अपने अन्नदाता ने कुछ रोज़ पहले एक ब्लैकबेरी प्रदान किया है। काफ़ी दिलचस्प चीज़ है, जिसे दफ़्तर में काम नहीं करना सिर्फ़ चौधराहट ही दिखानी है उसके लिए दफ़्तर से कम नहीं है। लेकिन इसमें एक ही दिक्कत है - फ़ोन में हिन्दी प्रदर्शन के एवज में सिर्फ़ काले डब्बे दिखते हैं! इस लिहाज़ से देखा जाए तो आपने लिए यह काला बेर काले पत्थर के बराबर ही है।
चुनांचे मैं अपना नोकिया २६२६ भी रखा हुआ है ताकि चलते फ़िरते कतारों में खड़े शौक फ़रमाया जा सके। क्या करें, कुछ नवाबों को लौंडो का शौक होता है, और मेरे जैसे कुछ नाचीज़ किस्म के लोगों को कारखानों में बने सामान पर खड़खड़ाने का। देखा कि करुण वासुदेव कुछ खोजबीन कर रहे हैं इस बारे में। उम्मीद है नतीज़ा जल्द आएगा।
मैं भी नया मोबाइल लेने की सोंच रही थी ..ब्लेकबेरी भी विकल्पों में थी
जवाब देंहटाएंपत्थर पर दे मारो....जिसमें हिन्दी नहीं वो हमारे किस काम का?
जवाब देंहटाएंआपके अन्नदाता को चाहिए था कि विन्डोज़ मोबाइल दे न कि ब्लैकबैरी! विन्डोज़ मोबाइल में तो इंस्क्रिप्ट कीबोर्ड के साथ हिन्दी मस्त चलती है, आप देखे ही हैं! :D
जवाब देंहटाएंविंडोज़ मोबाइल
जवाब देंहटाएंहाँ सो तो हैं, पर अन्नदाता आजकल बस अन्न हथेली में थमा के आगे बढ़ने के मूड में रहता है इसलिए उसे कुछ कहना सुनना एक बराबर है!
हाँ जे बात भी है, आजकल समय ऐसा है कि अन्नदाता को कुछ न ही कहा जाए तो बेहतर है! :)
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