बिना मुद्दे को सनसनीखेज बनाते हुए (देखिए शीर्षक ब्लॉग पर हुए बेकाबू) – समझते हैं कि यहाँ हुआ क्या है।
हुआ यह –
1. एक व्यक्ति ने ऑर्कुट पर एक समुदाय बनाया, "शिव सेना धर्म के आधार पर देश को बाँट रही है" या ऐसा कुछ।
2. इस समुदाय पर कई लोगों ने मंच पर टिप्पणियाँ की और चर्चाएँ की।
3. शिव सेना ने शिकायत की (शायद पुलिस को)
4. पुलिस ने "जन भावनाओं को चोट पहुँचाने" के आधार पर इस व्यक्ति के खिलाफ़ मामला दर्ज़ कर लिया। - धारा ५०६, २९५ए
5. चुनाँचे महाराष्ट्र उच्च न्यायालय ने समन जारी किया (या करने की सोची)
6. व्यक्ति ने मामला खारिज करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय में अर्जी दी।
7. सर्वोच्च न्यायालय ने कहा,
1. "यदि आप के ब्लॉग की सामग्री के आधार पर कोई मामला दर्ज करवाता है तो आपको मामले का सामना करना पड़ेगा। आपको अदालत के सामने अपनी सफ़ाई देनी होगी।"
2. तुम कंप्यूटर के विद्यार्थी हो, तुम्हें तो पता है कितने लोग यह सब रोज देखते हैं।
अब समझते हैं इस बात को।
1. ऑर्कुट का समुदाय कोई "ब्लॉग" नहीं है। हाँ आम-प्रयोक्ता-जनित-सामग्री है। चलिए मान लेते हैं कि आम-प्रयोक्ता-जनित सामग्री की ही बात हो रही है।
2. यह व्यक्ति कोई कंप्यूटर का विद्यार्थी नहीं होता तो क्या फ़ैसला अलग होता?
3. मैं बहुत से कंप्यूटर के विद्यार्थियों को जानता हूँ जो अंतर्जाल के अ तक को नहीं जानते।
मूलतः मुद्दा यहाँ इतना सा ही रहा –
क्या समुदाय का स्वामी यह जानता था कि उस चर्चा को बहुत से लोग पढ़ेंगे या नहीं? अगर जानता था तो उसकी जिम्मेदारी है। वरना शायद अदालत कुछ और फ़ैसला सुनाती।
काफ़ी सतही सी बात हो गई न यह तो। मेरे हिसाब से असली मुद्दा तो यह है –
1. किसी संस्था या व्यक्ति ने ऑर्कुट नाम की सुहूलियत दी है जहाँ पर ऐसे समुदाय बनाए जा सकते हैं। वह तो पाक-साफ़ बच गए। क्या वह "कंप्यूटर के विद्यार्थी" नहीं थे? क्या वह "जानते नहीं थे कि यह कितने लोग रोज देखते हैं"?
2. किसी सरकारी अफ़सर ने ऑर्कुट के स्वामी को भारत में धंधा करने की इजाज़त दी है। क्या वह "कंप्यूटर के विद्यार्थी" नहीं थे? क्या वह "जानते नहीं थे कि यह कितने लोग रोज देख" सकेंगे?
3. मान लें एक आम आदमी एक समुदाय – खुला मंच – खोलता है – जो चर्चा करनी है करो। क्या अब मंच स्वामी की ज़िम्मेदारी है कि हरेक व्यक्ति क्या क्या लिख रहा है? यहाँ तो एक मंच था, जिसका स्वामी जगजाहिर था। मान लें मंच बेनामी हैं और हज़ारों हैं, और लेख भी लाखों में हैं, फिर क्या? क्या मंच का स्वामी ज़िम्मेदार है? अगर है, तो इस मामले में ऑर्कुट स्वामी कैसे बच निकला?
4. "जन भावनाओं को चोट पहुँचाने" वाली बात – इस दुनिया में ऐसी कौन सी बात है जो दुनिया में किसी न किसी को चोट नहीं पहुँचाती? इस आधार पर आप मामले दर्ज करेंगे तो बचा क्या, घुइया?
5. क्या न्यायालय के फ़ैसले के ऊपर चर्चा करना क़ानूनी रूप से हिंदुस्तान में वाजिब है?
6. क्या भारत में वास्तव में स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति है?
खुले सवाल हैं। आपकी राय क्या है? अपनी टिप्पणियों के लिए आप स्वयं जिम्मेवार हैं, मैं नहीं। ऊपर जो मैंने लिखा है उसके लिए मैं पूरी तरह जिम्मेवार हूँ। J
मेरी राय अगले लेख में।
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मेरी "राय" तो बच्चन ले गया, अब कहाँ से दूँ
जवाब देंहटाएंअबे ओ एनोनिमस के बच्चे, वो राय तेरी कब से हो गयी बे, वो तो मेरी थी, जो बदकिस्मती से अब बच्चन की हो चुकी है. लेकिन सुन ले मेरे ज़ख्मों को न कुरेद, नहीं तो अंजाम..... बुरा होगा
जवाब देंहटाएंमैं कोई टिप्पणी कर दूं और फंस जाऊं तो?!
जवाब देंहटाएंज्ञान जी तो ऊपर वालों की तरह बेनाम ही हो जाइए। वैसे भी उच्च न्यायालय के फ़ैसले के अनुसार तो आपकी नौ दो ग्यारह की टिप्पणियों के लिए भी मैं ही ज़िम्मेदार हूँ!
जवाब देंहटाएंबात पचती नहीं है पर हाजमोला लेने पर शायद पचे।
4. "जन भावनाओं को चोट पहुँचाने" वाली बात – इस दुनिया में ऐसी कौन सी बात है जो दुनिया में किसी न किसी को चोट नहीं पहुँचाती? इस आधार पर आप मामले दर्ज करेंगे तो बचा क्या, घुइया?
जवाब देंहटाएंBaat jamti to hai.
अँधेर नगरी चौपट राजा...
जवाब देंहटाएं"6. क्या भारत में वास्तव में स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति है?"
स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति तो हर गली नुक्कड़ (और म्युनिसिपैलिटी की दीवारों) पर दिख जाती है. हाँ, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर लगाम है. :)