2.11.07
हिंदी जाल जगत, २००२ में, और आज पाँच साल बाद
सन २००५ में ली गई यह छवि, लिनक्स शब्द की खोज के ५८१ परिणाम दिखाती है।
और अब अगर यही खोज करेंगे, तो आते हैं लिनक्स के १२,२०० परिणाम।
यानी दो साल में २१ गुना बढ़ोतरी।
उसी तरह, नौ दो ग्यारह की खोज करने पर आज २०,२०० परिणाम मिले।
२००२ या २००३ में २५ परिणाम मिले थे।
पाँच साल के अंदर २५ और २०,००० में तो पूरे ८०८ गुना का फ़र्क है।
है न दिलचस्प बढ़ोतरी हिंदी के स्थलों की?
या हो सकता है गूगल ने अपनी खोज सुधार ली हो :)
शायद दोनो ही हुए हैं।
वैसे उन दिनों हिंदी खोज के लिए क्या शब्द डालें ताकि गूगल खाली हाथ न लौटे, यही सोचने में दिन के एक दो घंटे जाते थे।
तारीखें ठीक करवाने के लिए अमित जी का शुक्रिया। कोई और त्रुटि हो तो बताएँ, आपका आभारी होऊँगा।
11 टिप्पणियां:
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प्रगति तो निस्संदेह हुई है आलोक जी। इस प्रगति का काफी कुछ श्रेय हिन्दी चिट्ठाकारों को जाता है, जिनके अगुआ आप बने।
जवाब देंहटाएंआने वाले समय में हिन्दी जाल जगत में प्रगति की रफ्तार और तेज हो जाएगी। ज्यों-ज्यों हिन्दी में कंप्यूटिंग और लेखन आसान होता जा रहा है, और लोगों को इसके बारे में जानकारी मिल रही है, अंतर्जाल पर हिन्दी की समृद्धि बढ़ रही है।
धन्यवाद भईया यह हमारे लिए हौसला अफजाई है ।
जवाब देंहटाएंwww.aarambha.blogspot.com
प्र. सन् 2020 में खोज परिणाम क्या होगा? उ. 9 अरब में से 8 अरब देवनागरी के वेबसाइट होंगे। टंकण नहीं करना पड़ेगा। देवनागरी श्रुतलेखन विश्व की अन्य सभी लिपियों में श्रेष्ठ होगा। विश्व की सारी भाषाओं की सामग्री इण्टरनेट पर देवनागरी में उपलब्ध होगी। किन्तु देवनागरी का स्वरूप बदल गया होगा - बिल्कुल सरल-रेखीय 'linear'
जवाब देंहटाएंहरिराम जी, यूँ तो बहुत महत्वाकांक्षी लगता है आपका विचार, लेकिन पाँच साल पहले भी, अभी जो हाल है वह महत्वाकांक्षी लगता। आपकी टिप्पणी पर २०२० में ही टिप्पणी करूँगा, गूगल पंचांग में लिख लिया है! आप भी लिख लेवें।
जवाब देंहटाएंठीक है फिर 2020 में ही बात करेंगे.
जवाब देंहटाएंसही विश्लेषण किया है. आगे आगे देखते चल रहे हैं.
जवाब देंहटाएंयह तो भविष्य के प्रति और आशा का संचारक है। मैं भी हिन्दी में गूगल सर्च का प्रयोग करता हूं और हर बार उसे समृद्ध होता पाता हूं।
जवाब देंहटाएंसही इंगित किया आपने।
आलोक जी, पहली वाली छवि २००२ या २००३ की नहीं है वरन् अप्रैल २००५ के बाद की है क्योंकि उसमें रवि जी की इस पोस्ट का लिंक भी है जो कि १ मई २००५ को उन्होंने अपने हिन्दिनी वाले चिट्ठे पर छापी थी। और जहाँ तक मेरी जानकारी है उसके अनुसार गूगल में भविष्य में झांक वहाँ के खोज परिणाम दिखाने की प्रतिभा न तब थी और न अब है, आगे की मैं नहीं जानता!! ;) :D
जवाब देंहटाएंअमित जी आपने सही कहा है, यह छवि २००५ की ही है, और वह भी २००५ जून के बाद की। यह छवि फ़ेडोरा पर ली गई है जो मैंने २००५ की जून में ही स्थापित किया था। तदनुसार लेख में फ़ेरबदल किए हैं, पर इसका मतलब यह हुआ कि लिनक्स के परिणामों में दो साल में ही २१ गुना बढ़ोतरी हुई।
जवाब देंहटाएंबहरहाल छवियों की तारीख याद रखने के लिए तारीख छवि के नाम में ही लिखना शायद अच्छा होगा। :)
मुआफ़ी के साथ कहूंगा कि
जवाब देंहटाएंकुछेक लोग चले थे ज़ानिबे मंजिल, लोग आते गए कारवां बनता गया!!
मुआफ़ी इसलिए कि मूल पंक्ति की टांग तोड़ी!!
कारवां यूं ही बनता और चलता रहे यही कामना है!!
संजीत जी, कृपया मेरे जैसे असाहित्यिक व्यक्ति को यह भी बता दें कि मूल पंक्तियाँ क्या हैं? :)
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