31.12.04
30.12.04
ऑन्लाइन क्रॅश विश्लेषण
यह बात अलग है कि आप जब जाल से जुड़े नहीं होते हैं तो भी डब्बे में यही लिखा रहता है कि सब कुछ भेज दिया गया है।
सूनामी नहीं, त्सूनामी
28.12.04
ई स्वामी
कुकरमुत्तों के विशेषज्ञ ईस्वामी जी ने हिन्दी आसानी से लिखने के लिए एक उपकरण लिखा है, बेनाम है फ़िलहाल। तो तोड़फ़ोड़ शुरू कीजिए न। यानी कि जाँच पड़ताल।
27.12.04
समुद्री तूफ़ान
समुद्री तूफ़ान - को जापानी में सुनामी बोलते हैं, यानी बन्दरगाह के निकट की लहर। दरअसल ये बहुत लम्बी - यानी सैकड़ों किलोमीटर चौड़ाई वाली लहरें होती हैं, यानी कि लहरों के निचले हिस्सों के बीच का फ़ासला सैकड़ों किलोमीटर का होता है। पर जब ये तट के पास आती हैं, तो लहरों का निचला हिस्सा ज़मीन को छूने लगता है, - इनकी गति कम हो जाती है, और ऊँचाई बढ़ जाती है। ऐसी स्थिति में जब ये तट से टक्कर मारती हैं तो तबाही होती है। गति 400 किलोमीटर प्रति घण्टा तक, और ऊँचाई 10 से 17 मीटर तक। यानी पानी की चलती दीवार। और वह भी खारा वाला।
अक्सर समुद्री भूकम्पों की वजह से ये तूफ़ान पैदा होते हैं। प्रशान्त महासागर में बहुत आम हैं, पर बङ्गाल की खाड़ी, हिन्द महासागर व अरब सागर में नहीं। इसीलिए शायद भारतीय भाषाओं में इनके लिए विशिष्ट नाम नहीं है।
26.12.04
प्रेमचन्द की कितबियाँ
यहाँ मिलती हैं, और दाम भी ज़्यादा नहीं दिख रहे हैं। पर पता नहीं भेजने के कितने पैसे लेंगे। बङ्किमचन्द्र और जयशङ्कर प्रसाद भी मौजूद हैं।
23.12.04
एक दिन में एक शेयर
यह पसन्द आया, अपनी बत्ती लगने के बारे में :
ये धुआँ कम हो तो पहचान हो मुमकिन, शायद
यूँ तो वो जलता हुआ, अपना ही घर लगता है
20.12.04
12.12.04
क्रिकेट टुडे
मिला तो सही, पर थोड़ा बासी है। वही हाल इनके साधना पथ का है। कम्पनी उठ गई है क्या? नहीं, लगता है भूल गए हैं।
11.12.04
जब नहीं आए थे तुम
अपने लॅप्ट़प पर यह गाना सुना।
कौन सी फ़िल्म? गायिका? अभिनेत्री?
जब नहीं आए थे तुम तब भी मेरे साथ थे तुम जब नहीं आए थे तुम तब भी मेरे साथ थे तुम दिल में धड़कन की तरह तन में जीवन की तरह मेरी धरती मेरे मौसम मेरे दिन रात थे तुम जब नहीं आए थे तुम तब भी मेरे साथ थे तुम फूल खिलते थे तो आती थी तुम्हारी खुश्बू फूल खिलते थे तो आती थी तुम्हारी खुश्बू हर हसीं शाम जगाती थी तुम्हारा जादू आइने में मेरी हर दिन की मुलाकात थी तुम मेरी धड़कन की तरह मेरे जीवन की तरह मेरी धरती मेरे मौसम मेरी दिन रात थे तुम जब नहीं आए थे तुम तब भी मेरे साथ थे तुम अध मुँदी दी आँख में सजता हुआ एक ख्वाब थे तुम अध मुँदी दी आँख में सजता हुआ एक ख्वाब थे तुम पहली बरसात में भीगा हुआ मेहताब थे तुम होंठ मेरे थे मगर इनके हर ... थे तुम दिल में धड़कन की तरह तन में जीवन की तरह मेरी धरती मेरे मौसम मेरे दिन रात थे तुम जब नहीं आए थे तुम तभ भी मेरे साथ थे तुमबस दो सवाल: होंठ मेरे थे मगर इनके हर क्या थे तुम? मेहताब यानी? जब नहीं आए थे तुम तो गूगल के पास नहीं है।
10.12.04
7.12.04
6.12.04
5.12.04
ब्रास्टेल फ़ोन सेवा
यह तो पता चला कि 24सों घण्टे उतने ही पैसे लगेंगे। लेकिन ये कहाँ से फ़ोन करने के पैसे हैं? यह तो कहीं लिखा ही नहीं है, या फिर लिखा है लेकिन दिख नहीं रहा है। न यही कि कौन सी मुद्रा में दाम लिखे हैं।
दो चार डोमेन नामों के लिए अपना जीमेल पता क्या दिया, धड़ाधड़ अङ्ग वैशालीकरण की डाक आने लगी। पर ये तो होना ही था। मतलब वैशालीकरण नहीं, कचरा डाक का आना। बकरी की माँ कब तक ख़ैर मनाती।
4.12.04
प्रजा भारत
यूनिकोडित, हिन्दी अखबार। लेकिन लगता है कि ख़बरें पढ़ने के लिए पञ्जीकरण करना पड़ता है। और उसके लिए नोट लगते हैं। कोई गल नहीं। फिर कभी सही। पर सामग्री काफ़ी है यहाँ लगता है। सोचा कि पञ्जीकरण के बारे में शिकायत करूँ लेकिन कोई डाक पता नहीं मिला। आपको मिले तो बताएँ। इस बीच थोड़ा शोक, रायपुर टुडे अब मौजूद नहीं है।
गूगल बड़ा तेज़ छोकरा है, चन्द घण्टों में सब कुछ घोट लेता है। पता चला तत्काल के बारे में। अब ठाकुर का हाथ माँग लिया तो क्या हुआ - हाँ, अब तो अमेरिका में भी गैर कानूनी है। मुआफ़ी।
3.12.04
ताना बाना
विजय ठाकुर, यह हाथ मुझे दे दो। जो इतनी कविताएँ लिख डालते हैं। अपुन तो कविता के नाम से ही नौ दो ग्यारह होने लगते हैं। ईश्वर प्रदत्त कला है, क्या कर सकते हैं। पर देख रहा हूँ जाल पर कविताओं का भरमार हो रहा है।
इस बीच देखा कि हिन्दी के चिट्ठों की इतनी भरमार हो गई है कि आराम से पन्द्रह मिनट लगते हैं सबको दिन में एक बार देखने में। छः महीने पहले यह काम दो मिनट में हो जाता था। बढ़िया है। पता चला कि तोता चश्म का मतलब क्या होता है, फ़ुरसतिया जी की बदौलत। देखते हैं गूगल तोता चश्म को कब तक पकड़ता है। अभी तक तो खाली लौट रहा है।
2.12.04
1.12.04
30.11.04
अक्षरग्राम का नया नाम
क्यूँकि अक्षरग्राम नाम थोड़ा फेंकू है, पङ्कज जी चाहते हैं कि कोई और नाम दिया जाए उसे।
पर नाम क्या रखा जाए?
नुक्कड़?
पान की दुकान?
चौपाल? - इस नाम का स्थल पहले ही है शायद
गप्पोड़ी ?
फ़ट्टेबाज़ ?
दिमाग और काम नहीं कर रहा है।
और सोचेंगे।
इस बीच पता चला है कि आन्ध्र प्रदेश में डिजिटल सर्टिफ़िकेट मिलने वाले थे। लेकिन पता नहीं तेलुगु देसम की शिकस्त के बाद इसका क्या हश्र होगा।
29.11.04
देननागरी की दो और मुद्रलिपियाँ
शुक्रिया आसिफ़ जी।
यह दोनो आम सार्वजनिक अनुमति पत्र - जी पी ऍल के तहत उपलब्ध हैं। तुलना करें, तो इन मुद्रलिपियों के बारे में आपके क्या विचार हैं?
28.11.04
तेलुगु के पन्द्रह चिट्ठे
जी हाँ, पन्द्रह। हिन्दी के भी इतने के ही आसपास होंगे। मानना पड़ेगा। किरण से में ब्लग बङ्गलोर में मिला था, कुछ दो साल पहले। नमस्ते। फिर भेंट हो शीघ्र ही, ऐसी उम्मीद है। आजकल माइक्रोसॉफ़्ट में हैं, सम्भवतः हैदराबाद में?
10.9.04
वागर्थ
तो यह हुई न बात। इतनी सारी सामग्री, और सारी यूनीकोडित। ऐसा स्थल जहाँ बार बार जाने की इच्छा हो।
9.9.04
मन्त्रालय में हिन्दी का प्रयोग
सरकारी ब्यौरे पढ़ के नींद तो आती है, पर हिन्दी के इस्तेमाल के लिए पैसे बाँटने की बात के बारे में आपका ख़याल है?
वैसे, मैं यह जानना चाहता हूँ कि आप में से किसी ने पर्ल व सिग्विन का विण्डोज़ में इस्तेमाल किया है क्या? आपका कैसा अनुभव है? और यह ऍक्टिव पर्ल क्या है?
5.9.04
स्रोत
स्वास्थ्य व विज्ञान से सम्बन्धित जानकारी। अफ़सोस कि ऐसे स्थल यूनिकोडित नहीं हैं। पर हैं तो सही। इसलिए, बढ़िया है।
22.7.04
कभी ख़ुशी कभी ग़म, लगान, हिन्दी में छँटनी ...
आदि कई विषयों पर दस्तावेज़। अंर्स्ट ट्रेमेल द्वारा। इन्होंने ही शिदेव मुद्रलिपि बनाई है, जिसकी कड़ी इस पन्ने पर उपलब्ध है। प्रेमचन्द की सद्गति भी यहाँ उपलब्ध है।
फ़िलहाल वे अपने दस्तावजों पर टिप्पणियाँ आमन्त्रित कर रहे हैं, उनसे सम्पर्क करें।
8.7.04
रवि रतलामी का हिन्दी ब्ल़ॉग
तो अब रतलाम जाल के नक्शे पर आ गया है। पहले भी था, पर अब लगातार रतलामी विचार मिल रहे हैं। बढ़िया है। क्यों न रतलाम के बारे में और जानकारी मिले, जैसे कि यहाँ जबलपुर के बारे में है।
2.7.04
25.6.04
लिनक्स में हिन्दी, हिन्दी में लिनक्स
पता चला है कि ऑपेरा, औरपोऍडिट हिन्दी में मौजूद हैं, धनञ्जय शर्मा जी की बदौलत। मान गए आपका लोहा। आप औरों को प्रेरित कर रहे हैं। बहुत बहुत साधुवाद।
अर्सा हो गया लिनक्स में काम किये, अब तो धनञ्जय जी की प्रेरणा से उम्मीद है कि जल्दी ही फिर से शुरुआत कर सकूँगा।
वैसे मैं सोच रहा था कि यदि मैं अपने जालस्थल के किसी हिस्से में लेखन का अधिकार किसी अन्य प्रयोक्ता को देना चाहूँ तो क्या ऐसा बिना डॉटाबेस के चक्करों में पड़े किया जा सकता है ?
उदाहरण के लिए, http://devanaagarii.net/ks में कोई दूसरा प्रयोक्ता पन्ना डाल सके, पर यह प्रयोक्ता स्थल के बाकी हिस्सों में प्रवेश न कर पाए?
तो, इज़ इट पॉसिबल? टॅल मी नो।
24.6.04
लाहौल विला कूव्वत, मुनीश साहेब की बदौलत
ख़ाक, हसरत, ज़ख्म, दरिया, इत्तेफ़ाक, इख़्लास, इब्तदा
इनमें सात में से कमसकम चार लफ़्ज़ों के मायने मालूम हों तो ज़रा अपने इबसिरात के मोती बिखेर आएँ।
थिङ्कपॅड से आईबुक तक
लॅपटॉप की खोज करते हुए मैं अब ऍप्पल की आईबुक तक पहुँच गया हूँ। किसी को अनुभव है क्या इसका? देखने में तो एकदम चकाचक लगता है, और इसके प्रयोक्ता समूहों में भी तारीफ़ ही तारीफ़ है। ख़ासतौर पर, क्या किसीने आईबुक पर लिनक्स या फ़्रीबीऍसडी का इस्तेमाल किया है?
21.6.04
बिना हँसी के एक दिन
कितना भारी होता है, वह मनीला आ के पता चला। फ़िलिपीनो लोग हँसते ख़ूब है। अब अपने को भी आदत पड़ रही है धीरै धीरे। तो, मुस्कुराइए :)
20.6.04
ऍटम चालू है
हमेशा की तरह, एक जगह गलती सुधारी पर बाकी जगह वैसे का वैसा ही छोड़ दिया। शुक्रिया, देबाशीष।
17.6.04
अमेरिकन गन
अभी अभी यह फ़िल्म देखी। बढ़िया है। इसे देख के याद आ गई 'ये वो मञ्ज़िल तो न थी' की। देखी है? पङ्कज कपूर, व अन्य कलाकार, 80 के दशक की कला फ़िल्मों में से एक। हाँ, अमेरिकन गन व इस फ़िल्म की विषय वस्तु अलग है, लेकिन दोनो ही अलग अलग तरह से आन्तरिक ग्लानि का विश्लेषण करते हैं।
15.6.04
भाषा कूट
पॅब्लो सराछग ने सूचित किया की नेपाली और कोंकणी के सही लघुनाम क्या हैं। धन्यवाद, ठीक कर दिए हैं।
वही पुराना सवाल
कि क्या लिखें।
कई जालस्थल हैं, और नई मुद्रलिपियाँ भी हैं, उनके बारे में एक एक करके लिखना है, और अपने पन्ने को ताज़ा रखना है। जल्द से जल्द। इस दुनिया में उसी जगह टिके रहने के लिए भी दौड़ते रहना पड़ता है नहीं तो नौ दो ग्यारह हो जाते हैं।
14.6.04
साफ़ सफ़ाई
आज अपने जाल सेवक से बहुत सा कचरा साफ़ किया, कुछ 2 मेगाबाइट। अब जल्द ही सभी तस्वीरें वापस आ जाएँगी स्थल पर।
वापस यहीं
जुगाड़ हो गया, पथ में public_html डालना था, इसी वजह से पहले ब्लॉग प्रकाशित नहीं हो रहा था।
13.6.04
वापस ब्लॉग्स्पॉट पर
ब्लॉग्स्पॉट से देवनागरी से वापिस यहीं पर। कारण, कई सारे। एक तो मैंने आतिथ्य प्रदाता बदला, और उसमें पाँच मेगाबाइट की सीमा थी। दूसरे, पहले ब्लॉगर पर छवि छापने की सुविधा नहीं थी, अब है। लेकिन फ़िलहाल, छवियाँ छापने में दिक्कत आ रही है, क्योंकि हैलो पर प्रवेश करने पर त्रुटि आती है,
org.apache.xmlrpcException: Invalid character data corresponding to XML entityतो ऐसा क्यों? ब्लॉगर वालों को लिखता हूँ, सम्भवतः इसलिए कि हिन्दी - Hindi शीर्षक है एक चिट्ठे का?
24.5.04
ज़रूरत है ज़रूरत है
कुछ समय तक नौ दो ग्यारह रहने के बाद नया आतिथ्य चालू हो गया है। यदि आपको कोई दिक्कत आती है, स्थल को देखने में तो बताएँ। वैसे यह तो वही बात हुई न की जो लोग नहीं आए हैं वे अपने हाथ खड़े करें। खैर यह सूचना मैं अक्षरग्राम पर भी दे दूँगा। पङ्कज के खर्चे पर काफ़ी काम आसान हो गए हैं। यह बात अलग है कि आजकल नौ दो ग्यारह पर पढ़ने के लिए कुछ खास नहीं रहता है, पर सूचना देने में क्या हर्ज़ है।
इस बीच बङ्गलोर में दोस्त लोग कह रहे हैं कि मैं उन्हें चिट्ठी नहीं लिख रहा हूँ। तो सोच रहा हूँ कि मनीला के हालचाल लिखने के लिए अलग चिट्ठा शुरू करूँ, वैसे यदि ब्लॉगर में वर्गीकरण की सुविधा हो तो मैं यहीं पर लिख सकता हूँ। हाँ, चिट्ठी से मेरा मतलब है विपत्र, कागज़ी चिट्ठी नहीं।
इस बीच खेद है कि हिन्दीकरण वाले काम थम से गए हैं, या यूँ कहें कि काम तो चल रहे हैं पर वे नज़र नहीं आ रहे हैं (अपनी बात कर रहा हूँ, औरों की नहीं।) इस बात की ख़ुशी भी है कि डीमॉज़ पर एक और सम्पादक, अञ्जन भूषण अवतरित हुए हैं। आप भी चाहें तो सम्पादक बन सकते हैं - शीर्षक वाली कड़ी देखें। हाँ, सम्पादकों के अलावा स्थल बनाने वाले चाहिएँ, इसमें कोई शक नहीं।
और सब ठीक ठाक, जय हो डॉक्टर साहब की।
15.5.04
ढूँढते रह गया
देख रहा हूँ कि बगल की पट्टी नौ दो ग्यारह हो गई है। पर मेरा ही किया धरा कुछ होगा। करता हूँ कुछ जुगाड़।
13.5.04
यूनिकोड के बदले सवालिया निशान
सञ्जय व्यास जी से डाक आई कि वे आजकल बङ्गलोर में हैं। मैंने हिन्दी में जवाब दिया तो उन्हें मिले सवालिया निशान। तो यह है हालते यूनिकोड। पर हैं तो हम सही रास्ते पर ही।
12.5.04
लैपटॉप की खोज
बढ़िया लैपटॉप कौन से हैं? यानी टिकाऊ, सस्ता, सुन्दर, व हल्का, इसी क्रम में। अपने व्यक्तिगत अनुभव से बताएँ।
10.5.04
9.5.04
कवि लिपि
8.4.04
काञ्जिरोबा
मानना पड़ेगा काठमण्डू के मदन पुरस्कार पुस्तकालय को, जिन्होंने तीन तीन देवनागरी की मुद्रलिपियाँ तैयार की हैं। एक नमूना, काञ्जिरोबा मुद्रलिपि का।
इसके अलावा वे कालीमति व थ्याका रबिसन मुद्रलिपियाँ भी बना चुके हैं। जय नेपाल।
5.4.04
पर्ल यूनिकोड
पर्ल में यूनिकोड सम्बन्धित कार्यक्रम कैसे लिखें, इसके बारे में जानकारी कहाँ से मिलेगी, यह कोई बता सके तो बहुत कृपा होगी। अभी तक मुझे यह पता चला है कि पर्ल में आप अक्षर का नाममात्र प्रदान करके उसे छाप सकते हैं, जैसे क छापने के लिए DEVANAGARI LETTER KA परिमाण भेजने से काम चल जाता है। पर और अधिक प्रलेख कहाँ मिलेगा?
2.4.04
गूगल ऐडवर्ड्स
अब हिन्दी में। कई पृष्ठ अभी हिन्दी में नहीं हैं, लेकिन निश्चय ही हिन्दी में यह पहला व्यावसायिक स्थल होगा।
31.3.04
मॉड्युलर इन्फ़ोटेक की श्री मुद्रलिपि
शक्लोसूरत अच्छी है। हाँ, संयुक्ताक्षर इसमें संस्कृत 2003 से कम हैं। इसे मिला कर कुल मुद्रलिपियों का सङ्ख्या दस हो गई है।
24.3.04
डायमण्ड पब्लिकेशंस
क्रिकेट टुडे, गृहलक्ष्मी, साधना पथ - जल्द ही आ रहे हैं। यार ये वही डायमण्ड कॉमिक्स वाले हैं क्या? तो फिर कुछ अदद कॉमिक्स भी पेश की जाएँ!
23.3.04
18.3.04
आपकी सेवा में, अब दो तरह से
लिनक्स वाले स्थल तो बहुत अनुवादित किए, अपने चिट्ठे भी बनाए। पर कुछ जालस्थल जो मुक्त नहीं हैं, वे कैसे हिन्दी में आएँगे? तो प्रस्तुत है यह सेवा। यदि आप किसी को जानते हैं जो कि अपने स्थल अनुवादित करवाने में दिलचस्पी रखते हैं, तो ज़रूर लिखें। हाँ स्वयंसेवी कार्य तो अलग चलता ही रहेगा, फ़िलहाल मेरी नज़र है लाइव्जर्नल के हिन्दी अनुवाद पर, कोई और शामिल होना चाहे तो काम में दिलचस्पी बढ़ेगी। इसके लिए लाइव्जर्नल के ब्रॅड को डाक भेजनी होगी। तो यदि आप की दिलचस्पी अब भी हो तो ज़रूर लिखें।
17.3.04
लौ सुनो चियापसल रेडियो
नेपाली व अङ्ग्रेज़ी में बना एक चिट्ठा। समझ तो ज़्यादा नहीं आया, लेकिन स्थल की रचना बहुत ही आकर्षक है। क्यों न हिन्दी का भी ऐसा ही सामूहिक चिट्ठा बनाया जाए?
16.3.04
15.3.04
ख़्वाबों का भरम टूट गया
अपने बिस्तर में बहुत देर से मैं नीम दराज़
सोचती थी कि वह इस वक़्त कहाँ पर होगा
मैं यहाँ हूँ मग़र उस कोचा ए रङ्गो बो में
रोज़ की तरह वह आज भी आया होगा
और जब उसने वहाँ मुझ को न पाया होगा?
आपको इल्म है वो आज नहीं आई हैं?
मेरी हर दोस्त से उसने यही पूछा होगा
क्यों नहीं आई वो क्या बात हुई आखिर
खुद से इस बात पे सौ बार वो उलझा होगा
कल वो आएगी तो मैं उससे नहीं बोलूँगा
आप ही आप कई बार वह रोता होगा
वो नहीं है तो बुलन्दी का सफ़र कितना कठिन
सीढ़ियाँ चढ़ते हुए उसने यह सोचा होगा
राहदारी में, हरे लॉन में, फूलों के करीब
उसने हर सिम्ट मुझे आँख ढूँढा होगा
नाम भूले से जो मेरा कहीं आया होगा
गैर महसूस तरीके से वह चौंका होगा
एक ही गुमले को कई बार सुनाया होगा
बात करते हुए सौ बार वह भूला होगा
यह जो लड़की नई आई है, कहीं वह तो नहीं
उसने अर चेहरा यही सोच के देखा होगा
जाने महफ़िल है, मगर आज फ़कत मेरे बगैर
हाय! किस दर्जा वह बज़्म में तन्हा होगा
कभी सनताओं से वहशत जो हुई होगी उसे
उसने बे सकता फिर मुझ को पुकारा होगा
चलते चलते कोई मनूस से आहट पाकर
दोस्तों को भी किसी उज़्र से रोको होगा
याद कर के मुझे नम हो गईं होंगी पलकें
"आँख में कुछ पड़ गया" कह के टाला होगा
और घबरा के किताबों में जो ली होगी पनाह
हर सतर में मेरा चेहरा उभर आया होगा
जम मिली को उसे मेरी अलालत की ख़बर
उसने आहिस्ता से दीवार को थामा होगा
सोच कर ये, कि बेहाल जाए परेशाने दिल
यूँही बेवजह किसी शख्स को रोका होगा!
इत्तिफ़ाक़न मुझे उस शाम मेरी दोस्त मिली
मैंने पूछा कि सुनो आए थे वह? कैसे थे?
मुझ को पूछा था? मुझे ढूँढा था चारों जनब?
उसने एक लम्हे को मुझे देखा और फिर हँस दी
उस हँसी में तो वह तल्खी थी कि उस से आगे
क्या कहा उसने मुझे याद नहीं है; लेकिन
इतना मालूम है कि
ख़्वाबों का भरम टूट गया।
- कराची की एक डाक सूची से
World/Hindi/संगणक/अन्तर्जाल/जाल_पर/चिट्ठे
ज़ाहिर है कि आप अपने चिट्ठे के बारे में क्या सोचते हैं, और दूसरे उसके बारे में क्या सोचते हैं, उसमें कुछ तो फ़र्क होगा। आप चाहें तो अपनी प्रविष्टि के विवरण या शीर्षक में परिवर्तन का अनुरोध कर सकते हैं, या फिर नए स्थल प्रस्तावित कर सकते हैं। इतना ही नहीं आप चाहें तो सम्पादक भी बन सकते हैं। सारे निर्णय सम्पादकों का दल लेता है, सभी सम्पादक स्वयंसेवी हैं।
14.3.04
11.3.04
प्रभासाक्षी हुआ यूनिकोडित
यह अखबार कुछ समय पहले कृतिदेव मुद्रलिपि में हुआ करता था। अब यूनिकोडित है। बढ़िया है।
10.3.04
टी टी ऍफ़ का मसला कैसे देखें?
मैं यह देखना चाहता हूँ कि टीटीऍफ़ मुद्रलिपि में 0 से 255, हरेक स्थिति पर कौन सा आकार यानी ग्लिफ़ स्थित है। आसान तरीका क्या है? विण्डोज़ या लिनक्स, कहीं पर भी चलेगा।
4.3.04
मनीला
क्या आप में से कोई इस जगह के बारे में जानता है? सम्भव है कि मुझे कुछ समय यहाँ रहना पड़े। एक शाकाहारी भारतीय युगल की दृष्टि से कैसी जगह है यह?
26.2.04
हलन्त बना विराम?
094D ् DEVANAGARI SIGN HALANT * suppresses inherent vowelआपके क्या विचार हैं?
21.2.04
मिल गया, केवल स्क्रीन शॉट, ऑफ़िस नहीं।
19.2.04
माइक्रोसॉफ़्ट ऑफ़िस हिन्दी स्क्रीन शॉट
क्या किसी के पास इसकी छवियाँ हैं? यदि हाँ तो पेश करें।
अन्दाज़ा लगाना चाहता हूँ कि यह कैसा दीगर होता है।
14.2.04
13.2.04
12.2.04
मोज़िला १.६ संशोधित, देवनागरी के लिए
मुद्दा यह है कि हिन्दी के अब पाँच चिट्ठे उत्पन्न हो चुके हैं। देखना यह है कि दस का आँकडा कब तक पहुँचता है। पर आँकड़ों से ज़्यादा बढ़िया बात यह है कि बढ़िया लिखने वाले लोग इस मैदान में आ रहे हैं। सम्भवतः इस कारण से लोग और अधिक प्रेरित होंगे हिन्दी के चिट्ठे पढ़ने और लिखने के प्रति।
इस बीच मोज़िला १.६ का संशोधित उद्धरण उपलब्ध है, जो कि लिनक्स पर ठीक से देवनागरी प्रदर्शित करने में सक्षम है। तो इस्तेमाल कीजिए और लुत्फ़ उठाइए। मैंने खुद इसका इस्तेमाल नहीं किया है अभी तक, इसलिए और कुछ नहीं बता सकता। सहायता के लिए यह रीड्मी पढ़ें।
और चर्चा करना चाहें तो यहाँ कर सकते हैं।
19.1.04
18.1.04
कही अनकही
शुक्रवार १६ जनवरी, २००४ को यह चिट्ठा, हिन्दी का इकलौता चिट्ठा नहीं रहा। शोक में दो मिनट मौन रखा जाए और बाकी २३:५८ घण्टे जश्न मनाया जाए, क्योंकि मिल ही गया आख़िरकार, हिन्दी का एक और चिट्ठा। मुबारक हो, पद्मजा जी। बस, अब तो जङ्गल में आग पकड़ने की ही देर है।
17.1.04
चले थे हरि भजन को
लेकिन पता चला कि क्यू टी के लिए XFree86-devel ज़रूरी है। तो फ़िलहाल कपास ओटी जा रही है। और पिछले २ दिन में ४ घण्टे अन्तर्जाल पर बैठा रहा। ४ घण्टे यानी १०० रुपए। बहुत महँगा शौक है यह।
16.1.04
क्यूटी 3.2.3 का आर पी ऍम
मिल गया! अब देखते हैं क्या होगा आगे। कॉङ्क्वरर आगे बढ़ेगा या नहीं? इस बीच इण्डिक कम्प्यूटिङ्ग हॅण्डबुक का बिल्ड भी बचा हुआ है, उसको भी निपटाना है।
क्यू टी का जुगाड़
हूँ, तो पता चला है कि क्यू टी स्तोत से निर्माण करने पर दिक्कत होती है। एक सज्जन ने क्यू टी ३.२.३ के स्रोत आर पी ऍम की ओर इङ्गित करने का वादा किया है, सम्भवतः उससे काम चल जाएगा। यदि आपको पता हो तो बताएँ।
15.1.04
गुम हो गए चक्रवात में
कल रात दो बजे सोया और आज उठा तो लगा कि और चार घण्टे आराम से सो सकते हैं। लेकिन यह न हो सका। तो अब क्या करें, अपनी क़िस्मत को कोसने के अलावा? ज़िन्दगी छोटी है, काम बहुत हैं। ऊपर से उसमें भी क्या करें और क्या नहीं, इसमें और समय ज़ाया होता है। उम्मीद पर दुनिया टिकती है लेकिन खुद से उम्मीद उसी चीज़ की करनी चाहिए जो हो सके। अक़्सर ऐसा लगता है कि दुनिया अचानक बहुत उलझ गई है, पहले काफ़ी सीधी सादी थी। ऐसा क्यों? दबाव, तनाव? बाहर निकलना पड़ेगा इस चक्रवात से, या फिर इस चक्रवात को ही नौ दो ग्यारह करना पड़ेगा।
क्या दुनिया को एक मुख और खुद का दूसरा मुख रख कर जीना ज़िन्दगी है? पता नहीं।
अब तो बस लिखते जा रहा हूँ, जो मन में आए। इसीलिए तो लिखना शुरू किया था मैंने चिट्ठा, हो सकता है इसे लिखते लिखते मुझे कुछ समझ आ जाए, अपने बारे में, दूसरों के बारे में।
दोस्त लोग मिलने को कहते हैं, लेकिन नहीं मिल पाते। मजबूरी। फिर पता चलता है कि बहुत दूर पहुँच गए। जीवन में अग़र ही अग़र भरा हुआ है। यार फिर ज़िन्दगी शुरू कब होगी। कोई अनुशासन नहीं, अपनी मन मर्जी।
लगभग रोज, वही होता है जो इसके पिछले दिन हुआ था। कोई बदलाव नहीं, कोई परिवर्तन नहीं। कुछ दिलचस्प? नहीं, कुछ नहीं। क्या ज़िन्दगी है। यही है ज़िन्दगी? लगता है मैं कुछ ग़लत चीज़ों को ज़्यादा तवज्जू दे रहा हूँ और सही चीज़ों को कम। अन्तर्जाल पर काम करना अब काफ़ी महँगा पड़ रहा है, देखता हूँ अगले कुछ दिनों में कोई और जुगाड़ हो जाए, ब्रोड्बैण्ड जैसा तो अच्छा है।
इस लिनक्स ने परेशान कर रखा है। हर एक चीज़ के लिए कुछ न कुछ बैठ के डाउन्लोड करो। यार हद होती है। पर क्या करें। मज़ा भी आता है, पर कभी कभी कुछ ज़्यादा हो जाता है। जैसे कि आज। पूरा क्यू टी 3.3 बैठ के कम्पाइल किया, लेकिन rpm -q qt पुराना वाला उद्धरण ही दिखाता है। मतलब क्या? कि उसका आर पी ऍम ही चाहिए? ये बात तो हजम नहीं हुई। पुराने क्यूटी की लाइब्रेरियाँ भी उड़ा दीं, फिर भी वही दिक्कत है। उल्टे के पी पी पी चलना बन्द हो गया। वह तो शुक्र है वीवडायल था, तो काम चल रहा है। लेकिन इसका मतलब ये हुआ कि इसके बारे में अपने को जानकारी बहुत, बहुत कम है, और किसी को पूछो ते कहेगा कि मैन पेज देखो, या गूगल में गुगलाओ।
भइया गूगल क्या देगा। बस बहुत हो गया अब होते हैं नौ दो ग्यारह।
14.1.04
क्यूटी 3.3
सुना है कि इस बाम को लगाने से सारी पीड़ा दूर हो जाती है। देखते हैं इसके बाद कॉङ्क्वरर हिन्दी कैसी दिखाता है।
11.1.04
लाइव्जर्नल
लाइव्जर्नल का हिन्दी अनुवाद करने के लिए आपका स्वागत है। यदि आपको दिलचस्पी है तो यहाँ टिप्पणी लिखें। वैसे १० प्रतिशत अनुवाद हो चुका है।
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