक पते आदि संबधी मदद करूँगा क्या। जवाब यही है कि जी हाँ बिल्कुल। और केवल बाल किशन जी ही नहीं, यदि आप में से किसी और को भी कोई प्रश्न हों तो बेधड़क पूछें।

3.6.08

सिर्फ़ पाँच मिनट और चार कदमों में अपने पते को meraanaam@gmail.com के बजाय mera@meraanaam.in करें, और पुराना पता भी जारी रखें

आइए आज देखते हैं कि आप अपने फ़ोकटी जीमेल के पते के बजाय अपने डोमेन वाले पते का इस्तेमाल कैसे कर सकते हैं। और वह भी पुराना पता गँवाए बगैर।

  1. आपको एक डोमेन खरीदना होगा। .इन डोमेन ८०० रुपए सालाना में मिलते हैं।
  2. इसके बाद अपने डोमेन के डीऍनऍस प्रबन्धन में जा के मेल फ़ॉर्वर्ड का विकल्प चुन लें। मैंने ज़ोनएडिट का इस्तेमाल किया है।
  3. इसके बाद इस प्रकार जानकारी प्रदान करें। - * @ meraanaam . in is forwarded to meraanaam @ gmail . com और जोड़ दें।
  4. आपको चेतावनी दी जाएगी, Are you sure you want to do this? This will delete your MX records. यहाँ पर हाँ चुनें और आगे बढ़ें।

हो गया काम। ऊपर * देने का अर्थ है कि इस डोमेन की सारी डाक एक ही पते पर अग्रेषित की जाए। अगर आप कोई खास नाम चाहते हैं तो * के बजाय कुछ और दें जैसे कि अपना नाम। ऐसा करने से केवल meraanaam@meraanaam.in को भेजी डाक आपतक पहुँचेगी पर kuchhbhi@meraanaam.in वाली डाक आप तक नहीं पहुँचेगी। एक से अधिक प्रविष्टियाँ भी डाल सकते हैं।

अब, आप अपनी जीमेल की डाक पेटी में, अपनी जीमेल वाली डाक के साथ साथ, meraanaam . इन वाली डाक भी पा सकेंगे।

यह तो हुई डाक प्राप्त करने की बात। लेकिन उसी पते से डाक भेजेंगे कैसे? चार कदम और –

  1. अपने जीमेल खाते में सेटिंग्स पर जा के “खाते” वाले खाँचे में जाएँ – अंग्रेज़ी में यह ऍकाउण्ट्स के नाम से मिलेगा।
  2. यहाँ पर अपना नया डाक पता भी प्रविष्ट कर दें। आपसे पुष्टि करने को कहा जाएगा, कुछ समय बाद पुष्टि डाक आएगी, पुष्टि कर दें कि यह पता आपका ही है।
  3. पत्रोत्तर/उत्तरापेक्षी – में आप विकल्प चुन सकते हैं कि जिस खाते से डाक आई है, उसी नाम से जवाब भी दिया जाए। इस प्रकार, @gmail वाली डाक का जवाब @gmail से ही, और @meraanaam वाली डाक का जवाब @meraanaam से ही दिया जा सकता है।
  4. नई चिट्ठी लिखने का प्रयास करें। अब आपको प्रेषक वाले कोष्ठक में भी विकल्प मिलेगा, कि किस नाम से डाक भेजनी है। आप खाते के जमाव में यह भी तय कर सकते हैं कि किस पते को वरीयता दी जाए, ताकि आप फ़टाफ़ट अपनी इच्छानुसार, जीमेल या अपने नाम वाली डाक भेज सकें।

बस, हो गया काम। अब हम होते हैं नौ दो ग्यारह। कूटशब्द एक ही याद रखना है, डाक जाँचने के लिए बस एक ही जगह देखना है, लेकिन आएगी दोनो जगहों से!

कुछ और नुस्खे, वैकल्पिक –

  1. आप चाहें तो एक नज़र में पता लगा सकते हैं कि डाक कौन से खाते से आई है। इसके लिए छननी बना लें – यदि प्राप्तकर्ता @ meraanaam . in है तो उसपर चिप्पी लगा दें, और चिप्पी को अलग रंग दे दें।
  2. अगर आप चाहते हैं कि लोग आपकी जीमेल के बजाय @meranaam .in का इस्तेमाल करना शुरू कर दें, तो बस हर डाक का जवाब @meraanaam .in वाले पते से देना शुरू कर दें। धीरे धीरे वही अधिक प्रचलित हो जाएगी, और जीमेल वाली डाक तो आपके पास आएगी ही।
  3. abuse@ meraanaam .in , postmaster@ meraanaam .in पर खास नज़र रखें, इनके लिए जीमेल में अलग छननी बना के रख सकते हैं।
  4. अपने जालस्थलों और चिट्ठों और हस्ताक्षर में नया पता लिखना न भूलें!

है न पाँच मिनट का काम?

सिर्फ़ पाँच मिनट और चार कदमों में अपने पते को meraanaam@gmail.com के बजाय mera@meraanaam.in करें, और पुराना पता भी जारी रखें

मुआफ़ कीजिए, गड्ड मड्ड हो के लेख यहाँ पहुँच गया है:

http://devanaagarii.net/hi/alok/blog/2008/06/meraanaamgmailcom-merameraanaamin_2430.html
आपसे एक और चटका लगवाने के लिए मुआफ़ी!

30.5.08

डोमेन तो ठीक है, पर ये सीनेम क्या है? अपने डोमेन पर ब्लॉगर.कॉम वाला चिट्ठा चढ़ाने के बारे में थोड़ा और विस्तार से

पिछले लेख में अपने डोमेन पर ब्लॉग्स्पॉट.कॉम वाले चिट्ठे को चढ़ाने के बारे में जो टिप्पणियाँ आई हैं उससे लगता है कि अब बहुत लोग इस सुविधा का इस्तेमाल करने में दिलचस्पी रखते हैं।

पिछले लेख में कुछ लोगों को यह नहीं समझ आया था कि पहला कदम - डोमेन खरीदना - और तीसरा कदम - ब्लॉग्स्पॉट को डोमेन के बारे में बताना - के बीच में क्या करना है। मुझे भी पहली बार नहीं समझ आया था। अमित और विपुल ने इस मामले में शुरुआत में मेरी काफ़ी मदद की थी, तो अब वही जानकारी विस्तार से आप लोगों के लिए।

जब आप डोमेन खरीदेंगे तो आपको एक कड़ी दी जाएगी जिसमें अपने डोमेन से संबंधित कुछ बदलाव - जैसे नाम, पता, डाक पता आदि - करने की सुविधा होती है। उसी में एक विकल्प है नेमसर्वर बदलने का।

अगर आप आतिथ्य - होस्टिंग - भी खरीदते हैं तो आपको अपने होस्ट का नेमसर्वर यहाँ लगाना होगा, लेकिन हमें इस काम के लिए होस्टिंग नहीं चाहिए, होस्टिंग तो ब्लॉगर.कॉम वाले ही कर रहे हैं, वह भी मुफ़्त में, हमारा तो सिर्फ़ नाम है - इसलिए हमें अपने नाम के लिए एक एलियास बनाना होगा - यानी meranaam.in बनाम गूगल।

इसी बनाम करने की प्रक्रिया को CNAME बनाना कहते हैं।

CNAME जोड़ने का एक तरीका यह है -

  1. http://zoneedit.com में एक खाता खोलें। खाते में वही डाक पता दें जो आपने डोमेन पंजीकरण के समय दिया था। इससे ज़ोनएडिट को पुष्टि होगी की आपका ही स्थल है।
  2. यहाँ पर अपने खरीदे हुए डोमेन को एक ज़ोन बना दें। यह बनाने के बाद ज़ोनएडिट बताएगा कि आपको अपने डोमेन के नेमसर्वर में किन दो नेमसर्वरों के नाम डालने हैं।
  3. अपने डोमेन प्रदाता की कड़ी पर जा के ज़ोनएडिट वाले नेमसर्वर वहाँ प्रदान कर दें।
  4. इसके बाद, एलियास जोड़ दें, जैसे मैंने एक स्थल के लिए जोड़े हैं - काले वाले हिस्से में meranaam होगा - आपके डोमेन का नाम। अगर आपके कई चिट्ठे हैं तो आप कई CNAME जोड़ सकते हैं, अगर एक ही है और उसका नाम meranaam.in ही रखना चाहते हैं तो meranaam के पहले कुछ लगाने की ज़रूरत नहीं है। यह करके इसे सँजो लें। ज़ोनएडिट

बस हो गया काम।

अब, जब भी कोई आपके स्थल पर जाने की कोशिश करेगा, तो पहले आपके डोमेन के नेमसर्वर पढ़े जाएँगे। पता लगेगा कि यह तो ज़ोनएडिट के हैं, ज़ोनएडिट फिर एलियास की बदौलत पाठक को सही जगह भेज देगा, लेकिन आपके स्थल पर यूआरएल में डोमेन आपका ही दिखेगा। ज़ोनएडिट की सेवा बिल्कुल मुफ़्त है।

वैसे तो कुछ डोमेन प्रदाता भी इस प्रबन्धन की सुविधा देते हैं - ताकि ज़ोनएडिट पर जाना न पड़े। डोमेन प्रदाता द्वारा दी कड़ी पर सत्रारंभ करके एक बार देख लें कि ऐसी सुविधा वही दे रहा है क्या - तो काम और आसान हो जाएगा।

अगर आपको ज़्यादा कुछ समझ न आया हो तो कृपया पहले पिछला लेख पढ़े लें।

उम्मीद है आप लोग दाल चावल अलग कर पाएँगे अब। अगर नहीं तो लिखें! अब हमें है दफ़्तर जाना, हम होते हैं नौ दो ग्यारह।

29.5.08

3 कदमों और 800 रुपए सालाने में अपने डोमेन पर अपना चिट्ठा चढ़ाएँ - बाकी सब कुछ वैसा ही जैसा ब्लॉग्स्पॉट पर। है न आसान? बन गई पहचान!

  1. रीडिफ़ पर जा के एक डोमेन खरीदें।* जैसे कि meranaam.in, कीमत करीब 800 रुपए सालाना।
  2. डोमेन में CNAME प्रविष्टि डालें - ताकि example.in पहुँचे ghs.google.com पर। आधिकारिक जानकारी
  3. ब्लॉगर.कॉम के खाते में सेटिंग्स -> प्रकाशन पर जा के, "कस्टम डोमेन" को चुनें। देखें - उसके बाद, "उन्नत सेटिंग्स पर जाएँ" और अपना डोमेन नाम दे के सँजो लें। देखें -

बस! आपका चिट्ठा puraanaanaam.blogspot.com के साथ साथ अब meranaam.in पर भी दिखेगा!

* कुछ अपेक्षित शकों और सवालों के जवाब -

  • ज़रूरी नहीं की आप रीडिफ़ से ही डोमेन खरीदें, आप कहीं और से भी ले सकते हैं। .इन डोमेनों के रजिस्ट्रारों की सूची मेरा रीडिफ़ से कोई व्यावसायिक नाता नहीं है, उदाहरण के रूप में लिखा।
  • आप चाहें तो .इन के बजाय .कॉम भी ले सकते हैं पर .इन ज़्यादा मज़ेदार है!
  • पुराने ब्लॉग्स्पॉट वाले डोमेन का क्या होगा? वहाँ की सारी कड़ियाँ यहाँ की जैसी दिखेंगी पुराने पाठक वैसे के वैसे बँधे रहेंगे
  • फ़ीड की कड़ी बदलनी होगी क्या? नहीं, वह जस की तस रहेगी।
  • ghs है गूगल होस्टिंग सर्विस। दरअसल सीनेम के जरिए होता बस इतना है कि जब भी कोई example.in पर जाएगा, तो उसे सीधे ghs.google.com पर भेज दिया जाता है। पाठक को ऊपर दिखता है example.in, लेकिन वास्तव में सब काम ghs.google.com पर हो रहा है!
  • अगर आप प्रोग्रामर नहीं है, और वर्ड्प्रेस के टंटे, होस्टिंग के खर्चे से बचते हुए भी अपनी पहचान बनाना चाहते हैं, या अपनी पहचान को और सशक्त बनाना चाहते हैं, तो यह तरीका अत्युत्तम है। आपके लेखन, संपादन, टिप्पणी सूत्रधारी वैसे ही चलती रहेगी जैसी ब्लॉग्स्पॉट पर।
  • इतना ध्यान रखें कि इसके बाद आपको पैसे हर साल जमा कराने होंगे - नहीं कराएँगे तो वही हाल होगा जो भाड़ा न देने वाले किरायेदार का होता है।
  • संकलकों और खोजी स्थलों पर नया नाम आने से कोई फ़र्क पड़ेगा? पड़ सकता है, संकलक पर निर्भर करता है। पर आपकी पुरानी कड़ियाँ भी चालू रहेंगी इसलिए दिक्कत नहीं आनी चाहिए। अगर डोमेन नाम याद रखने में सरल हो और लिखने में छोटा, तो अधिक पाठक सीधे आएँगे। इसलिए नाम सोच समझ के चुनें।

आप चाहें तो पहले अपने डोमेन का उपडोमेन बना सकते हैं और फिर उस उपडोमेन के लिए सीनेम दे सकते हैं, जैसे कि bakbak.meranaam.in - ताकि यदि चाहें तो अपने डोमेन के बाकी हिस्से पर बाद में कुछ और डाल सकें।

जीता जागता उदाहरण - चिट्ठाजगत का आधिकारिक चिट्ठा - http://chittha.chitthajagat.in - इसी विधि से ही प्रकाशित होता है!

कोई और शक या सवाल?

पुनश्च - रामचन्द्र मिश्र जी का http://hindi.rcmishra.net/ भी इसी सेवा के तहत चलता है।

पुनश्च २ - कुछ जानकारी अगले लेख में भी है।

27.5.08

टाटा इंडिकॉम: महीने के तीन हज़ार रुपए, और इस बस में सबके लिए जगह है।

टाटा इंडिकॉम का प्लग टु सर्फ़ ले तो लिया – लेना ही पड़ा, मजबूरी जो थी। लेकिन बिल बड़ा ज़बर्दस्त आया।

बीस दिन के अन्दर १९०० रुपए(जी हाँ, उन्नीस सौ रुपए) का ठुच्चा लग गया। यह पता भी तब चला जब उन्होंने फ़ोन किया कि आपका फ़ोन बंद कर दिया गया है, पहले पैसे जमा कराओ।

 

चुनाँचे, मरता क्या न करता, कल उनके दफ़्तर में पैसे जमा कराने गया। ऑफ़िस तो चकाचक, एसी वाला था। वहाँ पर मौजूद महोदय ने सोलह सौ रुपए भरवाए(चार सौ पिछत्तर रुपए की रियायत है हर महीने, छः महीने तक), और फिर कहा कि आपका काम फिर चालू है। मैंने पूछा कि भइया हर महीने तीन हज़ार की चपत लगाओगे क्या? उसने कहा कि आप पीछे वाली देवी जी से बात करके दूसरी स्कीम ले लें, वह मैंने ले ली।

 

इस स्कीम में ९०० रुपए में डेढ़ जीबी का इस्तेमाल किया जा सकता है, महीने के अन्दर। उम्मीद है कि अब तो नौ सौ से ज़्यादा का बिल नहीं आएगा, और आ गया तो मुझे शक होगा कि कहीं घपला तो नहीं है। क्योंकि डेढ़ जीबी महीने भर में निपटाना बहुत मुश्किल है। पर अगले महीने बलि का बकरा बन के ही जाँचा जा सकता है, और कोई तरीका तो है नहीं।

 

--*--*--

 

बाकी की खबर में यही है कि काठ की हाँडी बार बार नहीं चढ़ती है। इस बार कतई नहीं चढ़ी। बहुत खुशी हुई। पुराने दोस्त कहते हैं कि हम तो पक गए, अब लिखने का मन ही नहीं करता। मैं यही कहता हूँ कि उँगली को काटने के बजाय बड़ी उँगली आगे लाओ, दूसरी अपने आप छोटी हो जाएगी – बीरबल शैली में, लेकिन कभी हुआ ही नहीं ऐसा। उम्मीद है कि लोगबाग नींद से जागेंगे, और उँगली को बड़ा करेंगे, और हाहाहीहीहोहो को उतनी ही तवज्जो देंगे जितनी देनी चाहिए, इसमें समय नष्ट करने के बजाय हम लोग लाइव्जर्नल का हिन्दी अनुवाद करेंगे, वर्ड्प्रेस के नए उद्धरण को हिन्दी में ले के आएँगे, नए दक्ष लोगों को हिन्दी में लिखने के लिए प्रेरित करेंगे, नए औज़ार बनाने के लिए प्रेरित करेंगे, गूगल के अनुवाद की त्रुटियाँ ठीक कराएँगे और ऐडसेंस के विज्ञापनों से कमाई और अपने चिट्ठों की हिट्स की चिन्ता करना बन्द करेंगे। हममें से कई ने इतिहास बनाया है, उम्मीद है कि वह हड़प्पा और मोहनजोदड़ो बन कर न रह जाएगा, तक्षशिला और नालन्दा के गीत बनकर न रह जाएगा। उम्मीद है कि हम यह एहसास करेंगे कि चिट्ठों के बाहर भी अन्तर्जाल की बहुत बड़ी दुनिया है, जो कि साढ़े सत्ताईस चिट्ठों से बड़ी है। इतनी बड़ी है कि हमारी सङ्ख्या बढ़ने से यह अपने आप वायु की तरह और फैलती जाएगी, बिना अपना घनत्व और गांभीर्य खोए हुए।

 

मर्फ़ी का नियम – अन्तर्जाल प्रयोक्ताओं के अनुपात में बढ़ता रहता है।

 

इस बस में सबके लिए जगह है। अब हम होते हैं नौ दो ग्यारह। इंडिकॉम का बिल जो बढ़ रहा है।

19.5.08

उर्दू(नस्तलीक़) से हिन्दी(देवनागरी) के बारे में कुछ, और कुछ विकीपीडिया के बारे में भी, और जयपुर विस्फोट पर भी।

पिछले कुछ दिनों से चर्चा हो रही है, उर्दू से हिन्दी लिप्यन्तरण के बारे में। सोचिए अगर आप उर्दू के लेख देवनागरी में पढ़ सकें, तो कितना बढ़िया रहे? उसी तरह शाहमुखी(यानी वही नस्तलीक़) और गुरमुखी में लिखी पञ्जाबी को देवनागरी में पढ़ पाएँ तो कैसा रहे? मुझे तो लगता है कि बहुत बढ़िया रहेगा। उसी तरह सिन्धी के लेख भी।

अब मुझे नस्तलीक़ आती नहीं है, हालाँकि घर में एक किताब तो है उसे सीखने के लिए। उसके बाद भी, केवल वर्णमाला जानना काफ़ी नहीं है, क्योंकि संयुक्ताक्षर भी हैं।

 

पर यही सोच रहा हूँ, कि देवनागरी में पढ़ने लिखने वाले, अगर उर्दू के लेख भी पढ़ पाएँ, और देवनागरी में उन पर टिप्पणी भी कर पाएँ – जो कि छपें नस्तलीक़ में, तो कैसा रहे?

 

इस चर्चा की बदौलत, रमण कौल जी का यह लेख दुबारा पढ़ने का अवसर मिला। पहले भी पढ़ा था पर ज़्यादा ध्यान नहीं दिया था। इस बार पढ़ा तो दूसरे नज़रिये से पढ़ा। पर रमण जी अन्ततः यही कहते हैं कि अगर उर्दू वास्तव में ढंग से पढ़नी हो तो नस्लीक़ सीखें, वही सबसे अच्छा तरीका है। बात है भी सही, क्योंकि हिन्दी पढ़ने के लिए भी तो हम यही कहते हैं न कि देवनागरी सीखो!

 

पर अगर हम हिन्दी और उर्दू को मूलतः एक ही भाषा मानें, जो कि है भी, तो लिपि का अलग होना बेमानी हो जाता है, अर्थात् अगर अपनी सुविधानुसार लोग अपनी मर्ज़ी की लिपि में उर्दू और हिन्दी दोनों को पढ़ सकें तो चीज़ बढ़िया रहेगी। जिसे नस्तलीक़ में लिखना हो नस्तलीक़ में लिखे, जिसे देवनागरी में लिखना हो देवनागरी में। और पढ़ना वाला भी अपनी मर्ज़ी की लिपि चुन सके।

 

हाँ संस्कृतनिष्ठ और फ़ारसी-अरबी निष्ठ शैली की वजह से दिक्कतें होंगी पर अन्ततः इससे दोनो "भाषाओं"  की शब्दावली अधिक समृद्ध होगी।

 

आपको याद होगा पाकिस्तान में हुए क्रिकेट वर्ल्ड कप के पहले रन बढ़ाने के लिए कमेण्टेटर कभी "एक रन का इज़ाफ़ा" नहीं कहते थे, लेकिन अब यह भारत में भी रेडियो और टीवी पर आम हो गया है।

 

यही हाल "उर्दूभाषियों" का भी है। विनय ने इस पाकिस्तानी परम्परा के बारे में विस्तार से पहले लिखा है जो कि मुझे काफ़ी रोचक लगा।

 

पिछले कुछ दिनों उर्दू और पञ्जाबी के बारे में मोहल्ला पर लेख भी आए, वह भी दिलचस्प थे।

 

आश्चर्य की बात है कि जिस लिपि को मेरे चारों पितामह-मातामह पढ़ते लिखते थे, वह उसकी ठीक अगली पीढ़ी वाले कतई नहीं जानते। पता चलता है इससे कि कुछ भी उड़न छू हो सकता है, डेढ़ पीढ़ी के फ़ासले में।

 

--*--*--*--

 

जयपुर विस्फोटों के ऊपर कई लेख लिखे गए, शायद किसी आतङ्की हमले पर हिन्दी में पहली बार इतने ज़्यादा लेख लिखे गए हैं। अब यह न कहिए कि लेख लिखने के अलावा कुछ किया क्या? वह सवाल अलग है। शायद, अगर विभाजन के दस्तावेज़ होते, लोग अपने पर बीती को कलमबद्ध करते, तो हमें यह अहसास तो होता कि वास्तव में क्या हुआ, क्यों हुआ, उसकी पुनरावृत्ति से कैसे बचें?  आने वाली पीढ़ियों को यह जानना ज़रूरी होगा कि इस पीढ़ी ने जयपुर में हुए विस्फोटों पर क्या प्रतिक्रिया की थी। पर उसके लिए अपन को आपसी गाली गलौज में से थोड़ा समय निकालना पड़ेगा – मुश्किल ही लगता है!

 

--*--*--*--

 

ऊपर दिए लेखों में से कुछ में विकिपीडिया की कुछ कड़िया हैं। पर हिन्दी वाले की नहीं, अङ्ग्रेज़ी वाले की। कारण शायद यही है कि वह लेख हिन्दी में मौजूद नहीं हैं, केवल अङ्ग्रेज़ी में हैं, लेकिन यह अपने हाथ में हैं, यह समझना ज़रूरी है।

पर जब तक इस पर काम न किया जाए तब तक यह सब राजीव गाँधी के हमें देखना है, हम देखेंगे, वाले भाषण जैसा ही है।

 

अब मैं होता हूँ नौ दो ग्यारह, नस्तलीक़ सीखने। और विकिपीडिया पर खाता खोल लिया है

9.5.08

विस्फोट के विस्फोट का विश्लेषण अभी बाकी है, तब तक सेब पर काजोल वाला टाटा इण्डिकॉम लगाएँ

विस्फोट के विस्फोटित होने के बाद का लावा अभी ठण्डा नहीं हुआ है, गुत्थी सुलझती नहीं लग रही है, शायद कुछ और सामने आए।

तब तक देखते हैं कि सेब पर बेतार टाटा इण्डिकॉम (वही काजोल वाला) कैसे लागू किया जा सकता है। अगर आप सेब का इस्तेमाल नहीं करते, या आपके पास ब्रोडबैंड है, तो आपको इस लेख को पढ़ के कुछ खास मिलेगा नहीं। यह लेख ऑन्लाइन गरीबी रेखा से नीचे वालों के लिए है। हाँ सेब की लुभावनी तस्वीरें आप फिर भी देख सकते हैं।

सबसे पहले तो आपको टाटा इण्डिकॉम का प्लग टु सर्फ़ खरीदना होगा। उस खरीद फ़रोख्त के पचड़े में नहीं पड़ रहा हूँ, मान के चलते हैं कि वह आपके पास पहले है। न हो तो बताएँ। यह प्लग टु सर्फ़ सिर्फ़ एक बेतार यूऍसबी मॉडेम है, जो कि कुछ कुछ तम्बाखू और चूना रखने की डिब्बी के आकार का होता है, काले रंग की प्लास्टिक का। इसका ढक्कन खोल के यूऍसबी का सिरा चालू सेब में घुसेड़ें।

आपको यह सन्देश दिखना चाहिए। अगर नहीं दिख रहा तो इसका मतलब है कि आपकी डिब्बी में कुछ गड़बड़ी है, किसी विण्डोज़ मशीन में (जिसमें सीडी स्थापित हो) लगा के जाँच लें।

इसके बाद आप सिस्टम प्रिफ़रेंसे़ के अन्तर्गत नेट्वर्क में जाएँ।

यहाँ पर लोकेशन के बगल वाले बक्से पर चटकाने पर आपको क्वाल्कॉम का विकल्प भी दिखेगा। उसे चुन लें।

आपसे नाम पूछा जाएगा, अपनी पसन्द का नाम दें।

इसके बाद, प्रयोक्ता नाम, internet, कूटशब्द भी internet और फ़ोन नंबर #777 दें। हर डिबिया के लिए यही नाम,नम्बर हैं, कुछ अलग नहीं है।

शो मॉडम स्टेटस इन मीनू बार पर सही का निशान लगाएँ।

बस काम हो गया। अब, जब भी काम चालू करना हो, ऊपर लगे फोन पर चटका लगा के चालू करें और इच्छानुसार बन्द करें।

यह है भी काफ़ी तेज़, ब्रोड्बैण्ड से कुछ ही कम धीमा है। सेवा काफ़ी पसन्द आई। आप भी आजमा के देखें, मतलब अगर मेरी तरह मजबूर हों तो। विण्डोज़ और लिनक्स के निर्देश और सीडी तो इसके साथ ही आते हैं, लिनक्स पर मैंने अभी आजमाया नहीं है।

उपरोक्त जानकारी मुझे विष्णु से मिली, उन्हें धन्यवाद।

अन्ततः विस्फोट के विस्फोट के बारे में फिर से - आप में से जिन्होंने भी विस्फोट वाले मसले पर अपनी राय दी है उन सबको धन्यवाद। यह निश्चित है कि "विरोधी संकलक" का संचालक होने के नाते मेरी हर बात उसी चश्मे से देखी जाएगी, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि जो मैं सही समझता हूँ, वह न कहूँ। पुनः धन्यवाद। उसके बारे में फिर।