1.11.07
दावा
बस यही नहीं समझ आता कि अपनी ही चीज़ के लिए बार बार दावा क्यों ठोंकना पड़ता है। वैसे हिंदी ब्लॉग्स की शक्लोसूरत इतनी बढ़िया है कि नौ दो ग्यारह होने का मन ही नहीं करता। मैं वहाँ कम से कम २० मिनट तो बिता ही चुका हूँ। बस ऊपर तस्वीर में जो लिखा है वह हिंदी में होता तो मज़ा आ जाता।
6 टिप्पणियां:
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सही कह रहे हैं आप।
जवाब देंहटाएंdaava aur dava dono hi jaroori hain
जवाब देंहटाएंहा हा हा!! मैंने तो हिन्दीब्लॉग्स.ऑर्ग में ब्लॉग आते ही पोस्ट मिटा डाली थी, खामखा की पोस्ट थी ब्लॉग पर लेकिन दावा करने के लिए आवश्यक थी!! ;)
जवाब देंहटाएंदवा भी अभी पी ली, खाँसी की - डाबर की हनिटस। वैसे मित्र ने बताया है कि कफ़्लेट ज़्यादा अच्छी है।
जवाब देंहटाएंयूँ मुझे इस तमगे से आपत्ति नहीं है, पर उसमें कुछ अंश तो हिंदी का होता। :)
आलोक, आपकी बात पहुंच गई है :) बैज का हिन्दीकरण कर लिया जायेगा।
जवाब देंहटाएंदावा प्रतिदावा तो कैर चलता ही रहता है संसार में, मेरे ससुर जी बता रहे थे कि किस तरह महज़ ६०० रुपये की माहवार पेंशन के लिये उन्हें हर साल ये दावा करना पड़ता है कि वे जिंदा हैं ;)
अमित: जब तक कोड पोस्ट न करें मालिकियत नहीं मिलेगी तो दावा सिद्ध होने तक पोस्ट न आपके लिये खामख्वाह होती है न के लिये :) हाँ उसके बाद न वो आपके काम की रहती है न हमारे काम की। वैसे अक्लमंद को इशारा काफी होता है, क्लेम करने भर के लिये खामख्वाह पोस्ट न लिखें, पोस्ट लिखें और इस कोड को पोस्ट की पूँछ बना कर ठेल दें। आलोक ने कम से कम अपनी पोस्ट का "कुछ कहने के लिये" तो इस्तेमाल किया।
आलोक, आपकी बात पहुंच गई है
जवाब देंहटाएंशुक्रिया, शुक्रिया :) वैसे जिस स्थल के साथ आपका नाम जुड़ा हो उससे हम इसी तरह की बेहतरीन सेवाओं और सुविधाओं की उम्मीद करते हैं!