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- अभिनव, 18:07
- अभिनव, 19:47
- Cyril Gupta, 20:07
- नूर मोहम्मद खान, 07:57
30.10.07
ब्लॉगवाणी के चरित्र पर कुछ गंभीर बातें
यहाँ पर मैं सिलसिलेवार, पिछले कुछ दिनों में हुई घटनाओं के बारे में कुछ बताना चाहता हूँ। पूरी बात शुरू से बता रहा हूँ क्योंकि यह सार्वजनिक महत्व का विषय है। सार्वजनिक महत्व का विषय क्यों है, वह भी बताऊँगा।
१. चिट्ठाजगत-संकलक की एक नई सुविधा के ऊपर एक लेख छपा।
२. उस पर कुछ टिप्पणियाँ हुईं, वह भी ऐसे व्यक्तियों द्वारा, जो पहले कभी इस तरह की चर्चाओं में शामिल होते दिखे भी नहीं थे। आखिर १००० चिट्टे होने के बाद भी चिट्ठाजगत अभी बहुत बड़ा तो नहीं है। आश्चर्य हुआ कि यह सब लोग कौन हैं, और सभी एक ही राग कैसे अलाप रहे हैं।
24 टिप्पणियां:
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तो मामला निपटा नहीं है. कल इसे खत्म हुआ मान रहे थे, आज आपकी पोस्ट ने फिर से सोचने पर मजबूर कर दिया है की हम किस ओर जा रहे है? चिंतन की आवश्यकता है.
जवाब देंहटाएंएक आम चिट्ठाकर की पहचान उसका चिट्ठा ही नहीं वे एग्रीगेटर भी हैं जिन पर उसका चिट्ठा दिखता है. इसलिए फिर से एग्रीगेटर संचालक चाहे वे कोई भी हो अपनी गरीमा बनाए रखे और इसके लिए जरूरी कदम उठाए.
ऐसे घटनाक्रम दूखद है.
i agree with sanjay that एक आम चिट्ठाकर की पहचान उसका चिट्ठा ही नहीं वे एग्रीगेटर भी हैं जिन पर उसका चिट्ठा दिखता है. इसलिए फिर से एग्रीगेटर संचालक चाहे वे कोई भी हो अपनी गरीमा बनाए रखे और इसके लिए जरूरी कदम उठाए.
जवाब देंहटाएंand its good that a senior blogger although being part of another agregator is writing in detail on a topic that people are thinking is of no importance .
आप हिन्दी के वरिष्ठ चिट्ठाकार हैं.. आदि चिट्ठाकार हैं.. मेरा सम्मान स्वीकारें.. पर आप से थोड़ी असहमति है मित्रवर..
जवाब देंहटाएंआप ने काफ़ी विस्तार से लिखा है पूरा पढ़ने लायक धैर्य नहीं है मेरे पास.. पर आप की 'पाँच दिल एक जान' शीर्षक से आई पोस्ट देखी थी.. और तभी अच्छी नहीं लगी थी..
आप ने अपनी इस पोस्ट में नैतिकता का बड़ा सवाल उठाया है.. पर क्या किसी की छ्द्म पहचान को बेनक़ाब करना नैतिक है..? क्या एक परिवार के अलग अलग सदस्य अगर एक राय रखते हैं तो क्या वह भी अनैतिक है..? या उन्हे इस की सार्वजनिक घोषणा करना ज़रूरी है..?
आप सारा दोष दूसरी पक्ष पर मढ़ कर अपने आप को निर्दोष साबित करने की कोशिश कर रहे हैं.. क्या ऐसा होता है कभी? आप की इस पोस्ट में भी कलुष की गन्ध है..
मैं मैथिली जी से मिला हूँ.. भले आदमी हैं.. आप से नहीं मिला हूँ.. फिर भी अनुमान है कि आप भी भले आदमी हैं..
उनकी गलतियाँ तो आप ने गिनाई हीं.. आप से भी कुछ हुईं होंगी.. उसे भी चिह्नित कर लें.. सरलता होगी..
अभय तिवारी जी,
जवाब देंहटाएंसर्वप्रथम तो इस चिट्ठा पर आने का धन्यवाद।
और तभी अच्छी नहीं लगी थी..
ठीक। आप मुझे तभी बताते। मुझे खुशी होती। मैं देखता हूँ कि लोगबाग जो चीज़ नापसंद करते हैं उसके बारे में बोलने से कतराते हैं। यह खुलापन नहीं है। मुझे बहुत खुशी होती यदि आप मुझे यह पहले ही बताते।
छ्द्म पहचान को बेनक़ाब करना नैतिक है..?
बेनक़ाब मैंने नहीं किया हैं, स्वयं उन्होंने किया है। तभी तो मुझे पता चला कि वास्तविकता है क्या। मैं भी आपकी तरह यही मानता हूँ कि जो छद्म है वह छद्म ही रहे और जो प्रत्यक्ष है वह प्रत्यक्ष। और, छद्मता की आड़ में एक स्वतंत्रता है, साथ ही वह मान भी नहीं है जो प्रत्यक्षता में है। तो झद्मता में प्रत्यक्षता के मान की उम्मीद करना भी उनुचित है। आशा है आप मुझसे सहमत होंगे। यदि न हों तो बताएँ।
एक परिवार के अलग अलग सदस्य अगर एक राय रखते हैं तो क्या वह भी अनैतिक है..?
अनैतिक है यदि पाठकों को यह न पता हो कि वे एक ही परिवार के अलग अलग सदस्य हैं। क्योंकि इससे यह भ्रांति फैलती है कि जनमत एक तरफ़ है, जबकि ऐसा है नहीं, बल्कि एक ही छोटे से समूह मात्र की राय है। यदि आप इससे असहमत हों तो लिखें।
इस की सार्वजनिक घोषणा करना ज़रूरी है..?
जी नहीं, बिल्कुल ज़रूरी नहीं थी, बल्कि नहीं करनी चाहिए थी। पर उन्होंने की। क्योंकि छद्मता की स्वच्छंदता और प्रत्यक्षता के मान, दोनो पाने का लोभ था। इसे मैं अनैतिक मानता हूँ, और अब यह मेरा और अन्य पाठकों का अधिकार है कि स्वच्छंदता व मान - दोनों में से एक, या दोनों या कोई भी नहीं दें।
आप सारा दोष दूसरी पक्ष पर मढ़ कर अपने आप को निर्दोष साबित करने की कोशिश कर रहे हैं.. क्या ऐसा होता है कभी?
बिल्कुल नहीं। यदि मेरे प्रति आपके व्यवहार में आपको कुछ आपत्तिजनक लगा हो तो बताएँ। मैं खुलासा दूँगा, या आपसे माफ़ी माँगूँगा और अपने आपको सुधारने का यत्न करूँगा। इतना ही नहीं आपका ऋणी रहूँगा कि आपने मुझे कुछ सिखाया। हाँ, यदि किसी अन्य नें मेरे दुर्व्यवहार का ब्यौरा दिया हो तो उसके बारे में पहले एक बार मुझ से पूछ कर जाँच लें, खुलासे या गलती मानने का मौका दें, फिर मेरे बारे में फैसला करें।
उनकी गलतियाँ तो आप ने गिनाई हीं.. आप से भी कुछ हुईं होंगी.. उसे भी चिह्नित कर लें.. सरलता होगी..
बिल्कुल मैं तत्पर हूँ। यदि कोई और गिनाए तो भी तत्पर हूँ।
भले आदमी हैं
अवश्य होंगे। मैंने भी तारीफ़ ही सुनी है। यदि वे मेरे घर आएँ या मैं उनके, तो बहुत कुछ बात करने को होगा।
मेरी आशय व्यक्तिगत आक्षेप का है ही नहीं। मेरा आशय ब्लॉगवाणी द्वारा संस्थागत तरीके से फ़र्ज़ी पहचान बना के लोगों को गुमराह करना, और कई बार टिप्पणियों में गालीगलौच होने पर भी कोई आधिकारिक विरोध न होना, उसके बजाय उसको संरक्षण देने से है। यदि किसी संस्था का यही काम करने का ढंग हो, तो मैं उससे संबद्ध न रहना चाहता हूँ न इस संबंध की प्रतीति चाहता हूँ।
ब्लॉगवाणी मात्र से मुझे कोई आपत्ति नहीं है। यदि कोई भी संस्था - प्रायोजित चिट्ठों पर अन्य चिट्ठाकारों की बुराई करे, लोगों को फ़र्ज़ी डाक भेजे, तो मैं उसका बहिष्कार करूँगा। यदि व्यक्ति हो तो फिर नज़रंदाज़ किया जा सकता है।
पर यदि संस्था हो, और संस्था उसका संरक्षण कर रही हो तो मेरा मत स्पष्ट है।
यदि आपके कोई और प्रश्न हों तो बताएँ। मैं सहर्ष उत्तर दूँगा।
लिखने के लिए धन्यवाद। मैं अन्यों से भी यही अनुरोध करूँगा कि कृपया इसे व्यक्तिगत आक्षेप न समझें, न ही व्यक्तिगत आक्षेप करें। विषय यह है कि यदि कोई संस्था - व्यक्ति नहीं - अनैतिक तरीके अपनाती है, और वह हिंदी के लिए कुछ काम करती है,तो उसे हम सब का संरक्षण मिलना चाहिए या नहीं? क्या आप अपनी पहचान ऐसी संस्था के साथ बना के रखना चाहते हैं? बस इतना ही।
जब नारद-बाजार प्रकरण हुआ था तो मैंने ब्लॉग पोस्ट नारद के आगे जहाँ और भी हैं.... में कहा था कि किसी संकलक को पूरा अधिकार है कि वो किसी भी चिट्ठे को हटाए या रखे. वो चाहे जिस चिट्ठे को हटा सकता है और चाहे जिसे रख सकता है. अपने लिए नियमावलियाँ बना सकता है. परंतु फिर, कोई तार्किकता तो होनी ही चाहिए. इस प्रकरण में दुखद प्रसंग यह दिखाई देता है कि 9-2-11 को उसकी सामग्री के चलते नहीं, बल्कि प्रतिद्वंद्विता के चलते निकाला गया. एक चिट्ठाकार होने के नाते मेरे चिट्ठे किसी संकलक पर रहें या न रहें इससे भले ही मुझे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता परंतु लोगों को पड़ सकता है जैसा कि आलोक को पड़ा - उन्हें लगा कि उनके चिट्ठे की सामग्री क्या इतनी आपत्तिजनक है कि एक सार्वजनिक संकलक से बाहर कर दी जाए.
जवाब देंहटाएंअब जबकि बहुत सी बातें जाने अनजाने स्पष्ट हुई हैं, तो यह निश्चित तौर पर लग रहा है कि सारा प्रसंग दुःखद किस्म का ही रहा है. प्रतिद्वंद्विता स्वस्थ क़िस्म की कतई नहीं रह पाई.
वैसे, इस प्रकरण का एक मजेदार, अहम पहलू (टेढ़ी दुनिया पर तिरछी नज़र?)यह रहा कि आदि ब्लॉगर आलोक अब लंबी-लंबी पोस्टें लिखने लग गए हैं. अन्यथा अब तक तो वे एक दो लाइनों में ही अपनी बात समाप्त करते थे. इसके लिए उन्हें ब्लॉगवाणी संचालक मंडल का आभार मानना चाहिए व उन्हें हार्दिक धन्यवाद देना चाहिए.
निरंकुश दुनिया जीने को अंततः सिखा ही देती है!
मेरा मानना है की जिसे भी जो भी शिकायत या शंका हो आलोकजी से पड़ताल करे. ताकी बाते खुल कर सबके सामने आये.
जवाब देंहटाएंसामूहिकता के दिन शायद लद रहें है, इसे अब स्वीकारना होगा. ऐसे में सभी पक्षो का जैसा भी है, सच सबके सामने आये इसी में भला है.
रविजी ने भी अपना मत रख ही दिया, प्रसन्नता हुई, उनकी यहाँ रखी बातो से मैं असहमत नहीं हो सकता. सही कहा है.
जवाब देंहटाएंमुझे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता परंतु लोगों को पड़ सकता है जैसा कि आलोक को पड़ा
जवाब देंहटाएंमुझे अगर इतना फ़र्क पड़ रहा होता तो मैं यह मुद्दा अब क्यों उछालता। चिट्ठा शामिल हो चुका था। इस अशालीन टिप्पणी के बाद भी चुप ही रहता। मैंने लिखा केवल इसलिए था कि पता चले, माजरा क्या है। अपने पत्र में भी यही पूछा था कि चिट्ठा हटाया क्यों गया है। वापस डालने का अनुरोध तो बाद की बात है।
पर बात चिट्ठे शामिल करने और न करने की नहीं है। बात है संस्थागत तौर पर अनैतिक और संभवतः गैरकानूनी तरीके अख्तियार करने की है। मैं नहीं चाहता कि मुझे उसी थैली में डाला जाए जिसमें ब्लॉगवाणी है। न ही मैं चाहता हूँ कि मेरी पहचान ब्लॉगवाणी के साथ हो या उसकी वजह से बने।
अलोक जी मै आपको तब से जानता हूँ तब से मै ब्लागिंग में हूँ, और चिठठाकार मंडली में मेरे ऊपर लगे चोरी के अरोप का विरोध करने वाले पहले व्यक्ति आप ही थे किन्तु आपने इस मामले को कुछ ज्यादा ही नाटकिय मोड़ देने की कोशिस की है। मुझे नही लगता है कि यह किया जाना ठीक होगा। क्योकि एक चित्र को एक ही लेख पर एक दर्जन से ज्यादा बार लिंकित करना दर्शाता है कि कहीं न कही प्रतिशोध की भावना आप में भी है।
जवाब देंहटाएंयह मायने नही रखता है कि आपका चिठ्ठा किसी एग्रीगेटर पर है मायने रखता है कि आप कितने दिलों पर है, मुझे आपके प्रति काफी सम्मान था और है भी किन्तु मुझे यह अहं कि लडा़ई जान पड़ती है। मै भी मैथली जी से मिला हूँ, और कभी लगा ही नही कि यह व्यक्ति किसी के साथ भेदभाव कर सकते है। क्योकि कई मामलों में मुझे उनसे काफी सिख मिली है जिसके परिणाम स्वरूप आज वो महाशक्ति नही दिखती जो एक साल पहले किसी से भी दो दो हाथ करने में नही हिचकती थी।
आपने बहुत कुछ लिखा, अगर मुझे भी एक दो दिन में समय मिल तो लिखना चाहूँगा।
चोरी के अरोप का विरोध करने वाले पहले व्यक्ति आप ही थे
जवाब देंहटाएंप्रमेंद्र जी, वह चोरी के आरोप वाली घटना मुझे अच्छी तरह याद है। यदि आप मुझे तब से जानते हैं तो आश्वस्त रहें कि मैं एक बार की गलती के लिए - चाहे वह जाने में हो या अनजाने में हो - हमेशा के लिए किसी पर ठप्पा नहीं लगाता हूँ। एक बात हुई, उस पर चर्चा हुई, खुलासा हुआ, असहमति या सहमति हुई, आगे बढ़े। दूसरी बत जब होगी, तो उसका पिछले सो कुछ लेना देना नहीं होगा। ऐसी मेरी सोच है।
कभी लगा ही नही कि यह व्यक्ति किसी के साथ भेदभाव कर सकते है।
यह व्यक्ति विशेष की बात ही नहीं है। बात है संस्था के संचालन की। कोई संस्था यदि इस प्रकार के व्यवहार का अनुमोदन करती है तो मैं उससे संबंध नहीं रखना चाहता।
आप यदि निजी पसंद या नापसंद के लिए रखना चाहें तो रखें। पर यह न कहें कि मैंने पहले चेताया न था। क्या आप इस प्रकार की गालीगलौज का अनुमोदन करते हैं? क्या मैंने गाली गलौज की है? ब्लॉगवाणी के संचालक यदि इतने अच्छे हैं तो वे इसका विरोध क्यों दर्ज नहीं करते? इस बात का आश्वासन क्यों नहीं देते कि ऐसा दुबारा नहीं होगा।
निश्चय ही आप जब कह रहे हैं कि आप उनसे मिले हैं और आपको अच्छे लगे हें तो वास्तव में ऐसा ही होगा।
लेकिन मेरा अनुभव कुछ और ही कह रहा है। उस अनुभव के प्रमाण स्वरूप ही मैंने सब कड़ियाँ और छवियाँ प्रकाशित की हैं। आप उन के जरिए मेरे अनुभव का अनुभव कर सकें इसीलिए मैंने यह प्रकाशित किया है। तथ्य और राय दोनो अलग अलग रखे हैं, एक दूसरे से मिलाए नहीं हैं।
मुझे यह तो नहीं पता कि ब्लॉगवाणी के संचालकों की क्या आचार संहिता है और उसका पालन करवाने की जिम्मेदारी किसकी है, पर निश्चय ही जिम्मेदारी तो है। यह तो आप मानेंगे न?
कई बार दूसरों के कामों को इग्नोर करते चले जाना दूसरों के हौंसलों को बड़ा देता है।
जवाब देंहटाएंजब तक विरोध नहीं किया जाता तो बातें दोहरायी जाती रहती हैं।
अच्छी बात यह कि बहुत कुछ पारदर्शी हो कर सामने आया है।
एक इमानदार पारदर्शी संवाद का माहौल बहुत सी बातों को सामने ला देता है जो अन्यथा दबी ही रह जातीं।
अच्छा रहा आपने बात को व्यक्तिगत के स्थान पर सैद्धांतिक बनाने का आग्रह किया यह आवश्यक है। यह अलग बात है कि इस मामले में 'आलोक' की आदि छवि की भूमिका रही है तथा उसके अतिक्रमण के सार्थक प्रयास दिखे नहीं है पर फिर भी...
जवाब देंहटाएंअभयजी की बातों से सहमति है, बावजूद आपके स्पष्टीकरणों के।
परिवार के विभिन्न सदस्यों के ब्लॉगिंग करने का मामला चूंकि हम पर भी लागू होता है इसलिए उस पर आपसे सख्त असहमति है- परिवार के सदस्य सहमत या असहमत होने के लिए पब्लिक डोमेन में जानकारी होने की अपेक्षा अनुचित है तथा इसके अनैतिक होने की अवधारणा अतार्किक है।
छद्म पहचान के सवाल पर आपकी अपेक्षाएं ब्लॉग सिद्धांत व व्यवहार दोनों के खिलाफ है। ब्लॉग मीडिया पहचान हासिल करने का माध्यम है, कुछ को ब्लॉग पहचान अपनी दुनियावी पहचान के विस्तार के लिए चाहिए होती है वे अपनी दुनियावी पहचान से ही बलॉगिगं करते है जैसे मेरी पत्नी नीलिमा पर दूसरी ओर मुझे दुनियावी पहचान से मुक्त पहचान खड़ी करना संतोष देता है तो मैं- उनके परिवार से होते हुए भी छद्म नाम से ब्लॉगिगं करने में संतोष पाता हूँ। मेरी पहचान मेरी निर्मिति है, आप लोगों को जासूसी करने के लिए उक्साकर कोई नैतिकता का विमर्श नहीं खड़ा कर रहे हैं। हमारा यह सैद्धांतिक पक्ष रहा है कि बेनाम या छद्म नाम से ब्लॉगिंग करना ब्लॉगर का हक है।
स्वच्छंदता व नाम के द्वैत का जो सिद्धांत आप खड़ा कर रहे हैं, हमें मिथ्या जान पड़ता है, क्योंकि निर्मित पहचान के लेखन में भी आप अपने लेखन से नाम (काकेश, घुघुती, सृजन, धुरविरोधी...) या कुनाम (मसिजीवी, पंगेबाज :)) हासिल करते ही हैं इनमें विरोध कहॉं है। फिर नाम से ही कौन सा स्वच्छंदता छिन जाती है, आप तो शायद सबसे नामधारी है पर जासूसी की अपना क्षमता को आप गर्व से प्रदर्शित कर रहे हैं।
और लाख बातों की एक...आपका प्रयोजन क्या है ? हो सकता है आप उच्च नेतिक धरातल का दावा करें पर खेद है कि हमें तो ये अस्वस्थ प्रतिद्वंद्वता लग रही है। और खेद इसलिए भी है कि अनजाने ही सही ये हमारी पोस्ट से शुरू हुआ।
बे-बात की बात हो रही है यहां....मुद्दे और भी बड़े बड़े हैं। एग्रीगेटर के नाम पर जो भी हैं, सबको होना चाहिए लेकिन मेरी पसंद ब्लागवाणी है। इन लोगों ने सबको सम्मान और प्यार दिया है। अगर किसी की नीयत में ही खोट हो तो कोई क्या करे....चलिए,,,उम्मीद करता हूं जल्द ही सब नार्मल होगा।
जवाब देंहटाएंयशवंत
आपका प्रयोजन क्या है
जवाब देंहटाएंमसिजीवी जी, प्रयोजन बहुत सीधा है, जो संस्था इस प्रकार की अशालीन टिप्पणी करने वाले का संरंक्षण करती है, उसका बहिष्कार करना। और कुछ नहीं।
आप उच्च नेतिक धरातल का दावा करें पर खेद है कि हमें तो ये अस्वस्थ प्रतिद्वंद्वता लग रही है।
क्यों? क्या आप इस प्रकार की अशालीनता के संस्थागत संरक्षण के विरोध को गलत मानते हैं?
शायद आपको मेरी किसी गतिविधि पर शंका है, पर यह स्पष्ट नहीं हुआ कि किस बात पर। यदि है तो कृपया खुल के बताएँ। यदि सार्वजनिक रूप से न बताना चाहें तो डाक लिखें। मैं निजी डाक को अग्रेषित नहीं करता हूँ और न ही सार्वजनिक करता हूँ। मैं आपकी सारी शंकाओं को दूर करने का प्रयास करूँगा, और यदि मेरी कोई गलती हुई तो उसको सार्वजनिक रूप से स्वीकारूँगा भी।
खुलासा १ - बेनाम चिट्ठाकारी से मुझे आपत्ति नहीं है। प्रायोजित, निंदात्मक चिट्ठाकारी और टिप्पणीबाज़ी से है।
खुलासा २ - मैंने नक़ाबधारियों को बेनक़ाब नहीं किया। नक़ाबधारियों ने खुद किया है, और यह बेनक़ाबी की जानकारी मुझे वहीं से मिली है। उनके चिट्ठे देख लें।
चिट्ठाजगत नामक दुकान का संचालन सड़ियल है । सिरिल ने बेनकाब भी कर दिया।
जवाब देंहटाएंयशवंत जी, मैं आपकी पसंद का आदर करता हूँ, पर साथ ही ब्लॉगवाणी द्वारा अनैतिक गतिविधियों के संरक्षण का भी विरोध करता हूँ, और इनके बारे में सबको चेताना भी अपनी जिम्मेदारी मानता हूँ। मैंने सबको चेताना उचित समझा इसलिए लिखा। मेरा लेख पढ़ने के लिए धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंनीयत में ही खोट हो तो कोई क्या करे
आपने सही कहा है। इसीलिए मैं सुंदरता और धड़ाधड़ता के बजाय चरित्र को प्राथमिकता देता हूँ।
चिट्ठाजगत नामक दुकान का संचालन सड़ियल है ।
जवाब देंहटाएंचिट्ठाजगत-संकलक से संबंधित समस्याओं, विचारों व आलोचनाओं का स्वागत है।
कोई सही हो या कोई गलत यह मैं नहीं जानती । न ही मुझमें इतनी समझ है कि मैं किसी को न्याय के तराजू में रखकर तोलूँ । इतना जानती हूँ कि कुछ बहुत ही आदरणीय व प्रिय लोगों का नाम इस छीछालेदर में देखकर दुख हो रहा है । शायद यह नर जाति की भूमि/territory के लिए लड़ाई सी है चाहे इसे कितने ही उसूलों के जामे पहना दिये जाएँ । यदि कुछ गलत कहा हो तो क्षमा कीजियेगा ।
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
घुघूती बासूती जी,
जवाब देंहटाएंआपकी टिप्पणी के लिए धन्यवाद।
आदरणीय व प्रिय लोगों का नाम इस छीछालेदर
आपत्ति लोगों से नहीं है, उनके द्वारा अनैतिक व्यवहार को संस्थागत संरक्षण देने से है।
ये आदरणीय व प्रिय लोग इस अशालीन टिप्पणी, जो कि कुछ अनैतिक बात कर रही है, उसका संस्थागत संरक्षण कर रहे हैं। इस प्रकार की अनैतिक चीज़ों को बढ़ाना देने वालों के लिए आदर व प्रेम क्यों हो? क्या यह संस्था इस प्रकार की टिप्पणियों के लिए जवाबदेह नहीं है? या तो ब्लॉगवाणी यह स्पष्ट कर देती कि यह टिप्पणी करने वाला व्यक्ति उनकी संस्था से जुड़ा नहीं है, या फिर इस टिप्पणी की जिम्मेदारी लेती। दोनो में से कुछ भी हुआ, ऐसी संस्था का मैं बहिष्कार ही करूँगा।
न तो मैं ऐसे अनैतिक व्यवहार को मान्यता दूँगा और न ही इसके प्रति तुष्टीकरण की नीति अपनाऊँगा।
पंगेबाज तो इंटरनेट के सर्टीफाईड बंदर हैं आलोक जिन्हें अनूप भी तमाम खुराफातों के लिये हल्की प्यार भरी डपट लगा देते हैं। ये आपको लाख गाली दें, आपका चरित्र हनन करें, फर्जी नाम यहाँ तक की खुद आपके ही नाम से टिप्पणी करें पर आप इनका कुछ उखाड़ नहीं सकते क्योंकि मजमा देखने वाले मजे ले रहे हैं। अगर ये ही चिट्ठाजगत के भद्रपुरुष चिंतक हैं तो आप अकेले क्या कर सकेंगे।
जवाब देंहटाएंदेबाशीष जी, टिप्पणी के लिए धन्यवाद। अगर व्यक्तिविशेष की ही बात होती तो मैं भी चुटकी ही लेता। पर यह तो संस्थागत है। बस फ़र्क यही है।
जवाब देंहटाएंमैं तो इस कारण से याहू के फ़्लिकर तक का बहिष्कार करने की सोच रहा हूँ, इन्होंने हिंदी खोज अक्तूबर तक ठीक करने का वादा किया था। ये लोग अब तक मुझसे हर साल हज़ार रुपए पाते आए हैं। अगले साल से नहीं पाएँगे।
बात यही है, हिंदी के नाम पर सस्ता और घटिया माल बँटेगा, तो मैं नहीं लेने वाला। जल्दी नहीं है। माल सही होना चाहिए।
अंतर्जाल पर प्रयोक्ता ही फैसला करते हैं कि क्या स्वीकार्य है और क्या नहीं, और किसी संस्था द्वारा इस अनैतिक बर्ताव का संरक्षण मुझे स्वीकार्य नहीं है।
पूरा प्रकरण अब पढ़ पाया।
जवाब देंहटाएंएग्रीगेटर संबंधी विवादों के सिलसिले में मेरे पिछले अनुभव ने सिखाया कि समय और ऊर्जा को इन कामों में खपाना बेवकूफी ही है।
मैंने यह भी देखा कि हमारे कई चिट्ठाकार साथी सच्चाई और नैतिकता से अधिक अपने पक्ष या गुट के हिसाब से अपनी राय बनाते-व्यक्त करते हैं।
आलोक जी, आपको जो बातें सामने रखना जरूरी लगा, वह आपने रख दिया। कुछ लोगों को यह अनुचित, गैर-जरूरी और संकुचित दृष्टि वाला लगेगा तो कुछ लोगों को प्रासंगिक, जरूरी और उचित।
सच्चाई और नैतिकता लोकतंत्र के बहुमत की मोहताज नहीं होती।
सृजन शिल्पी जी,
जवाब देंहटाएंटिप्पणी करने के लिए धन्यवाद।
सच्चाई और नैतिकता लोकतंत्र के बहुमत की मोहताज नहीं होती।
मेरे पूरे लेख का सार आपके इस एक वाक्य में वर्णित हो गया।
अच्छा ये भी हो गया.
जवाब देंहटाएं