15.3.04
ख़्वाबों का भरम टूट गया
अपने बिस्तर में बहुत देर से मैं नीम दराज़
सोचती थी कि वह इस वक़्त कहाँ पर होगा
मैं यहाँ हूँ मग़र उस कोचा ए रङ्गो बो में
रोज़ की तरह वह आज भी आया होगा
और जब उसने वहाँ मुझ को न पाया होगा?
आपको इल्म है वो आज नहीं आई हैं?
मेरी हर दोस्त से उसने यही पूछा होगा
क्यों नहीं आई वो क्या बात हुई आखिर
खुद से इस बात पे सौ बार वो उलझा होगा
कल वो आएगी तो मैं उससे नहीं बोलूँगा
आप ही आप कई बार वह रोता होगा
वो नहीं है तो बुलन्दी का सफ़र कितना कठिन
सीढ़ियाँ चढ़ते हुए उसने यह सोचा होगा
राहदारी में, हरे लॉन में, फूलों के करीब
उसने हर सिम्ट मुझे आँख ढूँढा होगा
नाम भूले से जो मेरा कहीं आया होगा
गैर महसूस तरीके से वह चौंका होगा
एक ही गुमले को कई बार सुनाया होगा
बात करते हुए सौ बार वह भूला होगा
यह जो लड़की नई आई है, कहीं वह तो नहीं
उसने अर चेहरा यही सोच के देखा होगा
जाने महफ़िल है, मगर आज फ़कत मेरे बगैर
हाय! किस दर्जा वह बज़्म में तन्हा होगा
कभी सनताओं से वहशत जो हुई होगी उसे
उसने बे सकता फिर मुझ को पुकारा होगा
चलते चलते कोई मनूस से आहट पाकर
दोस्तों को भी किसी उज़्र से रोको होगा
याद कर के मुझे नम हो गईं होंगी पलकें
"आँख में कुछ पड़ गया" कह के टाला होगा
और घबरा के किताबों में जो ली होगी पनाह
हर सतर में मेरा चेहरा उभर आया होगा
जम मिली को उसे मेरी अलालत की ख़बर
उसने आहिस्ता से दीवार को थामा होगा
सोच कर ये, कि बेहाल जाए परेशाने दिल
यूँही बेवजह किसी शख्स को रोका होगा!
इत्तिफ़ाक़न मुझे उस शाम मेरी दोस्त मिली
मैंने पूछा कि सुनो आए थे वह? कैसे थे?
मुझ को पूछा था? मुझे ढूँढा था चारों जनब?
उसने एक लम्हे को मुझे देखा और फिर हँस दी
उस हँसी में तो वह तल्खी थी कि उस से आगे
क्या कहा उसने मुझे याद नहीं है; लेकिन
इतना मालूम है कि
ख़्वाबों का भरम टूट गया।
- कराची की एक डाक सूची से
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