29.4.08

जाल पर हिन्दी को प्रोत्साहन दें - २ मिनट में

१.       जब भी आप गूगल पर खोज करते हैं, तो हिंदी वाले गूगल का इस्तेमाल करें। इसे लागू करना तो बहुत आसान है, बस एक बार प्रिफ़रेंसेज़ या वरीयताएँ में जा के हिंदी चुनें। बस एक बार। इसी तरह जब भी किसी साइबरकैफ़े या दोस्त के यहाँ गूगल पर खोज करें, तो भी हिन्दी वाले गूगल का इस्तेमाल करें। समय लगा - ३० सेकिंड।

२.      जब भी आप जीमेल का इस्तेमाल करते हैं, तो हिन्दी वाले जीमेल का इस्तेमाल करें। इसे लागू करना भी बहुत आसान है। जीमेल में सेटिंग्स पर जा के भाषा बदलें। जब भी आप किसी मित्र को जीमेल का इस्तेमाल करते देखते हों, तो उन्हें बताएँ कि वे इसे हिन्दी में बी बदल सकते हैं। समय लगा – ३० सेकिंड।

३.      जब भी आप किसी को डाक लिखते हैं, तो नीचे दस्तखत –हस्ताक्षर सिग्नेचर - की जगह होती है, यह भी आप जीमेल में सेटिंग्स के जरिए बदल सकते हैं। वहाँ पर हिन्दी में कुछ छोटा से लिखें, अपना नाम, अपना चिट्ठे का नाम, और अपने या किसी और स्थल की कड़ी जो हिन्दी में हो। इससे जो भी आपकी चिट्ठी पढ़ेगा – भले ही वह हिन्दी में नह हो – पर दस्तखत हिंदी में होने से लोगों में उत्सुकता बढ़ेगी। यह आपको एक ही बार करना होगा। समय लगा – ३० सेकिंड।

४.      अपने फ़ोन की फ़ोन सेटिंग में देखें कि हिंदी की सुविधा है या नहीं। अगर है तो हिंदी लागू करें। इसी तरह अगर आपके दोस्तों के फ़ोन में हिंदी की सुविधा है तो उन्हें भी बताएँ कि वह फ़ोन की शक्ल हिंदी वाली कर सकते हैं। हिंदी एक ही बार लागू करनी होगी। जब भी आप कोई नया मोबाइल खरीदते हैं तो दुकानदार से यह ज़रूर पूछें कि इसमें हिंदी पढ़ना लिखना हो सकता है या नहीं। लोगों के पास मोबाइल तो होते हैं पर हिंदी न होने की वजह से डाक वगैरह नहीं जाँचते। तो कीजिए फ़ोन सेटिंग से हिंदी लागू। समय लगा – ३० सेकिंड।

बस इतना ही। सिर्फ़ दो मिनट। कोई सरकारी अनुदान नहीं चाहिए। कोई हिंदी का रोना रोने वाले लेख नहीं चाहिए। चाहिए तो सिर्फ़ आपके दो मिनट। समय शुरू होता है अब।

आप और मैं नहीं करेंगे तो आज से पाँच साल बाद आपका सब्ज़ी वाला कैसे करेगा? उसे हिंदी आती है, पर कंप्यूटर का इस्तेमाल करने के लिए हिंदी आना काफ़ी है, यह खबर उस तक पहुँचेगी नहीं।

दो मिनट में यह सब कर लेने के बाद टिप्पणी करके बताइएगा ज़रूर, यूँ ही नौ दा ग्यारह न होइएगा!

ताकि कोई यह न कह सके कि हिंदी सिर्फ़ कवियों और पत्रकारों की भाषा है।

9 टिप्‍पणियां:

  1. अपन तो पूरी ठसक से कहते है, हिन्दी कवियों और पत्रकारों की ही नहीं हमरी भी भाषा है.

    उपरोक्त सारी "सेटिग्स" पहले से ही हिन्दी में है, आगे का बतायें :)

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  2. आलोक जी
    आपने पते की बात कहीं है। हिंदी यूनिकोड के बारे में भी जिक्र करना जरुरी है। कुछ ऐसे महत्वपूर्ण टिप्पणियाँ आय.टी. के बारे में देते रहिए तभी हिंदी आगे बढेगी।

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  3. काफी कुछ हिन्दी मे है, जो बचा है, जल्दी ही हो जायेगा।

    http://रामचन्द्रमिश्र.com

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  4. सही कह रहे हैं आप। और ले दे कर हिंदी प्रयोग बढ़ ही रहा है। हम हिन्दी के जिहादी न सही, पर हिन्दी प्रिय अवश्य हैं!

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  5. और हम न कवि हैं न पत्रकार। आपके जैसे आदमी हैं!

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  6. "और हम न कवि हैं न पत्रकार। आपके जैसे आदमी हैं!"

    तो क्या कवि और पत्रकार आदमी नहीं होते? :) गलत बात है जी :)

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  7. जीमेल, गूगल,मोबाइल और कम्प्यूटर पर हिन्दी की उपलब्धता बहुत अग्रगामी है.आलोकजी की बातों में बहुत सार है. आवश्यकता है संकल्पबल की.

    टिप्पणियों में छींटाकसी से बचना चाहिये. कुछ हजम भी करना चाहिये.

    हर क्षेत्र में हिन्दी का उपयोग बढाना हमारा ध्येय रहे तभी हिन्दी की जय होगी.

    विज्ञानशंकर

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  8. आलोक जी, आपकी बात गांठ बांध ली। हिंदी हमारी भाषा है। जमीन से कटे पत्रकार और साहित्यकार इसकी ऊष्मा को नहीं पकड़ सकते।

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  9. बेनामी5:02 pm

    good instance by you guys...

    all the best

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