5.10.07
पाँच दिल एक जान
अभिनव
दिनेश शुक्ला
नूर मोहम्मद खान
सिरिल गुप्ता
या, एक जान, चार आई डी? चारों चिट्ठाजगत-संकलक के रोमन संस्करण पर ऐसे टूट पड़े कि इस जालस्थल के लिए यह स्ट्राइसैण्ड प्रभाव से कम नहीं था। साथ ही पाँचवी आईडी शिल्पा शर्मा जी भी कुछ कह देतीं तो सोने पर सुहागा हो जाता।
आप पाँचों का, या आप वास्तव में जितने भी हैं, इस निःशुल्क सेवा के लिए धन्यवाद। हम सोच रहे थे कि सब कुछ तैयार होने पर आधिकारिक चिट्ठे पर घोषणा करेंगे, लेकिन इसकी ज़रूरत ही नहीं पड़ी!
अब हम होते हैं नौ दो ग्यारह, लेकिन जाने के पहले एक बार फिर शुक्रिया!
3 टिप्पणियां:
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http://mahaarathi.blogspot.com/2007/10/blog-post_01.html
जवाब देंहटाएंअरे यह भी जनाब हैं लाईन में
तो मामला इतना गम्भीर है की आपको भी कुदना पड़ा.
जवाब देंहटाएंकई कई आई.डी. बना कर एक ही विषय को उठाना क्या दर्शाता है? हो क्या गया है?
आलोक जी आपने सही खेल पकड़ा है। :)
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