5.10.07

पाँच दिल एक जान

अभिनव दिनेश शुक्ला नूर मोहम्मद खान सिरिल गुप्ता या, एक जान, चार आई डी? चारों चिट्ठाजगत-संकलक के रोमन संस्करण पर ऐसे टूट पड़े कि इस जालस्थल के लिए यह स्ट्राइसैण्ड प्रभाव से कम नहीं था। साथ ही पाँचवी आईडी शिल्पा शर्मा जी भी कुछ कह देतीं तो सोने पर सुहागा हो जाता। आप पाँचों का, या आप वास्तव में जितने भी हैं, इस निःशुल्क सेवा के लिए धन्यवाद। हम सोच रहे थे कि सब कुछ तैयार होने पर आधिकारिक चिट्ठे पर घोषणा करेंगे, लेकिन इसकी ज़रूरत ही नहीं पड़ी! अब हम होते हैं नौ दो ग्यारह, लेकिन जाने के पहले एक बार फिर शुक्रिया!

3 टिप्‍पणियां:

  1. बेनामी1:28 pm

    तो मामला इतना गम्भीर है की आपको भी कुदना पड़ा.

    कई कई आई.डी. बना कर एक ही विषय को उठाना क्या दर्शाता है? हो क्या गया है?

    जवाब देंहटाएं
  2. बेनामी6:03 pm

    आलोक जी आपने सही खेल पकड़ा है। :)

    जवाब देंहटाएं

सभी टिप्पणियाँ ९-२-११ की टिप्पणी नीति के अधीन होंगी। टिप्पणियों को अन्यत्र पुनः प्रकाशित करने के पहले मूल लेखकों की अनुमति लेनी आवश्यक है।