21.8.07
प्रेमचंद की ओट में शिकार
देखो, शब्द कहीं से लो, अरबी, फारसी, पंजाबी, गुजराती, अंग्रेजी कहीं का हो, ख्याल रहे कि ख्यालात का तसब्बुर और ज़वान की रवानगी ........ भाषा की प्रवहमानता और विचारों का क्रम बना रहे।
- —प्रेमचन्द
[उपेन्द्रनाथ अश्क को लिखे पत्र से साभार]
तसव्वुर, रवानगी - शूँ छे?
विचार कुंज से साभार।
5 टिप्पणियां:
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रवानगी तो ठीक है, पर ज़वान क्या है?
जवाब देंहटाएंबहुत ही सही बात कही है प्रेमचंद जी ने।
जवाब देंहटाएंआज की भाषा में कल्पना व प्रवाह कहेंगे जो इतना तोबताता ही है कि तब से अब तक भाषा में 'प्रवाह' की दिशा क्या रही है।
जवाब देंहटाएंतसव्वुर(तसब्बुर नहीं है)=ख्याल,ध्यान,लक्ष
जवाब देंहटाएंहम बंद किये आंख तसव्वुर में पड़े हैं
ऐसे में कोई छ्म से आ जाये तो क्या हो।
-रियाज़ खैराबादी
रवानगी=प्रवाह,गति,तीक्ष्णता
रेत की लहरों से दरीया की रवानी मांगे
मैं वो प्यासा हूं जो सहाराऒं से पानी मांगे।
-शाहिद कबीर
जवान नहीं जबान (भाषा)सही शब्द है। :)
रवानी योग्य है. रवानगी ग़लत.
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