एक महीने पहले कटे चालान का सिलसिला आज खत्म हुआ।
यूँ गुज़रा यह खात्मा –
१. तारीख थी १७ जनवरी २००९ की – शनिवार की – शनिवार को कचहरी गया तो कहा कि सोमवार को आओ। पेट्रोल फुँका।
२. आज, यानी सोमवार, सुबह दस बजे कचहरी पहुँच गया। चालान की पर्ची मुझसे ले ली गई। कहा बारह बजे आओ।
३. बारह बजे एक जगह दस्तखत करने को कहा गया। कर दिया।
४. १२२० पर मैजिस्ट्रेट ने बुलाया और सौ रुपए का जुर्माना लिया।
५. १२२५ पर दस्तावेज़ वापस मिल गए। कहानी खत्म।
मेरा कुल खर्चा –
१. पैसे – १०० रुपए, और दो बार कचहरी आना जाना – कुल २२० रुपए।
२. वक़्त – ४ घंटे।
सरकार का खर्चा –
१. एक अदद पुलिसवाले द्वारा चालान की पर्ची अदालत भेजना – कुछ ३० मिनट।
२. एक अदद क्लर्क द्वारा चालान की पर्ची को एक किताब में दर्ज करना – कुछ ३० मिनट ।
३. एक अदद मैजिस्ट्रेट द्वारा सुनवाई – कुछ १० मिनट।
४. एक अदद क्लर्क द्वारा गाड़ी के दस्तावेज़ वापस करना – कुछ १५ मिनट।
५. आमदनी – सौ रुपए।
मुझे तो गुनाह की सज़ा मिलनी ही चाहिए थी, पर सरकार फालतू में पिस गई।
वैसे कचहरी में इत्ता सारा कागज़ देख के वहाँ से फ़टाफ़ट नौ दो ग्यारह होने का मन कर रहा था।
अंत भला सो भला।
सस्ते छूटे न!
जवाब देंहटाएं100 रूपए का चालान कटा और 120 पेट्रोल में लगे - समय को न गिनो तो सस्ते में छूट गए। यहाँ 500 का चालान कटता है, पुलिस वाला ज़रूरतमंद हो तो 200-300 में बिना पर्ची के निपटा देता है। लेकिन कचहरी के धक्के खाने से बंदा बच जाता है!
जवाब देंहटाएंआपको सरकार यह ग्लानि भी करवा रही है कि आपका समय और पैसा तो खर्च होगा ही, साथ ही नाहक सरकार का पैसा भी खर्च होगा, इसलिए ऐसा काम न किया कीजिए कि चालान कटे! :)