कई दिनों से मन में सवाल था कि हिन्दी में लिखने के पीछे हाथ धो के मैं क्यों पड़ा हूँ।
अब नहीं है।
क्योंकि हिन्दी को मेरी नहीं, मुझे हिन्दी की ज़रूरत है। अतुल जी को यह अहसास दिलाने के लिए धन्यवाद।
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